बिहार में लालू यादव की कुर्ता फाड़ होली हो, छठ पूजा या फिर इफ्तार पार्टी, सुर्खियों में बनना तय है. हालांकि जेल में रहने की वजह से लालू यादव (Lalu Prasad Yadav) की पार्टी के लिए त्योहारी रंग फीका पड़ गया था. लेकिन कई सालों बाद एक बार फिर आरजेडी ने इफ्तार पार्टी (Iftar Party) का आयोजन किया है. लेकिन इस बार का राजनीतिक इफ्तार या कहें इफ्तार डिप्लोमेसी थोड़ी अलग है. लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव (Tejashwi yadav) ने रमजान के बहाने बीजेपी के ताजा-ताजा 'दुश्मन' बने नेताओं को गले लगाने का सोचा है.
तेजस्वी यादव ने खुद को पीएम मोदी के 'हनुमान' कहने वाले चिराग पासवान (Chirag Paswan) और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) को इफ्तार की दावत भेजी है.
22 अप्रैल को राबड़ी देवी के आवास पर आयोजित इफ्तार पार्टी में ऐसे तो बहुत से नेता आएंगे लेकिन चिराग पासवान और मुकेश सहनी का आना राजनीतिक गलियारों में एक नए समीकरण की आहट हो सकती है.
युवाओं का होगा मिलन?
दरअसल, बीजेपी से चिराग और मुकेश सहनी दोनों नाराज हैं. पहले चिराग पासवान को बीजेपी ने एनडीए गठबंधन से बाहर का रास्ता दिखाया फिर मुकेश सहनी के सभी विधायकों को अपने पाले में ले लिया. यहां तक की मुकेश सहनी को बिहार मंत्रिमंडल से भी आउट कर दिया.
चिराग पासवान पीएम मोदी को अपना 'राम' बताते रहे लेकिन 2020 विधानसभा चुनाव में एलजेपी (Lok Janshakti Party) और जेडीयू में जब तकरार बढ़ी तो बीजेपी ने जेडीयू का साथ दिया और चिराग को साइड कर दिया. यहां तक इस लड़ाई में चिराग के पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी का चुनाव चिन्ह बंगला छिन गया और पिता के 12 जनपथ बंगले से भी बेदखल कर दिया गया.
चिराग के जख्म पर आरजेडी लगातार मरहम लगाने का काम कर रही है. ये पहला मौका नहीं है जब आरजेडी की नजर चिराग पासवान पर है. चाहे चिराग पासवान की एलजेपी में टूट का वक्त रहा हो या फिर रामविलास पासवान के 12 जनपथ स्थित बंगले को खाली कराने की मुद्दा हो, तेजस्वी चिराग के समर्थन में बोलते नजर आए हैं. वहीं पिछले साल राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने यहां तक कहा था कि बिहार में वह तेजस्वी और चिराग पासवान को एक साथ गठबंधन में देखना चाहते हैं. लालू यादव ने तब कहा था कि लोक जनशक्ति पार्टी में जो कुछ भी हुआ है उसके बावजूद वह चिराग पासवान को ही एलजेपी का नेता मानते हैं.
वहीं दूसरी ओर मुकेश सहनी भी लगातार लालू यादव की तारीफ करते दिखते हैं, यहां तक कि बोचहां सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी से लड़ाई के बीच मुकेश सहनी ने कहा था कि आज की स्थिति को देख कर मुझे लालू प्रसाद की बात नहीं मानने का अफसोस हो रहा है. अगर उस वक्त हम उनकी बात को मान लेते, तो शायद आज यह दिन नहीं देखना पड़ता.
अब सन ऑफ मल्लाह कहे जाने वाले मुकेश सहनी हों या राम विलास के सन चिराग पासवान, दोनों को ही बीजेपी के हाथों 'धोखा' मिला है. और इस धोखे के बाद दोनों के पास ही बहुत सीमित विकल्प बचा है. ऐसे में देखा जाए तो तेजस्वी, चिराग और मुकेश सहनी तीनों युवाओं की पहली लड़ाई बीजेपी से ही है. इसलिए लोगों की नजर तीनों के साथ आने पर है.
चिराग और तेजस्वी के साथ आने से क्या कुछ बदल सकता है?
लालू यादव की पार्टी के बारे में कहा जाता रहा है कि आरजेडी M-Y यानी मुस्लिम और यादव वोटरों की राजनीति करती है, लेकिन पिछले कुछ वक्त से तेजस्वी ए टू जेड की राजनीति की बात कर रहे हैं.
ऐसे में ये माना जा रहा है कि चिराग पासवान के सहारे तेजस्वी यादव बिहार के दलित वोटरों तक अपनी पहुंच मजबूत कर सकते हैं, क्योंकि चिराग पासवान के पिता राम विलास पासवान दलितों को बड़े नेता के रूप में जाने जाते थे. वहीं बिहार में यादवों की आबादी लगभग 14 फीसदी है. मुसलमान करीब 16 फीसदी तो दलित समुदाय की आबादी करीब 15 फीसदी है.
यही नहीं भले ही बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी एक ही सीट जीत पाई हो लेकिन एलजेपी ये दावा करती रही है कि उसने करीब तीस सीटों पर नीतीश कुमार की जेडीयू को हराने का काम किया है. ऐसे में तेजस्वी की नजर वोट पाने और काटने दोनों पर होगी.
इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि अभी हाल ही में हुए बोचहां विधानसभा उपचुनाव में मुकेश सहनी और बीजेपी की लड़ाई में तेजस्वी यादव की आरजेडी को फायदा हुआ. आरजेडी के अमर पासवान ने BJP प्रत्याशी बेबी कुमारी को 36,653 मतों से हराया. जबकि मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी की उम्मीदवार गीता कुमारी को करीब 29 हजार वोट मिले थे, मतलब साफ है कि मुकेश सहनी ने बीजेपी का वोट काटा और आरजेडी को उपचुनाव में बड़ी जीत मिली.
तेजस्वी यादव की नजर फिलहाल 2024 के लोकसभा चुनाव पर है, उसके बाद बिहार के अगले विधानसभा चुनाव पर. ऐसे में वो तमाम तरीका अपनाना चाहेंगे जिससे उनकी पार्ची बीजेपी और जेडीयू से मुकाबले में जीत सके.
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