पंजाब कांग्रेस में आंतरिक कलह शांत होती नहीं दिख रही है. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) और नवनिर्वाचित पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Siddhu) के बीच 6 महीने बाद होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में अपना दावा मजबूत करने को लेकर 'पावर पॉलिटिक्स' चरम पर है.
दूसरी तरफ पार्टी आलाकमान के लिए विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राज्य यूनिट में नंबर 1 और 2 के बीच संघर्ष सिरदर्द बना हुआ है. ऐसे में पंजाब कांग्रेस में कैप्टन-सिद्धू के इस पावर पॉलिटिक्स और बदलते राजनीतिक समीकरण को पिछले 20 दिनों के घटनाओं पर नजर डालते हैं.
1. सिद्धू की राहुल-प्रियंका गांधी के साथ मुलाकात
सिद्धू के PCC अध्यक्ष बनने के पहले पंजाब कांग्रेस में बढ़ते असंतोष को शांत करने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने प्रयास तेज किए थे. 30 जून को कांग्रेस की जनरल सेक्रेटरी प्रियंका गांधी वाड्रा ने सिद्धू से मुलाकात की थी. बाद में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ भी सिद्धू की बैठक हुई.
2. सोनिया गांधी को सीएम अमरिंदर सिंह की चिट्ठी
सिद्धू को PCC अध्यक्ष बनाए जाने के फार्मूले की खबर के साथ ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया और इसको लेकर 16 जुलाई को सीधे कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख डाली और अपनी नाराजगी जताई.
3. हरीश रावत की चंडीगढ़ में कैप्टन से मुलाकात
पार्टी महासचिव हरीश रावत को पंजाब विवाद खत्म करने के लिए फार्मूला सुझाने और पंजाब में नेताओं से मुलाकात करके सीधे सोनिया गांधी को रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी दी गई थी. 17 जुलाई को उन्होंने चंडीगढ़ में कैप्टन से मुलाकात की, जहां कैप्टन ने कहा कि "सोनिया गांधी का फैसला सर्वमान्य होगा".
4. अमरिंदर की नाराजगी के बावजूद सिद्धू बने PCC अध्यक्ष
जब सिद्धू कैप्टन के गढ़ अमृतसर में मुलाकातों के जरिए आलाकमान पर PCC अध्यक्ष बनाए जाने का दबाव बना रहे थे,तब अमरिंदर सिंह दिल्ली में पंजाब कांग्रेस के सांसदों के साथ मीटिंग कर रहे थे. हालांकि अंत में सिद्धू ने बाजी मारी और सोनिया गांधी ने उन्हें पंजाब कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया.
5. चार कार्यकारी अध्यक्ष पर भी कैप्टन को किया नजरअंदाज
सिद्धू के अलावा पार्टी आलाकमान ने चार कार्यकारी अध्यक्षों को भी नियुक्त किया है. हालांकि इन पदों पर भी अमरिंदर सिंह के सुझाव को नजरअंदाज किया गया. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार वह कैबिनेट मंत्री विजय इंदर सिंह, राज कुमार छब्बेवाल, तारसेन डी.सी और अजीत इंदर सिंह को इस पद पर चाहते थे.
जबकि आलाकमान ने इसके लिए संगत सिंह, सुखविंदर सिंह डैनी, पवन गोयल और कुलजीत सिंह नागर को चुना.
5. कैप्टन की मांग- सिद्धू माफी मांगें
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 17 जुलाई को ही कांग्रेस महासचिव और पंजाब प्रभारी हरीश रावत के सामने पार्टी आलाकमान को साफ संकेत दे दिया कि सिद्धू ने 'अपमानजनक ट्वीट करके पंजाब कांग्रेस और उनकी सरकार के कामकाज पर सवाल खड़ा किया है'. जब तक सिद्धू सार्वजनिक तौर पर माफी नहीं मांग लेते कैप्टन ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया है.
6. माफी की राजनीति- कोई झुकने को तैयार नहीं
कैप्टन के अलावा उनके मीडिया एडवाइजर रवीन ठुकराल ने भी माफी की शर्त रखी है. हालांकि तृप्त बाजवा, सुखविंदर सरकारिया और चरणजीत चन्नी ने सुलह कराने की कोशिश की थी और "कैप्टन को बड़ा दिल रखने और सिद्धू को प्रताप बाजवा की तरह माफ" कर देने की मांग की थी.
7. कैप्टन के खिलाफ सिद्धू समर्थक
लेकिन दूसरी तरफ सिद्धू गुट भी झुकने को तैयार नहीं है. जालंधर कैंट के विधायक और सिद्धू के करीबी परगट सिंह ने लोगों से किया वादा पूरा न करने का आरोप लगाते हुए उल्टे कैप्टन से ही माफी की मांग कर दी है.
8. स्वर्ण मंदिर में 'शक्ति प्रदर्शन'
नवजोत सिंह सिद्धू ने 21 जुलाई को पंजाब कांग्रेस के 62 विधायकों के जत्थे के साथ स्वर्ण मंदिर में माथा टेका. इसके बाद वह प्रसिद्ध दुर्गियाना मंदिर भी पहुंचे. बताया जा रहा है कि यह सीएम अमरिंदर के सामने सिद्धू का शक्ति प्रदर्शन है.
वर्तमान में पंजाब विधानसभा में कांग्रेस के 77 विधायक हैं. इनमें से 62 को अपने पाले में दिखाकर सिद्धू अगले चुनाव के लिए अपनी दावेदारी मजबूत कर रहे हैं.
9. शुरुआत से ही कैप्टन-सिद्धू में रही दूरी
कथित तौर पर कैप्टन ,2017 में पंजाब विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सिद्धू को कांग्रेस में शामिल किए जाने के पक्ष में नहीं थे. यह थोड़ा और स्पष्ट हो गया जब नवंबर 2018 में सिद्धू ने सार्वजनिक रूप से कहा था "मेरे कप्तान राहुल गांधी हैं, जो उनके (अमरिंदर) भी कप्तान हैं".
2019 में सिद्धू से उनका मंत्रालय छीनकर पावर मिनिस्ट्री पकड़ाया गया. बाद में सिद्धू ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.
10. इतिहास खुद को दोहरा रहा है?
गौरतलब है कि कैप्टन 1997 में अकाली दल के साथ थे और जब प्रकाश सिंह बादल ने पार्टी अध्यक्ष रहते हुए उन्हें उनके पसंदीदा सीट, तलवंडी साबो से टिकट नहीं दिया तो वह अकाली दल को अलविदा कहकर कांग्रेस में आ गए. जब 2002 में उन्हें ठीक चुनाव के पहले पार्टी ने पंजाब की कमान सौंपी तो कांग्रेसियों ने वैसा ही विरोध किया था जैसा कि आज कैप्टन खुद सिद्धू का कर रहे हैं.
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