कांग्रेस से बात बिगड़ने के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने अपने नेक्स्ट मूव के बारे में बता दिया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, अब जनता के बीच जाने का समय आ गया है. इसकी शुरुआत बिहार से होगी. प्रशांत ने अपने पिछले 10 साल के करियर को रोलरकोस्टर कहा. ऐसे में समझते हैं कि आखिर प्रशांत किशोर कौन हैं और उनका 10 साल का रोलरकोस्टर जैसा करियर कैसा रहा?
"वास्तविक मालिक के पास जाने का वक्त आ गया है"
प्रशांत किशोर ने अपने ट्वीट में कहा, लोकतंत्र में एक सार्थक भागीदार बनने और जन समर्थक नीति को आकार देने में मदद करने में मेरे 10 साल, रोलरकोस्टर जैसे रहे. जैसे ही मैं इन पन्नों को पलटता हूं, तो लगता है कि अब वास्तविक मालिकों, लोगों के पास जाने का समय आ गया है. ताकि उनकी समस्याओं को बेहतर तरीके से समझ सकें और ''जन सुराज'' के रास्ते पर आगे बढ़ सकूं. शुरुआत बिहार से.
प्रशांत किशोर के ट्वीट से साफ तौर पर जाहिर हो रहा है कि वो बिहार में खुद की पार्टी शुरू कर राजनीति में एंट्री लेने वाले हैं. ऐसे में समझना जरूरी हो जाता है उनका 10 सालों का सक्सेस रेट क्या रहा, जिसे उन्होंने रोलर कोस्टर जैसा कहा.
बक्सर का लड़का कैसे बना जीत की गारंटी देने वाला PK?
प्रशांत किशोर का नेटिव प्लेस बिहार है. बक्सर में प्रारंभिक पढ़ाई की. इसके बाद हैदराबाद में तकनीकी संस्थान से डिग्री हासिल की और यूनिसेफ के हेल्थ प्रोग्राम से जुड़ गए. साउथ अफ्रीका में काम किया फिर 2011 में 34 साल की उम्र में नौकरी छोड़कर भारत आ गए और गुजरात में पीएम मोदी के कैंपेन से जुड़ गए.
प्रशांत किशोर ने साल 2013 में सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस नाम की मीडिया और प्रचार कंपनी बनाई. इस दौरान उन्होंने साल 2014 के लिए पीएम मोदी के चुनाव कैंपेन में काम किया. चाय पे चर्चा, 3 डी रैली, रन फॉर यूनिटी जैसे कैंपेन लॉन्च किए. चुनाव बाद प्रशांत किशोर ने पीएम मोदी से नाता तोड़ लिया. तब उन्होंने सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (CAG) को बदल कर इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (IPAC) कर दिया.
10 सालों में प्रशांत की जीत का स्ट्राइक रेट 80% रहा है
प्रशांत किशोर ने पीएम मोदी के साथ 2014 से पहले ही काम शुरू कर दिया था, लेकिन चर्चा में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद आए. उन्होंने साल 2014 में पीएम मोदी के साथ, 2015 में बिहार में नीतीश कुमार, 2017 में पंजाब में अमरिंदर सिंह, 2017 में यूपी में राहुल गांधी के साथ, 2019 में आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी, 2019 में महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के साथ, 2020 में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के साथ, 2021 में तमिलनाडु में एमके स्टालिन के साथ और 2021 में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ काम किया.
नीतीश कुमार के लिए बिहार में शुरू किया साइकिल कैंपेन
प्रशांत किशोर की टीम ने साल 2015 में बिहार में नीतीश कुमार के साथ काम किया. IPAC वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, चुनाव के दौरान एक बड़ा प्रोग्राम चलाया गया, जिसमें 42000 गांवों को कवर करते हुए 4 करोड़ लोगों से संपर्क किया गया. तब 5000 वॉलिंटियर्स ने साइकिल के जरिए जन-जन तक संदेश पहुंचाया.
''बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है'' जैसे लोकप्रिय नारे दिए थे. छह महीने के लंबे अभियान के बाद बिहार में महागठबंधन के नेतृत्व वाली सरकार का गठन हुआ.
प्रशांत ने 2017 में पंजाब में अमरिंदर सिंह के साथ काम किया. IPAC के मुताबिक, 11 यूनिक फॉर्मेट में प्रचार किया गया, जिसके बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब के सीएम के रूप में शानदार जीत हुई. राज्य विधानसभा में 77/117 सीटें जीतकर पंजाब में कांग्रेस का यह 25 वर्षों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था.
यूपी में राहुल गांधी के लिए कैंपेन किया, लेकिन हार मिली
2017 के यूपी चुनाव में राहुल गांधी के लिए कैंपेन की बागडोर संभाली. किसानों के लिए कैंपेन चलाया. राहुल गांधी ने किसानों के मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए देवरिया से दिल्ली तक की 870 किलोमीटर की ऐतिहासिक यात्रा शुरू की. इस अभियान के जरिए राज्य में 2 करोड़ किसानों ने सरकार बनने के बाद तत्काल कृषि ऋण माफी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया. हालांकि यूपी चुनाव कांग्रेस नहीं जीत सकी.
प्रशांत ने 2019 में जगन मोहन रेड्डी के लिए काम किया. 17 ऑन-ग्राउंड और 18 ऑनलाइन कैंपेन के जरिए बूथ स्तर के पुनर्गठन पर फोकस किया. वाईएसआर जगन रेड्डी ने 341 दिनों में अपनी 3648 किलोमीटर लंबी पदयात्रा के दौरान 2 करोड़ से अधिक लोगों से मुलाकात की. 'वाईएसआर कुटुंबम' ने सामुदायिक संपर्क को मजबूत किया, जिससे 151/175 सीटों की शानदार जीत हुई. वाईएसआरसीपी के गठन के बाद से यह सबसे ऐतिहासिक जीत थी.
प्रशांत ने 2019 में ही उद्धव ठाकरे के लिए चुनाव कैंपेन की कमान संभाली, जिसमें 10 महीने के अभियान में 4000 किमी लंबी जन संपर्क यात्रा, 1000+ सार्वजनिक बातचीत और 40 लाख से अधिक घरों तक सीधे पहुंचने का काम किया गया. नतीजा ये हुआ कि 20 सालों में पहली शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार बनी.
2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने अरविंद केजरीवाल के चुनाव कैंपेन को लीड किया. दिल्ली के 35 लाख से अधिक घरों में 15 टाउन हॉल, 70 पदयात्राएं, 700 मोहल्ला सभाओं और घर-घर पहुंच वाले 90 दिनों का अभियान चलाया गया, जिसका नतीजा हुआ कि 62/70 विधानसभा सीटों पर आम आदमी पार्टी की जीत हुई.
एमके स्टालिन के साथ प्रशांत ने 2021 में काम किया. DMK प्रमुख एम के स्टालिन ने 3 फरवरी 2020 को घोषणा की कि किशोर को आगामी 2021 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के लिए एक पार्टी रणनीतिकार के रूप में साइन किया गया है. प्रशांत ने कैंपेन के दौरान डीएमके के 40 लाख नए सदस्य सफलतापूर्वक शामिल कराए. डिजिटल प्रचार सहित तमाम कैंपेन का नतीजा हुआ कि एमके स्टालिन पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए.
प्रशांत किशोर ने साल 2021 में ममता बनर्जी के साथ काम किया. कैंपेन के जरिए दो साल में 12 मॉड्यूल के जरिए सीधे 8 करोड़ से अधिक लोगों तक पहुंचने का प्लान बनाया गया. नतीजा ये हुआ कि ममता की बड़ी जीत हुई. हालांकि इसके बाद गोवा विधानसभा चुनाव में भी टीएमसी के लिए काम किया, लेकिन वहां ज्यादा सफलता नहीं मिली.
2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में AITC और 2021 तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में डीएमके की जीत के बाद प्रशांत किशोर ने घोषणा की कि वह एक चुनावी रणनीतिकार के रूप में पद छोड़ रहे हैं. 2 मई 2021 को एनडीटीवी के साथ एक इंटरव्यू में किशोर ने कहा, मैं जो कर रहा हूं उसे जारी नहीं रखना चाहता. मैंने काफी किया है. मेरे लिए एक ब्रेक लेने और जीवन में कुछ और करने का समय है.
अब वापस प्रशांत किशोर के ट्वीट पर आते हैं. उन्होंने पहली बार बिहार से राजनीति जुड़ाव का जिक्र नहीं किया है. उन्होंने 2015 में नीतीश कुमार को चुनाव जीतने में मदद की थी, जिसके बाद जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया था. बाद में कैबिनेट मंत्री का भी दर्जा मिला. लेकिन CAA और NRC के मुद्दे पर नीतीश कुमार से मतभेद हुआ और उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिए गए.
इससे बाद उन्होंने कई पार्टियों के लिए काम किया, लेकिन अब शायद प्रशांत किशोर उस रोलरकोस्टर की सवारी छोड़ रहे हैं, जिसमें 10 साल तक झूलते रहे. अब उन्होंने खुद के लिए रणनीति बनाकर जनता के बीच स्थापित होने का नया प्रोजेक्ट लिया है, लेकिन क्या यहां भी वैसी सफलता मिलेगी, जैसे अन्य पार्टियों के साथ मिली? इसका जवाब वक्त पर छोड़ना बेहतर होगा.
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