अपर्णा यादव (Aparna Yadav) बीजेपी में शामिल हो गई हैं. उन्होंने बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ली. अपर्णा यादव की पहचान एक SP नेता के तौर पर कम और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की बहू के रूप में ज्यादा है. उन्होंने अब तक कोई चुनाव नहीं जीता है. साल 2017 में SP से टिकट मिला था, लेकिन हार गई थीं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर एक हारी हुई उम्मीदवार से बीजेपी क्या फायदा लेना चाहती है. इसका जवाब सदस्यता ग्रहण कराने के दौरान केशव मौर्य और स्वतंत्र देव सिंह की वेलकम स्पीच से मिलता है.
वेलकम स्पीच की शुरुआत ही 'मुलायम सिंह की बहू' से हुई
स्वतंत्र देव सिंह ने कहा, नेता मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव का स्वागत करता हूं. सपा के शासन में गुंडागर्दी को इतना महत्व दिया जाता है कि पश्चिमी यूपी में कोई सुरक्षित नहीं रहता है. कोई बेटी या किसान हो. 5 बजे अपना दरवाजा बंद कर लेता था. अगर कोई व्यक्ति किसी को छेड़ देता था. पुलिस गिरफ्तार कर लेती थी. तो मियां जान का फोन आ जाता था.
सपा के शासन में अखिलेश यादव की नहीं बल्कि आजम खान की चलती थी. अपर्णा यादव बीजेपी के शासनकाल से प्रभावित होकर पार्टी में शामिल हो रही हैं.स्वतंत्र देव सिंह
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी अपने वेलकम स्पीच की शुरुआत इसी शब्द से की. उन्होंने कहा, मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव बीजेपी का हिस्सा बनी हैं. मैं सबसे पहले पार्टी में स्वागत करता हूं.
दोनों बयानों से साफ है कि बीजेपी यह दिखाना चाहती हैं मुलायम परिवार में एक बार फिर से फूट पड़ गई है. साल 2017 में भी ऐसी ही फूट पड़ी थी. तब लोगों में ये मैसेज गया था कि अखिलेश तो अपना परिवार ही नहीं संभाल पा रहे हैं. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा भी कि अखिलेश यादव अपने परिवार में ही सफल नहीं हैं. सीएम के रूप में भी असफल रहे हैं. सांसद के रूप में भी असफल हैं. अखिलेश कहते थे कि बड़ा विकास किया है, लेकिन जिस क्षेत्र का विकास किया है वहां से चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं हो रही है.
अपर्णा को लेकर बीजेपी की क्या है रणनीति?
अब समझ लेते हैं कि आखिर एसपी के खिलाफ परिवार में टूट जैसा मैसेज देकर बीजेपी क्या हासिल करना चाहती हैं? दरअसल, चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद ओबीसी के बड़े चेहरे स्वामी प्रसाद मौर्य सहित बीजेपी के 3 मंत्रियों और कई विधायकों ने एसपी ज्वाइन कर लिया. इससे समाजवादी पार्टी के लिए एक माहौल बन गया. जनता के बीच दो बड़ा मैसेज गया. पहला, चुनाव में बीजेपी की हालत खराब है. क्योकि स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता के लिए कहा जाता है वे पहले ही भांप लेते हैं कि जीत किस पार्टी की हो सकती है. जब वे साल 2017 में बीएसपी से बीजेपी में गए थे. तब भी उनके लिए ऐसा ही कहा गया था. दूसरा मैसेज बीजेपी को कमजोर करने का गया. मीडिया में चर्चा होने लगी कि अखिलेश यादव ने नेताओं को तोड़कर बीजेपी को कमजोर कर दिया. बीजेपी टूटने लगी है. ऐसे में बीजेपी ने इसका करारा जवाब देने का रास्ता चुना.
बीजेपी अखिलेश यादव के पारिवारिक झगड़े को फिर से उजागर करना चाहती हैं. काफी समय बाद मुलायम परिवार में झगड़ा शांत हुआ. शिवपाल यादव मान गए हैं. कुछ लोग बीजेपी से एसपी में शामिल हो गए. ऐसे में इस पॉजिटिव माहौल को एक डेंट पहुंचाने के लिए ऐसा किया जा रहा है. कहा जाएगा कि परिवार टूट गया. पिछली बार भी जो झगड़ा हुआ था. उसकी शुरुआत अपर्णा यादव से ही हुई थी. लेकिन आधार शिवपाल बन गए थे. अखिलेश का आरोप था कि शिवपाल ने उनके सौतेले भाई का साथ दिया. इसी की वजह से कटुता बढ़ गई थी.लखनऊ के पत्रकार नवेद शिकोह
बीजेपी को परसेप्शन का फायदा, एक सीट का घाटा?
अपर्णा यादव पत्रकार की बेटी हैं. बहुत ज्यादा राजनीति नहीं की है. पिछले विधानसभा में लखनऊ कैंट के लिए टिकट मांगा था. लेकिन अखिलेश यादव ने टिकट देने से मना कर दिया. फिर मुलायम सिंह की सिफारिश में टिकट दिया गया, लेकिन वे हार गईं. तो ऐसे में एक पारिवारिक टूट का जो मैसेज बाहर जाएगा, उसके अलावा एसपी को कोई और घाटा नहीं होगा. रही बीजेपी को फायदे की बात तो बीजेपी को कोई खास फायदा नहीं होगा. बल्कि एक सीट का नुकसान ही हो सकता है. जहां से वे टिकट मांग रही हैं वह ब्राह्मण बाहुल्य इलाका है. वहां यादव होने से बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिलने वाला. कैंट में पहाड़ी पंडितों की बड़ी संख्या है. हालांकि अपर्णा, यादव बहू हैं, लेकिन वे पहाड़ी ठाकुर परिवार से आती हैं.
अपर्णा, प्रतीक यादव की पत्नी हैं. प्रतीक मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बेटे हैं. साल 1986 में साधना गुप्ता की शादी चंद्रप्रकाश गुप्ता से हुई थी. दो साल बाद साधना और चंद्रप्रकाश अलग हो गए. फिर साधनाा, मुलायम सिंह के संपर्क में आईं. साल 2003 में मुलायम सिंह यादव में साधना गुप्ता को पत्नी का दर्जा दिया.
लखनऊ कैंट की जंग
अपर्णा यादव को साल 2017 में एसपी से टिकट मिला, लेकिन वे हार गईं. लखनऊ कैंट से कुल 15 कैंडिडेट थे. कांग्रेस से बीजेपी में आई रीता बहुगुणा जोशी ने कुल 95 हजार (50%) वोट के साथ जीत हासिल की. अपर्णा यादव दूसरे नंबर पर थीं. उन्हें 61 हजार (32%) वोट मिले. तीसरे नंबर पर बीएसपी के योगेश दीक्षित थे. उन्हें 26 हजार (13%) वोट मिले थे. साल 2012 में भी लखनऊ कैंट से रीता बहुगुणा जोशी ने जीत हासिल की थी. लेकिन तब वे कांग्रेस में थीं. उन्हें 63 हजार (38%) वोट मिले थे. दूसरे नंबर पर बीजेपी के सुरेश चंद्र तिवारी थे. उन्हें 41 हजार (25%) वोट मिले थे.
साल 2007 में लखनऊ कैंट से बीजेपी के सुरेश चंद्र तिवारी ने 30 हजार (30%) वोटों के साथ जीत हासिल की थी. दूसरे नंबर पर बीएसपी के अरविंद कुमार त्रिपाठी थे. उन्हें 25 हजार (25%) वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर SP के शतद प्रताप शुक्ला थे, उन्हें 19 हजार (19%) वोट मिले थे. साल 2002 में लखनऊ कैंट से बीजेपी के सुरेश चंद्र तिवारी ने 36 हजार वोट (40%) वोट से जीत हासिल की.
दूसरे नंबर पर एसपी के शरद प्रताप शुक्ला थे, उन्हें 21 हजार (23%) वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर कांग्रेस के राजेंद्र सिंह थे, उन्हें 20 हजार वोट (22%) मिले थे.
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