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SP-BSP गठबंधन ‘नाकाम’, फिर भी नहीं टूटेगा ‘बुआ-भतीजे’ का रिश्ता!

मायावती ने उम्मीद के मुताबिक परिणाम न आने का बड़ा कारण यादव वोटरों का बीएसपी के पक्ष में ट्रांसफर न होना बताया.

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वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा

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चुनावी नतीजों के 11 दिन बाद बीएसपी ने दिल्ली में समीक्षा बैठक की. सूत्रों की माने तो मायावती ने उम्मीद के मुताबिक परिणाम न आने का बड़ा कारण यादव वोटरों का बीएसपी के पक्ष में ट्रांसफर न होना बताया. मायावती ने तो यहां तक कहा कि अखिलेश यादव अपनी पत्नी डिम्पल को इसलिए नहीं जिता पाये क्योंकि कन्नौज में यादव वोटरों ने उनका साथ नहीं दिया, जबकि हमारे वोटर उनके साथ रहे. सूत्रों की मानें तो बहन जी ने कहा कि गठबंधन से हमें कोई फायदा नही हुआ है लेकिन अखिलेश से रिश्ता कायम रहेगा.

अकेले दम पर बीएसपी लड़ेगी उपचुनाव!

गठबंधन की बदौलत प्रधानमंत्री बनने का सपना बुन रही मायावती अब गठबंधन की गांठ खोलने की तैयारी में लग रही हैं. जिसके संकेत सोमवार को दिल्ली में सांसदों, विधायकों और पार्टी के नेताओं के साथ हुई बैठक में उन्होंने दे दिया है. सूत्रों की माने तो मायावती ने नेताओं को यूपी में विधानसभा की सभी 403 सीटों पर तैयारी करने के लिए कहा है. उनका कहना है कि चुनाव से पहले जोरदार मेहनत कर विधानसभा के परिणाम बेहतर करने की तैयारी करें. साथ ही यूपी में होने वाले उपचुनाव में सभी 11 सीटों पर बीएसपी चुनाव लड़ेगी.

लोकसभा में एसपी-बीएसपी गठबंधन को हाथ लगी निराशा

लोकसभा में बीएसपी को 10 सीटें मिली हैं जबकि एसपी 2014 के पुराने नतीजे 5 सीटों तक ही किसी तरह पहुंच सकी. अभी तक गठबंधन को लेकर अखिलेश की तरफ से कोई बयान नहीं आया है जबकि वो मायावती से ज्यादा नुकसान में हैं. बीएसपी अध्यक्ष का साफ कहना है कि यादव वोट बीएसपी को ट्रांसफर नही हुए हैं जिसके कारण नतीजे खराब आए हैं. वहीं अगर बात करें एसपी की तो दलित वोटों में बीजेपी ने ज्यादा सेंधमारी की है. चुनावी नतीजों के साथ ही ये साफ हो गया था कि यादव वोट तो बीएसपी की ओर गये लेकिन बीएसपी के वोटर बंट गये थे जिसके कारण एसपी के सीटों की गिनती बढ़ नही पायी.

बैठक में शिवपाल का जिक्र

मायावती का मानना है कि, गठबंधन का कोई फायदा नहीं हुआ है. सूत्रों के मुताबिक बैठक में मायावती ने अखिलेश यादव से कहीं ज्यादा नाम शिवपाल यादव का लिया. उन्हें लगता है कि यादव वोटरों को शिवपाल यादव ने बीजेपीको ट्रांसफर करा दिया जिससे नुकसान हुआ है. जबकि खुद शिवपाल फिरोजाबाद से हार गये हैं. मायावती की बैठक से दो अहम बातें निकल कर आई हैं.

मायावती को गठबंधन से भविष्य में कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है लिहाजा वो अपने पुराने फॉर्मूले पर आगे बढ़ेंगी. मतलब दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण को जोड़ने की कोशिश. इसकी शुरुआत भी उन्होंने कर दी है, उन्होंने कहा कि हमें जीत मुस्लिम वोटरों की वजह से मिली है.

मायावती ने बैठक में सीधे तौर पर कहीं अखिलेश को कुछ नही बोला है. जैसे कि हार का कारण यादव वोटरों का ट्रांसफर न होना और इसके लिए शिवपाल को दोषी ठहराना. यानी की दबाव की राजनीति बनाये रखना और बीच का रास्ता भी खुला रहे, जिससे कि अगर फायदा दिखे तो गठबंधन का रास्ता बंद न हो.

अखिलेश यादव पर माया ने सीधे कुछ नहीं बोला!

अगर थोड़ा पीछे जाए तो गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में बीएसपी के समर्थन से एसपी को जीत मिली थी, जिसके बाद से गठबंधन का सिलसिला शुरू हुआ. लेकिन इसी के बाद अखिलेश की तमाम कोशिशों के बाद राज्यसभा चुनाव में बीएसपी के भीमराव अंबेडकर हार गये. बहन जी ने बिना हिचक अखिलेश यादव के राजनीतिक अनुभव पर सवाल खड़े करते हुए गठबंधन पर आगे बढ़ीं. इस बार भी अभी तक उन्होंने अखिलेश यादव पर सीधे कुछ नही बोला है लेकिन कुछ छोड़ा भी नहीं है.

सूत्रों की माने तो बैठक में मायावती ने एक बार फिर गेस्ट हाउस कांड का जिक्र किया और कहा कि इसे भुलाया नही जा सकता है. लेकिन इसमें अखिलेश शामिल नहीं थे. इसके पीछे मंशा यह भी हो सकती है कि अगर किसी समीकरण के तहत सपा मायावती को यूपी के सीएम के तौर पर स्वीकार कर ले तो बुराई क्या है?

कुल मिलाकर दबाव के साथ बुआ का भतीजे के लिये दरवाजा पूरी तरह से बंद नही हुआ है. अब देखना यह है कि, गठबंधन धर्म निभाने के लिए अखिलेश यादव क्या यूपी सीएम की कुर्सी दांव पर लगा सकते हैं ?

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