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महाराष्ट्र का किंग कौन: BJP-शिवसेना की राज्यपाल से अलग-अलग मुलाकात

बीजेपी-शिवसेना के बीच फिर मचा घमासान

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महाराष्ट्र की राजनीति में अब सरकार बनाने को लेकर घमासान छिड़ चुका है. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन भले ही बहुमत हासिल करने में कामयाब रहा हो, लेकिन अब सरकार चलाने को लेकर जंग छिड़ी है. इसी बीच बीजेपी और शिवसेना नेताओं ने राज्यपाल से अलग-अलग मुलाकात की है. राज्यपाल से मुलाकात के बाद अब चर्चा और भी गरम हो चुकी है.

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औपचारिक मुलाकात कितनी औपचारिक?

महाराष्ट्र विधानसभा नतीजों के बाद अब सरकार बनाने का दावा पेश किया जाना है. जिसके लिए राज्यपाल से मुलाकात करनी होती है. अब खबर है कि खुद सीएम देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना के नेता दिवाकर राउते राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात कर चुके हैं. दोनों नेताओं ने राज्यपाल से अलग-अलग मुलाकात की. लेकिन इस मुलाकात को औपचारिक मुलाकात बताया गया है. कहा गया है कि दिवाली की शुभकामनाओं के चलते मुलाकात हुई.

बीजेपी और शिवसेना की इस मुलाकात को इस मौके पर औपचारिक नहीं माना जा रहा है. राज्यपाल से इस मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं. क्योंकि बीजेपी एक तरफ निर्दलीय और अन्य दलों के सहारे सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है, वहीं शिवसेना भी विधायक जोड़ने लगी है.
बीजेपी-शिवसेना के बीच फिर मचा घमासान
राज्यपाल से मुलाकात करते देवेंद्र फडणवीस
(फोटो:ANI)

पहले समझौता, अब खुलकर डिमांड

शिवसेना ने विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने अपनी एक मांग रखी, जिसमें कहा गया कि बराबर सीटों पर महाराष्ट्र में चुनाव लड़ा जाएगा. शिवसेना की इस मांग को बीजेपी ने नकार दिया और शिवसेना को 124 सीटें मिलीं. इस वक्त शिवसेना ने बैकफुट पर आकर समझौता कर लिया. लेकिन चुनाव नतीजों की तस्वीर शिवसेना के लिए काफी अच्छी रही. अब शिवसेना फ्रंट फुट पर आकर डिमांड कर रही है और बीजेपी को 50-50 का वादा याद दिला रही है. शिवसेना का कहना है कि महाराष्ट्र में दोनों दलों को ढाई-ढाई साल सरकार चलाने का मौका मिले.

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पवार ने कम की शिवसेना की पावर

अब जब शिवसेना बीजेपी के सामने जिद पकड़कर अड़ चुकी है, तब एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कुछ ऐसे तेवर दिखाए हैं जो शिवसेना के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं. शरद पवार ने साफ किया है कि जनता ने उन्हें विपक्ष में बैठने का जनादेश दिया है और वो विपक्ष में बैठेंगे. जिससे शिवसेना की बार्गेनिंग पावर कहीं न कहीं कम हुई है. पवार ने ठीक इसी तरह 2014 में भी शिवसेना की बार्गेनिंग पावर बीजेपी को बिना मांगे समर्थन देकर कम कर दी थी.

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