देश में हर किसी की निगाहें यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों की ओर टिकी हुई हैं, जो कि 11 मार्च को सामने आ जाएगा. लेकिन उन नतीजों में यह देखना दिलचस्प होगा कि पब्लिक ने दागी, खासकर गंभीर क्रिमिनल केस वाले उम्मीदवारों को विधानसभा का रास्ता दिखलाया या उनकी मंशा पर पानी फेर दिया.
प्रदेश में 7 चरण में हुए चुनाव में कुल 4853 उम्मीदवार मैदान में हैं. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इनमें से 4823 प्रत्याशियों के एफिडेविट के आधार पर कुछ ठोस तथ्य जुटाए हैं.
आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 2012 के चुनाव की तुलना में इस बार गंभीर क्रिमिनल केस वाले उम्मीदवारों की तादाद में करीब दोगुना बढ़ोतरी हुई है. देखें ग्राफिक्स:
इन गंभीर अपराधों में हत्या, हत्या की कोशिश, रेप, अपहरण, सांप्रदायिक दंगे, चुनावी हिंसा, महिलाओं पर अत्याचार जैसे मामले शामिल हैं.
एक अहम तथ्य यह है कि साल 2017 में सीरियस क्रिमिनल केस वाले उम्मीदवारों को टिकट देने में बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने ज्यादा दरियादिली दिखलाई है. गौर करने वाली बात यह है कि गंभीर केस वाले उम्मीदवारों में निर्दलीय प्रत्याशियों की भागीदारी कम है. देखें ग्राफिक्स:
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव: 2017
अगर सियासी पार्टियां चुनावी दंगल में बड़े पैमाने पर बाहुबलियों को उतारती हैं, तो इसके पीछे कुछ ठोस वजह है. दरअसल, कई स्टडी में यह तथ्य पाया गया है कि ‘साफ-सुथरे’ उम्मीदवारों की तुलना में दागियों की जीत की संभावना 3 गुना तक बढ़ जाती है. साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव के नतीजे इस तथ्य की पुष्टि करते हैं.
मतलब यह कि जब किसी भी तरह सत्ता हासिल करना ही पार्टियों का एकमात्र लक्ष्य बन जाए, ऐसे में साफ-सुथरी राजनीति एक आदर्श सोच के सिवा और क्या रह जाती है?
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