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लेफ्ट-कांग्रेस-ISF गठबंधन: पश्चिम बंगाल से दिल्ली तक कितनी गांठें!

बंगाल में चुनावी अभियान की शुरुआत वाले दिन ही गठबंधन में दिखी दरार

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पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में लेफ्ट फ्रंट, कांग्रेस और इंडियन सेकुलर फ्रंट (आईएसएफ) ने खुद को बीजेपी और टीएमसी के अलावा ‘तीसरे विकल्प’ के रूप में पेश किया है, लेकिन इस गठबंधन के अंदर चुनावी अभियान के पहले दिन से ही दरारें दिखनी शुरू हो गईं. इतना ही नहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने खुलेआम आईएसएफ के साथ गठजोड़ की आलोचना करके इस गठबंधन के लिए एक अजीब स्थिति पैदा कर दी है.

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इस गठबंधन ने अपने अभियान की शुरुआत 28 फरवरी को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में एक बड़ी रैली के जरिए की. हालांकि, इस रैली के लिए भारी संख्या में जुटी भीड़ इस बात की भी गवाह रही कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी और आईएसएफ प्रमुख अब्बास सिद्दीकी के बीच गठबंधन को लेकर सब कुछ ठीक नहीं है.

रैली में स्टेज पर, और फिर बाद के घटनाक्रम में, यह स्पष्ट था कि लेफ्ट फ्रंट सिद्दीकी और कांग्रेस के बीच की दीवार था. दरअसल दोनों ने दावा किया कि उनकी केवल लेफ्ट के साथ बातचीत हुई है और इसलिए वे किसी अन्य राजनीतिक ताकत के प्रति जवाबदेह नहीं हैं.

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ब्रिगेड परेड ग्राउंड में क्या हुआ था?

गठबंधन के लिए मुसीबत की शुरुआत तब हुई चौधरी अपना भाषण दे रहे थे और सिद्दीकी मंच पर आए. इस दौरान चौधरी को लेफ्ट के नेताओं ने रोका, जो सिद्दीकी की एंट्री का ऐलान करना चाहते थे. मंच के लाइव फुटेज में दिखता है कि चौधरी ने पहले तो अपना भाषण रोकने से इनकार किया, फिर इसे जारी रखने से इनकार कर दिया, और आखिर में वह लेफ्ट के वरिष्ठ नेता बिमान बोस के अनुरोध पर अपना भाषण पूरा करने के लिए माने.

इसके बाद, अब्बास सिद्दीकी ने जब माइक संभाला तो उन्होंने अपने समर्थकों से सिर्फ लेफ्ट के ही लिए वोट मांगे, कांग्रेस का जिक्र नहीं किया.

सिद्दीकी ने कहा, ''जहां भी लेफ्ट फ्रंट उम्मीदवार खड़ा करेगा, हम अपनी मातृभूमि की रक्षा अपने खून से करेंगे. हम भारतीय जनता पार्टी और उसकी बी टीम तृणमूल कांग्रेस को बाहर कर देंगे.''

इसके बाद उन्होंने अपने इस रुख को समझाते हुए कहा, ‘’कोई मुझसे पूछ सकता है कि मैं केवल लेफ्ट की बात क्यों कर रहा हूं, कांग्रेस की क्यों नहीं. मैं एक बात स्पष्ट कर दूं, मैं यहां एक हिस्सा लेने आया हूं, भीख नहीं. मैं दलित, आदिवासी, ओबीसी और मुसलमानों के लिए अधिकार चाहता हूं और यह वो हिस्सा है जिसका मैं दावा करने आया हूं. अगर कोई हाथ बढ़ाना चाहता है, तो उनके लिए दरवाजा खुला है, और आने वाले दिनों में अब्बास सिद्दीकी उनके लिए भी लड़ेगा.’’

गठबंधन के लिए कई मोर्चों पर मुश्किलें

कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट ने 2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया था. वे 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग-अलग लड़े थे और अब वे एक बार फिर से 2021 के विधानसभा चुनाव के लिए साथ आए हैं.

कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट के बीच सीट शेयरिंग को लेकर हालिया बातचीत 1 मार्च को हुई थी, जिसमें कांग्रेस राज्य की 294 विधानसभा सीटों में से 92 पर लड़ने को तैयार हुई.

सीट बंटवारे को लेकर लेफ्ट फ्रंट और आईएसएफ के बीच भी सहमति बन गई है, लेकिन इस मामले पर कांग्रेस और आईएसएफ एक दूसरे से नजरें नहीं मिला रहे. ऐसे में लेफ्ट फ्रंट इन दोनों को साथ रखने की कोशिश में जुटा है.

सिद्दीकी ने हाल ही में ऐलान किया था, और बाद में ब्रिगेड रैली में भी पुष्टि की, कि लेफ्ट आईएसएफ को 30 सीटें देने के लिए सहमत हो गया है. चूंकि कांग्रेस के साथ उसका कोई समझौता नहीं है, तो ऐसे में ये 30 सीटें लेफ्ट के हिस्से से आएंगी. हालांकि कथित तौर पर सिद्दीकी ने इस गठबंधन में अपने लिए 80 सीटें मांगी थीं.

गठबंधन की एक दिक्कत यह भी है कि केरल के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं, ऐसे में पश्चिम बंगाल में न सिर्फ इनके लिए मजबूत एकजुटता की धारणा बनाना मुश्किल हो रहा है, बल्कि कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व भी इसे लेकर दुविधा की स्थिति में दिख रहा है.

इस बीच ऐसी अटकलें हैं कि राहुल गांधी चुनाव प्रचार के लिए शायद पश्चिम बंगाल न जाएं और उनका ध्यान केरल पर ही रहे. 2016 में, कांग्रेस-लेफ्ट एकता के प्रदर्शन में, गांधी ने पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य सहित लेफ्ट के बाकी नेताओं के साथ मंच साझा किया था. हालांकि, वह उस वक्त केरल के वायनाड से सांसद नहीं थे.

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सिद्दीकी को लेकर कांग्रेस की दुविधा

4 फरवरी को, बंगाल कांग्रेस के नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता, अब्दुल मन्नान, ने सिद्दीकी की आईएसएफ के साथ पार्टी की राज्य इकाई के गठबंधन को मंजूरी देने के लिए दिल्ली की लीडरशिप को लेटर लिखा था. उन्होंने लिखा था, ''लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन में आईएसएफ का जुड़ना आगामी विधानसभा चुनाव में गेम चेंजर हो सकता है.''

उन्होंने यह भी कहा था कि चौधरी पहले ही फुरफुरा शरीफ का दौरा कर चुके हैं और मन्नान ने खुद आईएसएफ के साथ "अनौपचारिक" बातचीत शुरू कर दी है.

हालांकि, इसके बाद, कांग्रेस और आईएसएफ के बीच बातचीत गतिरोध में आ गई. सूत्रों का कहना है कि मुख्य बिंदु, मुर्शिदाबाद और मालदा में सीटें हैं - जहां अल्पसंख्यक अच्छी खासी तादात में हैं, लेकिन यही वे जिले हैं जहां कांग्रेस ने 2019 में अच्छा प्रदर्शन किया था.

जहां सिद्दीकी इन सीटों के अल्पसंख्यक वोटों पर नजर गड़ाए हुए हैं, वहीं कांग्रेस अपने गढ़ में एक इंच भी सेंध लगवाने को तैयार नहीं है. धमकी के तौर पर, सिद्दीकी यह भी कह चुके हैं कि अगर कोई समझौता नहीं होता तो वे उन सीटों पर भी अपने उम्मीदवार उतारेंगे, जहां कांग्रेस लड़ रही है.

आनंद शर्मा ने चौधरी पर साधा निशाना

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने मुस्लिम धर्मगुरु अब्बास सिद्दीकी के नेतृत्व वाले आईएसएफ के साथ पार्टी के गठजोड़ की आलोचना करते हुए सोमवार को कहा कि यह पार्टी की मूल विचारधारा के खिलाफ है.

शर्मा ने ट्वीट कर कहा, ‘’आईएसएफ और ऐसे अन्य दलों से साथ कांग्रेस का गठबंधन पार्टी की मूल विचारधारा, गांधीवाद और नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, जो कांग्रेस पार्टी की आत्मा है.’’

इसके साथ ही उन्होंने कहा, ''साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस चयनात्मक नहीं हो सकती है. हमें साम्प्रदायिकता के हर रूप से लड़ना है. पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की उपस्थिति और समर्थन शर्मनाक है, उन्हें अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए.''

शर्मा की इन टिप्पणियों पर चौधरी ने कहा कि पार्टी की राज्य इकाई कोई भी फैसला अकेले नहीं लेती है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री शर्मा पार्टी के उन 23 नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लेटर लिखकर पार्टी में संगठनात्मक बदलाव की मांग की थी.

इस बीच, कांग्रेस के पश्चिम बंगाल प्रभारी जितिन प्रसाद ने ट्वीट कर कहा है, ‘‘पार्टी और कार्यकर्ताओं के बेहतर हित को ध्यान में रखते हुए गठबंधन के फैसले लिए जाते हैं. अब समय आ गया है कि हर व्यक्ति हाथ मिलाए और चुनावी राज्यों में कांग्रेस की संभावनाओं को मजबूत करने के लिए काम करे.’’

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