उन्नाव गैंगरेप और हत्या मामले के आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में उत्तर प्रदेश पुलिस को 9 महीने लग गए, लेकिन उसी विधायक को सीबीआई ने महज चंद घटों के भीतर गिरफ्तार कर लिया. आखिर ऐसा क्यों हुआ कि जिस विधायक की ताकत के आगे सूबे की बीजेपी सरकार बेहद कमजोर नजर आ रही थी, उसी विधायक को पलक झपकते सलाखों के पीछे भिजवा दिया गया?
इस तुरंत कार्रवाई के जरिए कहीं यह बताने की कोशिश तो नहीं की जा रही है कि उत्तर प्रदेश में जो कुछ भी गड़बड़ हुआ उसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिम्मेदार हैं, लेकिन अब बड़े बॉस नरेंद्र मोदी ने कमान अपने हाथ में ले ली है और वो सब कुछ ठीक कर देंगे. क्या यह बीजेपी के अंदर की लड़ाई के संकेत हैं?
अब तक कहां थी बीजेपी की टॉप लीडरशीप?
नरेंद्रो मोदी देश के प्रधानमंत्री होने के साथ ही यूपी के बनारस से सासंद हैं. सूबे की हर घटना-दुर्घटना पर वो और उनकी टीम चौकस नजर रखती है. यहां किसी भी नामचीन का निधन हो या जन्मदीन उनका ट्वीट जरूर आता है. फिर गैंगरेप का इतना बड़ा मामला उनकी नजरों से इतने दिन ओझल रहा इस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल लगता है. यही नहीं उनके हनुमान कहे जाने वाले और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी इस मामले में आखिर तक शांत रहे.
हैरानी की बात यह भी है कि विधायक की गिरफ्तारी से एक दिन पहले 11 अप्रैल को अमित शाह लखनऊ में ही थे. उस दिन तो आरोपी विधायक की गिरफ्तारी को लेकर चर्चा जोरों पर थी. लेकिन शाह ने एक शब्द नहीं कहा. दूसरी तरफ ये खबरें छन-छन कर प्रचारित की जाती रही कि पार्टी अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री की जमकर क्लास लगाई है. लिहाजा एक्शन होने ही वाला है.
इन्हीं खबरों और कयासों के बीच अमित शाह चले गए. फिर कुछ घंटे बाद आरोपी विधायक की गिरफ्तारी की अफवाहों ने और जोर पकड़ा. देर रात विधायक के एसएसपी लखनऊ के घर पहुंचने की खबर आयी. मीडिया के बड़े तबके ने यह मान लिया कि अब विधायक गिरफ्तार हो गया. लेकिन असली कहानी यहां से शुरू होती है.
अभी इक्का-दुक्का खबरची ही एसएसपी निवास पहुंचे थे कि आरोपी विधायक पूरे दल के साथ बाहर निकला. तेवर में कोई नरमी नहीं, बल्कि सवाल पूछने पर एक पत्रकार की विधायक समर्थकों ने पिटाई कर दी. मतलब तब तक अमित शाह और पीएमओ की ओर से गिरफ्तारी के लिए कोई दबाव नहीं था. अगर दबाव होता तो फिर विधायक कब का गिरफ्तार हो चुका होता. क्या टीम मोदी को उस समय तक बीजेपी की छवि खराब होने का डर नहीं था? वो भी तब जब सामने 2019 के चुनाव हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सीबीआई ने फौरन कार्रवाई क्यों की?
सीबीआई की इस तेज हरकत के पीछे एक बड़ी वजह यह हो सकती है कि अब उन्नाव रेपकांड की आंच दिल्ली में महसूस होने लगी थी. इस मामले में राहुल गांधी भी काफी देर तक खामोश रहे. कठुआ में बच्ची के साथ हुई क्रूर और वहशियाना घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था. उसी बीच उन्नाव रेपकांड से माहौल और गरमा गया. दोनों जगह बीजेपी की भूमिका संदेह के घेरे में थी. लेकिन कठुआ के मामले में धर्म को बीच में घसीट दिया गया था, इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष थोड़ा सकपका रहे थे. मगर बीते दो-तीन दिन में माहौल तेजी से बदले.
दिल्ली में सियासी सरगर्मी तेज होने से बढ़ा दबाव
जिस तरह बच्ची के मामले में लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी उससे जाहिर हो गया कि अब कठुआ मामले में धर्म को बीच में लाने की चाल नहीं चलेगी. हालात में आए बदलाव को भांप तक राहुल गांधी की टीम ने इंडिया गेट पर कैंडिल मार्च निकालने का फैसला लिया. मतलब अब राजनीति दिल्ली में होनी थी और उस राजनीति के केंद्र में उन्नाव रेपकांड को भी होना था. इस पूरे प्रकरण ने बीजेपी को बैकफुट पर ला खड़ा किया. इसी वजह से उन्नाव मामले में तुरंत सीबीआई जांच की घोषणा की गई और सीबीआई ने भी सिंघम की तरह बिना वक्त गंवाए तीन एफआईआर दर्ज की और 12 घंटे के भीतर विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को गिरफ्तार कर लिया.
ब्रांड योगी को दांव पर लगा कर ब्रांड मोदी बचाने की कोशिश?
यह राजनीति में अक्सर होता है. पार्टियां सबसे बड़े नेता के ब्रांड को बचाने के लिए उनके इर्द-गिर्द कुछ कवच तैयार करती हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कवच हैं. चूंकि 2019 के सत्ता संघर्ष में बहुत कुछ उत्तर प्रदेश पर निर्भर करेगा और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यहां से सांसद हैं इसलिए बीजेपी की यह कोशिश है कि यहां ब्रांड योगी खराब हो जाए तो हो जाए, लेकिन ब्रांड मोदी पर आंच नहीं आनी चाहिए.
यह सियासी रणनीति है. गोरखपुर और फूलपुर उप चुनाव के नतीजों के बाद हमने बीजेपी की इस रणनीति की एक बानगी देखी थी. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारी जीत का सेहरा भी नरेंद्र मोदी के सिर बांधा गया, लेकिन लोकसभा उप चुनाव में हार का ठीकरा योगी के सिर फोड़ा गया.
ब्रांड योगी को दांव पर लगा कर ब्रांड मोदी बचाने की कोशिश?
कुछ यही काम उन्नाव रेपकांड में हुआ. अगर योगी आदित्यनाथ को खुली छूट दी गई होती तो मुमकिन है कि आरोपी विधायक को पुलिस पहले ही गिरफ्तार कर चुकी होती और मामला यहां तक नहीं पहुंचता. लेकिन जब बात बिगड़ने लगी तो सीबीआई को बीच में डाल तक ब्रांड मोदी बचाने की कोशिश हो रही है. कांग्रेस भी ब्रांड राहुल को बचाने के लिए यही करती है. इसी को राजनीति कहते हैं.
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