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बिहार: जारी रहेगा जातीगत सर्वे,हाईकोर्ट में नीतीश सरकार की जीत,रोक की मांग खारिज

कोर्ट ने बिहार में नीतीश सरकार द्वारा कराए जा रहे जाति सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है.

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बिहार (Bihar) में जाति जनगणना (Caste Survey) मामले में नीतीश कुमार सरकार की बड़ी जीत हुई है. पटना हाई कोर्ट ने जातीगत सर्वे को लेकर मंगलवार एक अगस्त को बड़ा फैसला सुनाया है. जातीगत सर्वे पर पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने जो पहले रोक लगाई थी वो अब हटा दी गई है. कोर्ट ने बिहार में नीतीश सरकार द्वारा कराए जा रहे जाति सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है.

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दरअसल, नीतीश सरकार के जातीय सर्वेक्षण कराने के फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं. इन याचिकाओं में जातिगत सर्वे पर रोक लगाने की मांग की गई थी.

पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की बेंच ने ये फैसला सुनाया है. 

जातीय सर्वेक्षण के खिलाफ दायर याचिकाओं पर पटना हाई कोर्ट में लगातार 5 दिनों तक सुनवाई हुई थी. हाई कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब 25 दिन बाद इस मामले में हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है.

कोर्ट में सरकार की दलील

जातीय जनगणना पर राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने सुनवाई के अंतिम दिन कोर्ट को बताया कि यह सिर्फ एक सर्वेक्षण है. इसका मकसद आम नागरिकों के बारे में सामाजिक अध्ययन के लिए आंकड़े जुटाना है. इसका उपयोग आम लोगों के कल्याण और हितों के लिए किया जाएगा. उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण के दौरान किसी को भी अनिवार्य रूप से कोई जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसा सर्वेक्षण राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है. इस सर्वेक्षण से किसी की निजता का उल्लंघन नहीं हो रहा है.

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पटना हाई कोर्ट ने क्यों लगाई थी रोक?

अदालत ने कहा कि जाति आधारित सर्वे जनगणना के समान है जिसे कराने का कोई भी अधिकार राज्य सरकार के पास नहीं है. इस तरह जाति आधारित सर्वे कराना केंद्र के अधिकार पर अतिक्रमण होगा.

हम जारी अधिसूचना से यह भी देखते हैं कि सरकार राज्य विधानसभा के विभिन्न दलों, सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल के नेताओं के साथ डेटा साझा करने का इरादा रखती है जो कि एक बड़ी चिंता का विषय है.

न्यायालय ने कहा कि यह मामला निजता के अधिकार के मुद्दे को दर्शाता है. वहीं बिहार सरकार ने दलील दी थी कि यह जातिगत जनगणना नहीं बल्कि सर्वेक्षण होगा. सर्वेक्षण में जो 17 सवाल पूछे जा रहे हैं इससे किसी की निजता के अधिकार का हनन नहीं होता है. 

बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार के जातीगत जनगणना के फैसले को चुनौती दी गई थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट जाएं.

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हाई कोर्ट के नए फैसले पर JDU ने क्या कहा?

जाति आधारित गणना पर पटना हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष ने उमेश कुशवाहा प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा, "यह फैसला जनता के हित के लिए हुआ है और जो सामाजिक न्याय के लोगों के विरुद्ध जो लोग थे उनको थप्पड़ लगा है, गाल पर तमाचा लगा है इस फैसला से बहुत राहत हुई है और हम समझते हैं कि यह फैसला जनहित में हुआ है."

वहीं बिहार के उप सीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि, "हमारी सरकार के जाति आधारित सर्वे से प्रामाणिक, विश्वसनीय और वैज्ञानिक आंकड़े प्राप्त होंगे. इससे अतिपिछड़े, पिछड़े और सभी वर्गों के गरीबों को सर्वाधिक लाभ मिलेगा. जातीय गणना आर्थिक न्याय की दिशा में बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम होगा. हमारी मांग है कि केंद्र सरकार जातीय गणना करवाए.

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