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बहुत कठिन है डगर छठ घाट की, पटना से हर साल 0.14 किलोमीटर दूर जा रही गंगा

Chhath Puja 2022 पर व्रतियों का दर्द, नदी किनारे पहुंचने के लिए 4-5 किलोमीटर लंबा रास्ता तय करना पड़ता है

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बिहार में अभी छठ पर्व की रौनक है. राजधानी पटना में गंगा के किनारे नदी घाटों पर छठ पर्व मनाने की परंपरा ऐतिहासिक है. अंग्रेजों के जमाने की पुरानी तस्वीरों में दिखता है कि नदी कि किनारे बसे इस शहर में उस वक्त के घाटों पर छठ करने पूरा शहर हाथी, ऊंट, घोड़ों और गाजे-बाजे के साथ उमड़ता था. पटना की यह परंपरा आज भी कायम है. उस वक्त के घाट पहले से सुंदर भी हो गए हैं. अब तो यहां छठ करने दूर-दूर से भी हजारों लोग आते हैं. लेकिन, अधिकांश लोग अब उन घाटों पर नहीं जाते जहां पहले बड़ा जुटान होता था. क्योंकि नदी अब शहर से काफ़ी दूर जा चुकी है.

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गंगा हुई पटना से दूर

पटना में अब नदी किनारे पहुंचने के लिए चार किमी लंबा रास्ता तय करना पड़ता है. फिर भी छठ की परंपरा ही ऐसी है कि लोग नदी किनारे पहुंचना चाहते हैं. इसलिए, अब दीघा और कुर्जी के इलाके में बने नए घाटों पर ज्यादा भीड़ जुटती है.

लेकिन, इस साल इन घाटों तक पहुंचना आसान नहीं है. रास्ता कहीं ऊबड़ खाबड़ है, तो कहीं पर रास्ते में कीचड़ है. नदी का पानी हाल के दिनों में काफ़ी बढ़ गया था इसलिए अधिकांश घाटों पर अभी दलदल है.

जहां तक नदी के दूर जाने की बात है तो मार्च 2015 में हाई कोर्ट के सवाल के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह वादा किया था कि वे गंगा को शहर के करीब लाएंगे. लेकिन, उनकी गंगा पाथवे बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना को देखकर ऐसा लगता है कि नदी शहर से और दूर ही होती जा रही है, उलटा शहर ही उसका अतिक्रमण कर और सटता चला जा रहा है.

हाई कोर्ट ने दिए थे निर्देश

साल दर साल शहर से दूर जा रही गंगा को लेकर मार्च 2015 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए तत्कालीन पटना हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस एस नरसिम्हा रेड्डी ने केंद्र एवं राज्य सरकार के अधिकारियों को यह निर्देश दिया था कि गंगा को पटना के नजदीक लाने के प्रयास किए जाएं. अदालत ने कहा था कि “ऐसे बहुत कम शहर हैं, जिनके किनारे गंगा बहती है. लेकिन पिछले कुछ अर्से से गंगा भू-माफिया और बालू माफिया के निशाने पर है. इनके चलते यह पटना में अपना अस्तित्व खो रही है. “

गंगा के पटना से दूर जाने का सवाल पटना हाई कोर्ट में उठाने वाले थे तत्कालीन जज बिरेंद्र कुमार, जिन्होंने हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार विनोद कुमार सिन्हा को पत्र लिखकर पटना से दूर जा रही गंगा की तरफ ध्यान दिलाया था.

ज़िला जज बिरेंद्र कुमार ने अपने पत्र में लिखा था-

सिविल कोर्ट से गंगा बहुत दूर होती जा रही है. अब सिविल कोर्ट के उत्तर में गंगा नहीं गंदा नाला बहता है. न्यायिक कार्यों के दौरान नाले की बदबू से परेशानी होती है. जबकि, प्राकृतिक सौंदर्य को ध्यान में रखते हुए यहां 1937 में सिविल कोर्ट की स्थापना हुई थी, लेकिन इस इलाके पर भू-माफिया की नजर है. यह इलाका धार्मिक कारणों से भी चर्चित रहा है. सिविल कोर्ट घाट पर न्यायिक अधिकारी और स्टाफ छठ पूजा करते आए हैं.

जिला जज के इस पत्र को मुख्य न्यायाधीश ने लोकहित याचिका के रूप में स्वीकार किया और केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय के निदेशक गुरमुख सिंह, खनन एवं भूतत्व विभाग के प्रधान सचिव शिशिर कुमार सिन्हा, पटना के जिलाधिकारी अभय कुमार सिंह सहित कई अधिकारियों अधिकारियों को गंगा को पटना के नजदीक लाने का निर्देश दिया.

हाई कोर्ट के निर्देश के बाद बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग ने भारत के अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के साथ मिलकर नदी की धारा को इसने मूल स्थान पर वापस लाने के लिए दीघा से कालीघाट तक 7 किलोमीटर लंबा और 15 फीट गहरा माध्यम बनाकर प्राथमिक कदम उठाया था. इस माध्यम को बनाने के लिए करीब 10 करोड़ रुपये खर्च के बावजूद दक्षिणी किनारों के करीब गंगा नदी लाने का यह प्रयास विफल रहा.

मुख्यमंत्री ने किया वादा, पर हुआ उल्टा

हाईकोर्ट के निर्देश के बाद साल 2015 में ही अप्रैल महीने में एक स्थानीय अखबार के गंगा से जुड़े कार्यक्रम में अपने भाषण के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था-

नदी शहर से दूर जा रही है, छिछली हो रही है, गहराई घट रही है, गाद बढ़ रहा है, और जरा सा पानी बढ़ने से राज्य के अनेक शहरों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. अब तो अनेक डैम बनाकर गंगा नदी के साथ जो एप्रोच लिया गया है, उससे नदी अनेक तालाबों में परिवर्तित हो जाएगी. हम आपसे वादा करते हैं कि गंगा को फिर से शहर से क़रीब लाएंगे.
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लेकिन, पिछले छह-सात सालों के दौरान सरकार का काम देखकर लगता है नीतीश कुमार का वह वादा उल्टा साबित हो रहा है. क्योंकि मुख्यमंत्री की गंगा पाथ वे बनाने और एलिवेटेड सड़कों के ज़रिए उसे जेपी पुल से जोड़ने की 3831 करोड़ रुपए की योजना का पहला फेज पूरा हो जाने के बाद गंगा शहर के करीब आने की बजाए उससे एक से डेढ़ किलोमीटर और दूर ही चली गई.

ए एन कॉलेज, पटना के पर्यावरण विभाग के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन के अनुसार, गंगा प्रत्येक वर्ष पटना से 0.14 किलोमीटर दूर जा रही है. अध्ययन में बताया गया है कि पिछले 30 वर्षों से नदी के धरातल के निष्कर्षण में कमी और बड़े पैमाने पर नदी में अनुपचारित सीवर का निष्कासन इसके जिम्मेदार हैं.

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी पटना, (NIT) के प्रोफ़ेसर रामाकर झा जिन्होंने पटना से दूर जा रही गंगा को लेकर काफी काम किया है, कहते हैं-“पिछले कुछ दशकों में मानवजनित हस्तक्षेपों के कारण गंगा, पटना के अधिकांश घाटों तथा नदी की ओर जाने वाली सीढ़ियों की श्रृंखला से पहले से ही 2.5-3.5 किलोमीटर तक खिसक चुकी है. गंगा पाथवे परियोजना के लिए चले रहे निर्माण ने निश्चित रूप से इसे और आगे खिसका दिया है. कुछ स्थानों में गंगा पाथ वे परियोजना का कार्य प्रारंभ होने के बाद स्थानांतरित भी हुई है, लेकिन जब तक परियोजना का कार्य समाप्त होगा, तब तक नदी शहर से पूरी तरह से दूर जा चुकी होगी.”

अब पुराने घाट बहती नदी के बिना किसी कोलाहल, सीवर से निकलती गंदगी और अपने चारों ओर सूखी रेत से आगंतुकों का स्वागत करते हैं. भारी मात्रा में गंदगी के जमाव, वर्षों से जल प्रवाह में कमी और दीघा से राजापुर तक पावरफुल बिल्डर लॉबी की दखलंदाजी ने नदी के प्रवाह को बिल्कुल ही बदल दिया है.
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी पटना, (NIT) के प्रोफ़ेसर रामाकर झा

बहुत कठिन है डगर छठ के घाट की

छठ के घाट और उन तक पहुंचने के रास्तों की जहां तक बात है तो पथ निर्माण मंत्री के साथ-साथ राज्य के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने पहले अर्घ्य की पूर्व संध्या पर उन घाटों का दौरा किया और कहा- “घाटों तक पहुंचने के लिए रास्ते बना दिए गए हैं. शहर के 81 छठ घाटों पर सरकार की ओर से सभी प्रकार के इंतज़ामात किए गए हैं, जिससे छठ व्रतियों को किसी तरह की परेशानी ना हो.

लेकिन, जब ये रिपोर्टर मुख्यमंत्री के वादे और उपमुख्यमंत्री के दावे की पड़ताल के लिए उन घाटों तक पहुंचा तो वादा झूठा लगा और दावा खोखला नजर आया.

कई घाट असुरक्षित दिखे. अधिकांश पर दलदल और कीचड़ है. घाटों तक पहुंचने का रास्ता पहले से और लंबा साढ़े चार से पांच किमी हो गया है. साथ ही गंगा पाथ वे और एलिवेटेड सड़क बनाने की सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के कारण रास्ते में बहुत से नाले, गड्ढे बन गए हैं. पूरे रास्ते सिर्फ धूल ही धूल है. कहीं कहीं रास्ते बहुत पतले भी हो गए हैं.

शहर के इंद्रपुरी में रहने वाले गौरव प्रकाश की पत्नी रूबी सिंह ने छठ का व्रत किया है, वो नहाय-खाय के दिन दीघा के छठ घाट पर गई थीं, लेकिन सूर्य को अर्घ्य अपने घर की छत से ही देने का फैसला किया है. रूबी कहती हैं-

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इस बार घाटों की संख्या कम और घाट तक पहुंचना मुश्किल भी

इस साल मॉनसून का सीजन समाप्त होने के बाद हुई बारिश ने गंगा नदी का जलस्तर दोबारा से बढ़ा दिया था, जिसके कारण इस बार कई छठ घाटों पर जहां पिछले साल पूजा हुई थी, अभी पानी और दलदल है. कई घाटों से पानी अभी तक उतरा भी नहीं है.

कम घाट होने के कारण प्रमुख घाटों पर पहले की अपेक्षा इस बार काफी भीड़ होने की संभावना है. पटना के प्रमुख इलाकों के लिए बनाए गए पहलवान घाट के साथ भी ऐसा ही है. आस पास के बांस घाट और कलेक्ट्रेट घाट जैसे घाटों को खतरनाक घोषित करने के कारण इस बार पहलवान घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ अधिक होगी, ऐसे में खराब रास्ता और सड़क से दूरी भारी पड़ेगी.

पटना के राजीव नगर की रहने वालीं स्वीटी कुमारी को दीघा के 83 नंबर घाट पर जाना था. सूर्यास्त का समय पांच बजकर 10 मिनट पर है जो कि अर्घ्य का समय भी है. लेकिन स्वीटी ने अपने घर से दोपहर दो बजे ही निकलने की योजना बनाई है जबकि उनके घर से घाट की दूरी महज तीन किलोमीटर है.

प्रशासन का दावा है कि घाटों पर श्रद्धालुओं के लिए पूरी व्यवस्था कर दी गई है. घाटों को जोड़ने के लिए अस्थाई संपर्क मार्ग भी बना लिए गए हैं, लेकिन क्विंट की पड़ताल में घाटों की स्थिति खतरनाक लगी. संभावना है कि इस बार गंगा पाथ वे के इलाके में भारी भीड़ जमा होगी. जिला प्रशासन ने वहीं पर अपना नियंत्रण कक्ष भी बनाया है.

लेकिन पाथवे और घाट के बीच में नाला और पुल के कारण गंगा की दूरी काफी बढ़ गई है. पाथवे से लगभग 4 किमी का सफर तय करने में श्रद्धालुओं को पैदल जाने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. त्यौहार के दिन तक भी रास्ता पूरा नहीं हो सका है. मिट्टी की पटाई तो की गई है लेकिन वह भी पूरी तरह से बराबर नहीं है. कई जगहों पर अपर्याप्त भी है जिससे गड्ढे और दलदल जैसा बन गया है.

निर्जला व्रत किए श्रद्धालु इन घाटों तक परंपरा के मुताबिक पैदल कैसे जाएंगे! शायद यह सोचकर जाएंगे कि छठ करने के लिए हर तकलीफ और परेशानी भी सह लेनी है. छठी मैया सारे दुख खत्म कर देंगी.

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