पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दिल्ली दौरे का मतलब होता है- राजनीतिक गलियारों में खलबली. ये खलबली एक बार फिर मची है क्योंकि ममता दीदी फिर दिल्ली में हैं. मकसद है अगले साल 19 जनवरी को कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड में होने वाली ‘फेडलर फ्रंट’ की रैली के लिए विपक्षी नेताओं को बुलाने का.
माना जा रहा है कि अपने इस दौरे के दौरान वो कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव समेत कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात करेंगीं.
21 जुलाई, 2018 को कोलकाता की एक रैली में ममता ने एलान किया था :
हम (क्षेत्रीय दलों के) फेडरल फ्रंट और तमाम (विपक्षी) पार्टियों को बुलाएंगे. हमें कुर्सी की परवाह नहीं है, हमें देश, इसके लोगों और इसकी मिट्टी की चिंता है.ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री पश्चिम बंगाल
साफ है कि 2019 के आम चुनाव से पहले खुद को विपक्ष के नेताओं की लाइन में सबसे आगे खड़ा करने की कवायद पर ममता ने पूरा जोर लगा रखा है.
क्या है ‘फेडरल फ्रंट’ का गणित
‘फेडरल फ्रंट’ गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस पार्टियों का वो समूह है जो जिसे ममता बनर्जी अपनी अगुवाई में खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं. इस सिलसिले में वो लगातार क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं से मुलाकात कर उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही हैं.
ममता बनर्जी का कहना है कि 2019 में 70-80% सीटों पर बीजेपी के साथ सीधी लड़ाई होनी चाहिए. यानी जिस राज्य में जो मजबूत पार्टी है वो बीजेपी के खिलाफ लीड करे. मसलन
पश्चिम बंगाल में टीएमसी, उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी, तेलंगाना में टीआरएस, आंध्रप्रदेश में टीडीपी, दिल्ली में आम आदमी पार्टी बीजेपी से दो-दो हाथ करे. वहां कांग्रेस बीच में ना आए. कांग्रेस पार्टी राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल जैसे राज्यों में मोर्चा संभाले जहां बीजेपी से उसकी सीधी लड़ाई है.
अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए ममता बनर्जी टीआरएस, टीडीपी, डीएमके, बीएसपी, समाजवादी पार्टी और यहां तक कि शिवसेना के संपर्क में हैं.
ममता का फॉर्मूला- फेडरल फ्रंट + कांग्रेस
2019 आम चुनाव के लिए ममता बनर्जी का फॉर्मूला है- फेडरल फ्रंट + कांग्रेस. यानी सरकार फेडरल फ्रंट की बने और कांग्रेस उसे बाहर से समर्थन दे.
ममता इस बात का विरोध करती रही हैं कि 2019 के लिए विपक्ष का प्रधानमंत्री उम्मीदवार राहुल गांधी बनें. उनका मानना है कि सीनियर होने के नाते वो खुद इस पद के लिए ज्यादा मुफीद हैं. ‘फेडरल फ्रंट + कांग्रेस’ का फॉर्मूला इसी सोच से निकला है. वो कहती हैं कि राहुल को प्रधानमंत्री बनाने से ज्यादा कांग्रेस इस बात पर विचार करे कि बीजेपी को सत्ता से बाहर कैसे करना है.
हालांकि कुछ टीएमसी के कुछ नेताओं का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस को लेकर ‘दीदी’ के रुख में थोड़ी नरमी आई है. इसीलिए पहले अपने तमाम कार्यक्रमों से कांग्रेस को दूर रखने वाली ममता इस बार खुद सोनिया गांधी को ‘फेडरल फ्रेंट’ रैली के लिए आमंत्रित कर सकती हैं.
हाल ही में दिल्ली में महिला पत्रकारों से मुलाकात के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि अगर ममता बनर्जी या बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती प्रधानमंत्री बनती हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी. लेकिन इससे पहले अपनी वर्किंग कमेटी की बैठक में कांग्रेस ने राहुल को ही विपक्ष के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किया था.
राहुल गांधी का लचीला रुख और बाकी नेताओं की ‘बिग ब्रदर’ सोच कांग्रेस पार्टी की रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत वो सारे विकल्प खुले रखना चाहते हैं. बहरहाल चुनाव के आखिरी साल में ये तमाम उठापटक लाजमी ही है. लेकिन बीजेपी जिस धुआंधार तरीके से अपनी चुनावी तैयारियों में लगी है उसे देखते हुए विपक्ष को जल्द से जल्द अपनी रणनीति को आखिरी शक्ल देनी होगी. वरना कहीं ऐसा ना हो कि ‘रानी श्रृंगार करती रह गई और मेला खत्म भी हो गया’.
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