कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने सरकार पर सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक लाकर इस अहम कानून को कमजोर करने का आरोप लगाया. वहीं बीजेपी ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि विपक्ष लोगों के बीच अनावश्यक भ्रम पैदा करना चाहता है और इस संशोधन से सूचना आयोग और मजबूत होगा. सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर का कहना है कि एक वर्ग ऐसा है जो सरकार को बदनाम करने की लगातार कोशिश कर रहा है. RTI एक्ट में संशोधन से सभी सरकारी विभागों में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए सरकार पूरी तरह से प्रतिबद्ध है.
संसद में RTI संशोधन विधेयक पर क्या-क्या हुआ?
कांग्रेस की क्या है दलील?
लोकसभा में सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के शशि थरूर ने विधेयक को वापस लिए जाने और संसदी की स्थाई समिति को भेजने की मांग की. थरूर ने कहा कि सरकार इस विधेयक के जरिए सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और कार्यकाल का फैसला कर सकेगी. सरकार इसे छोटा संशोधन बता रही है लेकिन ये सूचना के अधिकार (आरटीआई) की रूपरेखा को कमजोर करने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा कि सरकार आरटीआई को ‘बिना पंजे वाला शेर’ बनाने की कोशिशों के तहत इस संशोधन को लेकर आई है.
थरूर ने कहा कि सरकार इस संशोधन के जरिए राज्यों में भी सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों की नियम, शर्तें तय करेगी. थरूर ने आरोप लगाया, ‘
ये न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन नहीं बल्कि इसके उलट सर्वोच्च स्तर का राजनीतिक निराशावाद है.
सरकार की संशोधन विधेयक पर क्या है दलील?
इससे पहले विधेयक को चर्चा और पारित करने के लिए पेश करते हुए कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि आरटीआई और उसकी ऑटोनॉमी को कमजोर करने की बातें निराधार हैं. उन्होंने कहा कि इस संशोधन के जरिए हम सूचना आयोगों के कामकाज को संस्थागत बनाएंगे.
चर्चा में भाग लेते हुए थरूर ने कहा कि विधेयक बिना किसी सार्वजनिक बातचीत के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा, ‘‘सरकार मानती है कि संसद रबर स्टांप की तरह काम करेगी. जो विधेयक लाएंगे, पारित हो जाएगा.’’ थरूर ने कहा कि सरकार को इस संशोधन विधेयक को वापस लेना चाहिए और समझ के लिए संसद की स्थाई समिति को भेजना चाहिए. सरकार को स्थाई समिति का भी तुरंत गठन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि कांग्रेस इतने खतरनाक विधेयक को स्वीकार नहीं करेगी.
'मूल भावना में कोई बदलाव नहीं'
चर्चा में शामिल होते हुए बीजेपी के जगदंबिका पाल ने कहा कि इस संशोधन के माध्यम से सरकार 2005 के मूल आरटीआई कानून की भावना में कोई बदलाव नहीं कर रही. उन्होंने कहा कि विपक्षी सदस्य ऐसा भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारी सरकार आरटीआई को कमजोर करना चाहती है जबकि सरकार को इस तकनीकी संशोधन से केवल नियम बनाने का अधिकार मिलेगा. पाल ने कहा कि आज का संशोधन केवल ढांचागत मजबूती के लिए किया गया प्रशासनिक संशोधन है. बाकी सूचना के अधिकार कानून के तहत सारे प्रावधान पूरी तरह वैसे ही हैं.
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने आरटीआई विधेयक को और मजबूत किया है. अगर सरकार कानून को कमजोर करना चाहती तो पिछली लोकसभा में सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति समिति में शामिल नहीं करती जबकि उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिल सका था.
बीजेपी सांसद ने ये भी कहा कि मोदी सरकार के पिछले पांच साल के कार्यकाल में आरटीआई के माध्यम से कोई घोटाला उजागर नहीं हुआ जबकि यूपीए सरकार में राष्ट्रमंडल खेल घोटाला और 2जी स्पेक्ट्रम जैसे घोटाले आरटीआई के जरिए उजागर हुए थे.
दूसरे विपक्षी दलों का क्या कहना है?
डीएमके के ए राजा ने आरोप लगाया कि सरकार ये जताना चाहती है कि वो संख्याबल का इस्तेमाल लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए कर सकती है. उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के वेतन की तुलना मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन से किए जाने पर कहा कि चुनाव आयोग के बिना लोकतंत्र कुछ समय चल सकता है लेकिन आरटीआई हमें संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की आजादी के मूलभूत अधिकार के तहत मिला है. इसलिए तुलना नहीं की जा सकती. राजा ने आरोप लगाया कि सरकार सूचना आयुक्तों को अपना ‘सेवक’ बनाना चाहती है. उन्होंने कहा कि अगर आज ये विधेयक पारित हो जाता है तो लोकतंत्र के लिए ‘काला दिन’ होगा और जनता कभी इसके लिए माफ नहीं करेगी.
22 जुलाई को पेश हुआ है RTI संशोधन विधेयक
इससे पहले शुक्रवार को विपक्ष के कड़े विरोध और कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस के वाक आउट के बीच सरकार ने लोकसभा में सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 पेश किया था. विधेयक में ये प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा की शर्ते केंद्र सरकार तय करेगी.
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