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बंगाल की बिसात पर कौन कहां खड़ा, किनके बीच, किन मुद्दों पर लड़ाई?

क्यों पश्चिम बंगाल में इस बार का विधानसभा चुनाव पहले से काफी अलग है? 

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पश्चिम बंगाल में इस वक्त चुनावी घमासान जोरों पर है. चुनाव आयोग ने हाल ही में जिन 4 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान किया है, उनमें सबसे ज्यादा चर्चा में पश्चिम बंगाल है. इस बार बैटल ऑफ बंगाल एकदम अलग क्यों है? किनके बीच मुकाबला है, क्या मुद्दे हैं, कैंपेनिंग के दौरान क्या खास देखने को मिला है...ये सब समझने की कोशिश करते हैं.

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लड़ाई किस-किसके बीच है?

294 विधानसभा सीट वाले पश्चिम बंगाल के चुनाव में इस बार की लड़ाई मुख्य तौर पर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच है. वैसे तो इस लड़ाई के बीच लेफ्ट फ्रंट, कांग्रेस और नवगठित इंडियन सेकुलर फ्रंट (आईएसएफ) ने भी खुद को ‘तीसरे विकल्प’ के रूप में पेश किया है, लेकिन वो ज्यादा ताकतवर नजर नहीं आ रहा. एक दिलचस्प बात यह भी है कि लेफ्ट और कांग्रेस केरल में एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं.

टीएमसी ने पश्चिम बंगाल के पिछले दो विधानसभा चुनावों (2011 और 2016) में क्रमशः 184 और 211 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई है. बात बीजेपी की करें तो साल 2011 के चुनाव में जहां उसका खाता भी नहीं खुला था, वहीं 2016 के चुनाव में उसे महज 3 सीटें ही मिली थीं.

लेकिन बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में चौंकाने वाला प्रदर्शन कर राज्य की राजनीति में अपना मजबूत कद बना लिया. इस चुनाव में बीजेपी को पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटें मिलीं, जबकि उसका वोट शेयर 40.64 फीसदी रहा. हालांकि, जब किसी राज्य के विधानसभा चुनाव में टीएमसी जैसी बेहद मजबूत क्षेत्रीय पार्टी सामने हो तो बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं होता, क्योंकि विधानसभा चुनावों में अक्सर राज्य के मुद्दे ऊपर रहते हैं.

चुनाव के बड़े मुद्दे क्या हैं?

बीजेपी की रणनीति क्या है?

बीजेपी की ओर से जहां एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा जैसे शीर्ष नेता चुनावी प्रचार में दम झोंक रहे हैं, वहीं रणनीति और संगठन के स्तर पर कैलाश विजयवर्गीय और शिवप्रकाश जैसे चेहरे दमखम लगा रहे हैं.

बीजेपी पश्चिम बंगाल में खुलकर हिंदुत्व का कार्ड खेलती दिख रही है. वो अपनी कैंपेनिंग में लगातार दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा और जय श्रीराम के नारे जैसे धार्मिक मुद्दों का जिक्र कर रही है.

वैसे तो टीएमसी के 10 साल के शासन से पहले लगातार 34 साल तक लेफ्ट की सरकार में रहा पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की तरह जातीय या धार्मिक धुव्रीकरण के लिए नहीं जाना जाता, मगर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जब मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगाकर टीएमसी को घेरना शुरू किया तो यहां की राजनीति में धार्मिक धुव्रीकरण ने कुछ हद तक दस्तक दी. बीजेपी ने उस वक्त यहां हिंदुत्व की राजनीति को 'राष्ट्रवाद' के तड़के साथ भुनाया था.

बीजेपी टीएमसी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर भी उसे घेरने में जुटी है. हाल ही में नड्डा ने कहा था कि पश्चिम बंगाल की जनता को ‘कटमनी’ और ‘टोलाबाजी’ (वसूली) से मुकाबले के लिए टीके की जरूरत है. उन्होंने आरोप लगाया कि टीएमसी सरकार भ्रष्टाचार और अराजकता का प्रतिनिधित्व करती है.

बीजेपी टीएमसी के अंदर की कलह को भुनाने की भी पूरी कोशिश कर रही है. पिछले कुछ दिनों में शुभेंदु अधिकारी और राजीव बनर्जी जैसे बड़े नामों समेत बड़ी संख्या में नेता टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं. टीएमसी नेता और पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने पिछले दिनों जब ‘‘पश्चिम बंगाल में हिंसा’’ और ‘‘घुटन’’ का हवाला देते हुए राज्यसभा से इस्तीफे का ऐलान किया था तो इसके कुछ ही देर बाद कैलाश विजयवर्गीय ने कह दिया था कि त्रिवेदी का बीजेपी में शामिल होने के लिए स्वागत है.

बीजेपी बंगाल के विकास के लिए ‘लोक्खो सोनार बांग्ला' (स्वर्ण बंगाल बनाने का लक्ष्य) मुहिम पर भी जोर दे रही है. हाल ही में नड्डा ने वादा किया, ‘‘हम पश्चिम बंगाल में नक्सलवाद का खात्मा करेंगे. हम कोयले की तस्करी को खत्म करेंगे.’’ पार्टी यह भी आरोप लगा रही है कि ममता सरकार ने अपने अहंकार की वजह से आयुष्मान भारत और किसान सम्मान निधि जैसी केंद्र की योजनाओं का फायदा राज्य के लोगों को नहीं मिलने दिया.

बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि वो प्रति परिवार कम से कम एक नौकरी मुहैया कराएगी. पार्टी ने किसानों की आर्थिक सुरक्षा के लिए 5000 करोड़ रुपये के हस्तक्षेप कोष की घोषणा की है और इसके अलावा लघु किसानों और मछुआरों के लिए तीन लाख रुपए के दुर्घटना बीमा का वादा किया है.

बीजेपी ने कला, साहित्य और अन्य क्षेत्रों को प्रोत्साहन देने के लिए 11000 करोड़ रुपये की ‘सोनार बांग्ला’ निधि और नोबेल पुरस्कार की तर्ज पर टैगोर पुरस्कार शुरू किए जाने का वादा किया है.

पार्टी ने राज्य सरकार के कर्मियों के लिए सातवां वेतन आयोग लागू किए जाने और राज्य की सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की भी घोषणा की है.

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टीएमसी की रणनीति क्या है?

बात टीएमसी की करें वो इस चुनाव में जानेमाने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की कंपनी I-PAC की मदद ले रही है.

पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से न सिर्फ कट्टर धर्मनिरपेक्षता वाले रुख से बचती दिखी है, बल्कि उसने कई मौकों पर सॉफ्ट हिंदुत्व वाला रुख दिखाकर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों पर जवाब देने की भी कोशिश की है. इमामों के भत्ते पर निशाना बनी ममता सरकार ने पिछले साल पुजारियों को भी भत्ता देने का ऐलान किया. टीएमसी के नेता हिंदू त्योहारों और कार्यक्रमों में पहले के मुकाबले ज्यादा खुलकर सामने दिखने लगे हैं. 

हालांकि, टीएमसी के ये कदम वहीं तक सीमित दिखे हैं कि उस पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप न लग सकें. दरअसल पार्टी की रणनीति बीजेपी के धुव्रीकरण के पैंतरे पर ही उसे पटखनी देने की हो सकती है. वो एक तरफ हिंदू वोटरों को छिटकने से बचाने की कोशिश में दिख रही है, वहीं दूसरी तरफ उसे राज्य में मुस्लिम वोटरों की अच्छी-खासी तादात का भी अंदाजा होगा.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, 2021 में पश्चिम बंगाल की जनसंख्या 10.19 करोड़ होने और इसमें मुस्लिमों का हिस्सा करीब 30 फीसदी होने का अनुमान है. ऐसे में बीजेपी की हिंदुत्व केंद्रित कैंपेनिंग के बीच उसे रोकने के लिए मुस्लिम वोटर एकजुट होकर बड़ी संख्या में टीएमसी के साथ जाकर उसे फायदा पहुंचा सकते हैं.

10 मार्च को ममता बनर्जी के नामांकन दाखिल करने के बाद पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदीग्राम स्थित बिरुलिया बाजार में एक घटना हुई, जिसमें उनके बाएं पैर, सिर और छाती में चोट लग गई. चोटिल होने के करीब चार दिन बाद ही बनर्जी ने सड़क पर उतर कर संघर्ष करने की अपनी छवि के अनुरूप व्हीलचेयर पर बैठकर टीएमसी के एक रोड शो का नेतृत्व किया. उन्होंने प्रतिद्वंद्वी दलों को आगाह करते हुए ऐलान किया कि एक घायल बाघ कहीं अधिक खतरनाक होता है. इसके बाद ममता व्हीलचेयर पर बैठकर ही चुनाव प्रचार करती आई हैं.

तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया था कि यह ‘‘उनकी जान लेने का बीजेपी का षड्यंत्र था.’’ हालांकि, चुनाव आयोग ने इससे इनकार किया है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पर कोई हमला हुआ था. चुनाव आयोग ने यह बात आयोग के दो विशेष चुनाव पर्यवेक्षकों और राज्य सरकार की ओर से भेजी गई रिपोर्टों की समीक्षा के बाद कही. आयोग ने कहा कि बनर्जी को चोट उनके सुरक्षा प्रभारी की चूक के कारण लगी.

बीजेपी के पास पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी जैसा कद रखने वाला कोई स्थानीय नेता भी नहीं है. उसके चुनावी प्रचार में राज्य से बाहर के नेताओं का दबदबा दिख रहा है. टीएमसी इसे ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ का मुद्दा बनाकर भुनाने की कोशिश में है. उसने इस लड़ाई को ममता Vs मोदी बनाते हुए कहा है कि बंगाल पर गुजरात का शासन नहीं चलेगा.

केंद्र की योजनाओं को सही से लागू न करने के आरोपों के बीच टीएमसी ममता सरकार की प्रमुख योजनाओं के दम पर भी वोटरों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में है. जिसमें 'स्वास्थ्य साथी' योजना, महिला केंद्रित कई योजनाएं (कन्याश्री, रूपोश्री आदि), सस्ता खाना मुहैया कराने वाली मां कैंटीन योजना प्रमुख हैं.

टीएमसी ने हाल ही में ‘द्वारे सरकार’ जैसी मुहिम पर भी जोर दिया, जो यह सुनिश्चित करने के लिए शुरू की गई थी कि राज्य की 11 सरकारी कल्याण योजनाओं का फायदा लोगों को मिल सके.

टीएमसी ने सभी परिवारों के लिए आय योजना, छात्रों को क्रेडिट कार्ड और ओबीसी में कई समुदायों को शामिल करने के लिए एक कार्यबल का गठन करने का वादा किया है.

राज्य में तृणमूल कांग्रेस शासन के दौरान गरीबी 40 फीसदी तक घट जाने का दावा करते हुए पार्टी के घोषणापत्र में किसानों को वार्षिक वित्तीय सहायता 6000 रुपये से बढ़ाकर 10000 रुपये करने का भी वादा किया गया है.

हाल ही में ममता ने कहा, ‘‘पहली बार, बंगाल में हर परिवार को न्यूनतम आय प्राप्त होगी. इसके तहत, 1.6 करोड़ सामान्य श्रेणी के परिवारों को 500 रुपये प्रति महीना, जबकि एससी/एसटी श्रेणी में आने वाले परिवारों को 1000 रुपये प्रति महीना मिलेगा. यह रकम सीधे परिवार की महिला मुखिया के बैंक खाते में भेजी जाएगी. ’’

मुख्यमंत्री ने कहा कि 10 लाख की क्रेडिट सीमा के साथ छात्रों के लिए नई कार्ड योजना लाई जाएगी और इस पर सिर्फ चार फीसदी ब्याज देना होगा.

इसके अलावा ममता ने वादा किया है, ''अगले पांच सालों में हम 10 लाख एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) इकाइयां और 2000 नई बड़ी औद्योगिक इकाइयां लगाएंगे.''

लेफ्ट-कांग्रेस -आईएसएफ गठबंधन में पहले ही दिन दिखी थी दरार!

इस गठबंधन ने अपने अभियान की शुरुआत 28 फरवरी को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में एक बड़ी रैली के जरिए की. रैली के दौरान गठबंधन के नेताओं ने औद्योगिक विकास और रोजगार जैसे मुद्दों पर जोर दिया.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने दावा किया कि यह गठबंधन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी दोनों को हराएगा. चौधरी ने संयुक्त रैली को संबोधित करते हुए कहा कि बड़ी संख्या में लोगों के आने से साबित होता है कि आगामी चुनाव दो-कोणीय नहीं होगा.

हालांकि, गठबंधन के अंदर सबकुछ ठीक नहीं दिखा, जब आईएसएफ प्रमुख अब्बास सिद्दीकी ने सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस को परोक्ष रूप से धमकी दी. उन्होंने कहा कि आईएसएफ भागीदार बनने और अपना सही दावा हासिल करने के लिए यहां है.

पश्चिम बंगाल में कौन जीत रहा है?

हाल ही में एबीपी न्यूज-सी वोटर ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव पर ओपिनियन पोल जारी किया. इसके मुताबिक, राज्य में फिर से ममता बनर्जी की ही सरकार बनती दिख रही है, हालांकि 2016 के चुनाव के मुकाबले इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटों में भारी बढ़ोतरी का अनुमान भी सामने आया है.

बता दें कि पश्चिम बंगाल में 27 मार्च से 29 अप्रैल के बीच 8 चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे, जिसके नतीजे 2 मई को घोषित होंगे.

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