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RCP की विदाई: नीतीश को क्या मिला? BJP-JDU गठबंधन पर क्या पड़ेगा असर?

Bihar Politics: आरसीपी सिंह के बाहर जाने से नीतीश कुमार को क्या हासिल हुआ? क्या हैं आरसीपी के आगे के विकल्प?

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बिहार के सत्ताधारी दल जेडीयू में सियासी तूफान आया हुआ है. पार्टी में कभी नंबर-2 की पोजिशन पर रहे आरसीपी सिंह (RCP Singh Resign) ने शनिवार को पत्रकारों के सामने इस्तीफा दे दिया. फिलहाल इस सियासी घमासान से बिहार में भविष्य की राजनीति पर कई तरह के अनुमानों का दौर चालू हो गया है. आखिर बिहार में मौजूदा सरकार (Nitish Government) का आधा कार्यकाल पूरा हो चुका है.

आरसीपी सिंह पहले प्रशासनिक अधिकारी, फिर नेता रहते हुए नीतीश कुमार के हनुमान की भूमिका में रहे. कहा जाता है कि आरसीपी, बिहार के इस दिग्गज नेता के बड़े राजदार भी हैं.

रविवार को पत्रकारों के सामने इस्तीफा देते हुए उन्होंने जमकर नीतीश कुमार और उनके करीबी नेताओं पर भड़ास निकाली. आरसीपी ने यहां तक कह दिया कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, लेकिन वे सात जन्म तक ऐसा नहीं कर पाएंगे.
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जवाब में रविवार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने आज प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरसीपी सिंह को निशाने पर लिया और कहा कि पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले नेताओं पर कार्रवाई की जा रही है. जेडीयू को डूबता हुआ जहाज बताने के आरसीपी के बयान पर ललन सिंह ने कहा, "जेडीयू डूबता नहीं, बल्कि दौड़ता हुआ जहाज है."

क्या बीजेपी में शामिल हो सकते हैं आरसीपी?

राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए आरसीपी के कई बयान पार्टी और नीतीश कुमार से अलग लाइन पर रहे. बल्कि कई बार यह बीजेपी के ज्यादा पक्ष में रहे. केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने का फैसला भी आरसीपी का खुद का था. ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि आरसीपी के लिए बीजेपी एक अच्छा विकल्प हो सकती है.

लेकिन अगर ऐसा होता है, तो पहले से ही भयानक खींचतान का शिकार गठबंधन बदतर स्थिति में पहुंच जाएगा. ध्यान रहे आज ही जेडीयू ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर रहने का फैसला किया है. पार्टी केंद्र में दो मंत्री चाहती थी, लेकिन बीजेपी एक ही पद देने पर राजी थी. इसे बिहार में जेडीयू के कद को सीमित रखने की रणनीति माना जा रहा था.
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क्या पड़ेगा अगले चुनावों पर असर?

आरसीपी को कुशल रणनीतिकार माना जाता रहा है. हालांकि उनका जमीनी कद जेडीयू के शीर्ष नेताओं में कई के बराबर नहीं है. लेकिन संगठन के स्तर पर वे हमेशा काफी ताकतवर रहे हैं. ऐसे में पार्टी में आगे संगठन के स्तर पर कुछ टूट-फूट होने के आसार भी लगाए जा रहे हैं. हालांकि इसका चुनावी समीकरण पर कितना प्रभावी असर होगा, इसका अंदाजा मुश्किल ही है.

लेकिन अगर आरसीपी बीजेपी के साथ जुड़ते हैं, तो अगली बार गठबंधन पर भी इसका असर हो सकता है. फिर यह देखने वाली बात होगी कि जेडीयू इस स्थिति में कितना कड़ा रुख अपने सहयोगी पर अख्तियार करेगी और अगर इसे मान भी लेगी, तो सीट बंटवारों में कैसे संतुलन बनाएगी.

सामने आई जेडीयू-बीजेपी की खींचतान

ललन सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलकर कहा कि "आरसीपी सिंह को नया चिराग बनाने की कोशिश की जा रही थी." यहां ललन सिंह का इशारा चिराग पासवान की तरफ था, जिन्होंने 2020 में जेडीयू के साथ गठबंधन से अलग चुनाव लड़ा था. कुछ लोगों का कहना था कि यह जेडीयू को उसकी सीटों पर कमजोर करने के लिए बीजेपी का दांव था.

इसके अलावा जेडीयू, कई मुद्दों पर सहयोगी बीजेपी से अलग रुख रखती रही है. हाल में जातीय जनसंख्या के मुद्दे पर भी ऐसा देखा गया था. फिर पिछले दिनों नीतीश कुमार की आरजेडी नेताओं से मुलाकात से भी नई हवाओं को दिशा मिली थी. मतलब साफ है कि गठबंधन में चीजें जरूरत से ज्यादा खराब हो चुकी हैं. ऐसे में अगले विधानसभा चुनावों में यह गठबंधन कैसे आकार लेता है, यह देखने वाली बात होगी.

नीतीश कुमार को कितना फायदा?

नीतीश कुमार को अपनी पार्टी में एकछत्र राज के लिए जाना जाता है. कम से कम उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को 'किनारे' लगाने के इतिहास से तो ऐसा ही समझा जाता है. हाल तक पार्टी के बड़े नेता रहे शरद यादव के साथ हुए सियासी खेल को कौन भूल सकता है.

आरसीपी की बीजेपी से बढ़ती नजदीकियां, फिर संगठन पर पैठ से कहीं न कहीं नीतीश कुमार के समीकरण खराब होने की संभावना तो थी ही, ऐसे में नीतीश एक बार फिर संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि जेडीयू के सर्वेसर्वा वही हैं.

बदल रही है बिहार की राजनीति की हवा

राजनीति में समीकरण बदलते देर नहीं लगती. पिछले दिनों इफ्तार के मौके पर लालू प्रसाद यादव से मिलने खुद नीतीश कुमार उनके घर पहुंचे थे. नीतीश को तेजस्वी यादव ने न्यौता दिया था. इफ्तार के बाद नीतीश कुमार तेजस्वी को खुद उनकी कार तक छोड़ने आए. मीडिया में तस्वीरें भी आईं और पुराने गठबंधन को नए करने की तमाम चर्चाएं भी शुरू हो गईं.

इसके बाद जातीय जनगणना पर तो और भी गजब तब हुआ जब तेजस्वी यादव ने दिल्ली तक मार्च करने का ऐलान किया और नीतीश कुमार के साथ बंद कमरे में बैठक की. कहा जाता है कि तबसे सियासी बयानबाजी में तेजस्वी, नीतीश कुमार पर नरम भी दिखाई दे रहे हैं.

खैर अब आगे बिहार की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है, इसके लिए तो आने वाले दिनों का ही इंतजार करना होगा. लेकिन फिलहाल नजरें जमाकर रखने की जरूरत है, पता नहीं आगे क्या बड़ा 'खेल' हो जाए.

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