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राहुल गांधी के हाथ से सांसदी छीनना विपक्षी एकता के लिए 'आपदा में अवसर' क्यों है?

Rahul Gandhi के लिए KCR, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे कांग्रेस के प्रतिद्वंद्वी बोलते नजर आ रहे हैं

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मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की सजा और लोकसभा से उनकी तत्काल अयोग्यता भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण क्षण है. विपक्ष के एक टॉप लीडर को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है क्योंकि एक अदालत ने पीएम मोदी के सरनेम पर उनकी नेगेटिव टिप्पणी को 'मानहानि' माना है.

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अब, कांग्रेस और उसकी कानूनी टीम उनकी दोषसिद्धि के खिलाफ अपील कर सकती है और इसे रद्द किया जा सकता है या नहीं भी किया जा सकता है. लेकिन फैसले चाहे जो हो इसका राजनीतिक प्रभाव बना रहेगा और विपक्ष के लिए यह एक सुनहरा अवसर हो सकता है.

एक आवाज में एक साथ बोलता विपक्ष

हर प्रमुख विपक्षी नेता ने इसकी आलोचना की है. यहां तक ​​कि उन लोगों ने भी जिनके कांग्रेस के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इसे 'एक पार्टी, एक नेता की तानाशाही' करार दिया और कहा, 'मोदी सरकार ब्रिटिश शासन से ज्यादा खतरनाक है. यह सिर्फ कांग्रेस की लड़ाई नहीं है. यह देश को बचाने की लड़ाई है."

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, "पीएम मोदी के नए भारत में, विपक्षी नेता बीजेपी के मेन टारगेट बन गए हैं! जहां आपराधिक पृष्ठभूमि वाले बीजेपी नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है, वहीं विपक्षी नेताओं को उनके भाषणों के लिए अयोग्य ठहराया गया है."

भारतीय राष्ट्र समिति के प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने इसे "भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काला दिन" करार दिया और विपक्षी दलों से अपने मतभेदों को दूर करने और "संवैधानिक मूल्यों और लोकतंत्र को बचाने के लिए एक साथ आने" का आग्रह किया.
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समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने विपक्षी नेताओं के उत्पीड़न को बीजेपी की एक सोची समझी साजिश बताया और याद दिलाया कि उनकी पार्टी के नेता आजम खान और उनके बेटे को भी इसी तरह से अयोग्य घोषित किया गया था।

शिवसेना-यूबीटी नेता और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने कहा, 'यह लोकतंत्र की हत्या है. चोर को चोर कहना अपराध हो गया है.'

विपक्ष यह का स्टैंड इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कांग्रेस ने केंद्र द्वारा टारगेट पर लिए विपक्षी नेताओं का हमेशा समर्थन नहीं किया है.

उदाहरण के लिए, दिल्ली कांग्रेस ने कथित शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी का स्वागत किया था और तेलंगाना कांग्रेस बीआरएस नेता के कविता की गिरफ्तारी की मांग कर रही है.

तृणमूल कांग्रेस के साथ भी कांग्रेस पार्टी के कटु रिश्ते रहे हैं. हालांकि, निंदा और विरोध करने के लिए विपक्ष का एकसाथ आना इन दलों को आगे बढ़ने के लिए कॉमन ग्राउंड दे रहा है.

विपक्ष के लिए यह बड़ा मौका क्यों है?

मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी, आजम खान की अयोग्यता, शिवसेना का दो फाड़ होगा- संकेत तो हमेशा से थे लेकिन अब राहुल गांधी की अयोग्यता ने यह और भी स्पष्ट कर दिया है कि विपक्ष के लिए यहां दांव व्यक्तिगत अहंकार से कहीं अधिक है.

अब बात यह नहीं है कि विपक्षी खेमे में प्रधानमंत्री का चेहरा कौन होगा, विपक्ष में अब भावना यह है कि यह लोकतंत्र के अस्तित्व की लड़ाई है. ऐसी स्थिति में कई विपक्षी नेता राहुल गांधी, आजम खान, मनीष सिसोदिया और के कविता को अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के रूप में नहीं बल्कि केंद्र के सताए हुए साथी नेता के रूप में देख रहे हैं.

लेकिन अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अन्य विपक्षी नेताओं को भी इसी नजरिए से देखेगी?

चुनावी तौर पर आपसी सहयोग टेढ़ी खीर हो सकती है क्योंकि आप, टीएमसी, बीआरएस और एसपी जैसी पार्टियों के साथ कांग्रेस सीधी प्रतिस्पर्धा में है.

कांग्रेस के भीतर का एक खेमा संशय बटोरे हुआ है और इन विपक्षी नेताओं द्वारा दिखाई जा रही 'एकजुटता' को चुनावी दृषिकोण से तौर रहा है. कहीं ये विपक्षी पार्टियां इसके जरिये अपने-अपने राज्यों में बीजेपी विरोधी वोटों पर कब्जा करना का प्रयास तो नहीं कर रही?

हालांकि, चुनावी प्रतिस्पर्धा के बावजूद आने वाले हफ्तों में विपक्षी दलों के एकसाथ रैलियों, विरोध प्रदर्शनों और याचिकाओं में शामिल होने की संभावना है.

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