उत्तर प्रदेश के 53 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्षों (Zila Panchayat Adhyaksh) का चुनाव आज सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक संपन्न हुआ. राज्य के 75 जिला पंचायतों में अध्यक्ष पद के चुनाव में 29 जून को नामांकन वापसी का अंतिम दिन था. उस दिन 21 जिलों में बीजेपी और इटावा जिले में सपा के उम्मीदवार निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुन लिए गए. बाकी बचे 53 जिलों के जिला पंचायत अध्यक्षों का चुनाव हो रहा है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हाल ही में संपन्न हुए हैं जिसमें प्रदेश को 58,175 ग्राम प्रधान, 75,852 क्षेत्र पंचायत सदस्य और 3051 जिला पंचायत सदस्य मिल चुके हैं. अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव परिणामों को सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है.
आखिर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में ऐसा क्या है जिसके लिए सिर्फ प्रदेश ही नहीं देश के बड़े नेता भी इस पर नजर जमाए हैं? क्या है इस पद की अहमियत, जिम्मेदारी और चुनाव प्रक्रिया ?
जिला पंचायत अध्यक्ष का पद क्या है?
जिला पंचायत अध्यक्ष का पद त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में सबसे बड़ा होता है. 73वें संविधान संशोधन के अंतर्गत त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में जिला स्तर पर पंचायत के गठन का प्रावधान किया गया है जिसे 'जिला पंचायत' कहते हैं.
सरकार जिला पंचायत के कामकाज को संचालित करने के लिए मुख्य योजना अधिकारी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति करती है. इसके अलावा आवश्यकता अनुसार उप सचिवों की भी नियुक्ति की जाती है, जो मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अधीन कार्य करते हैं. जिला पंचायत अध्यक्ष जिला पंचायत का राजनीतिक प्रमुख होता है. जिला पंचायत अध्यक्ष जिले भर की ग्राम पंचायतों का सर्वेसर्वा होता है.
जिला पंचायत अध्यक्ष के कार्य क्या हैं?
जिला पंचायतों का काम है कि वो जिलों के विकास की रूपरेखा तैयार करें. जिला पंचायत अध्यक्ष जिले भर की ग्राम पंचायतों का हेड होता है. अध्यक्ष के जिम्मे पंचायतों की सड़क, सफाई, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और अन्य बुनियादी सुविधाओं को जुटाने तथा उनके विकास की रूपरेखा तैयार करने की जिम्मेदारी होती है.
यानी गांव के स्तर पर जो कार्य ग्रामप्रधान का होता है वही काम जिला स्तर पर जिला पंचायत अध्यक्ष का होता है. वर्तमान में जिला पंचायत अध्यक्ष को केंद्र और राज्य सरकार के मद से प्रतिवर्ष कम से कम 10 करोड़ का बजट मिलता है. इसके अलावा जिला पंचायतें टैक्स के माध्यम से भी फंड उगाही कर सकती हैं, जैसे- कर वसूलना, बाजार परिचालन से वसूली, मकानों का नक्शा पास करके वसूली, आदि.
चुनाव की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर प्रदेश में जनता सीधे जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए वोट नहीं डालती. कई राज्यों में जनता सीधे जिला पंचायत अध्यक्षों का चुनाव करती है. लेकिन यूपी में नहीं .यहां पर जनता जिला पंचायत सदस्यों को चुनती है (यूपी में 3051 जिला पंचायत सदस्यों को हाल में संपन्न पंचायत चुनाव में चुन लिया गया है). जिला पंचायत सदस्य आपस में से जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करते हैं. यानी जिला पंचायत अध्यक्ष का उम्मीदवार जिला पंचायत का सदस्य होता है.
यदि कोई व्यक्ति नगर पालिका या नगर पंचायत का अध्यक्ष/उपाध्यक्ष हो, संसद या विधानसभा का सदस्य हो या किसी नगर निगम का अध्यक्ष/उपाध्यक्ष हो तो वह जिला पंचायत अध्यक्ष का पद ग्रहण नहीं कर सकता. इसके अलावा जो व्यक्ति जिस जिले से जिला पंचायत सदस्य चुना गया है वह उसी जिले से जिला पंचायत अध्यक्ष बन सकता है.
जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए मतदान बैलेट पेपर पर मुहर लगाकर नहीं होता बल्कि वरीयता के हिसाब से प्रत्याशियों के नाम के आगे 1,2.. लिखकर होता है. हालांकि जिसके नाम के आगे 1 लिखा जाता है,वोट उसी को जाता है.
जिला पंचायत और उसके अध्यक्ष का कार्यकाल
संवैधानिक रूप से जिला पंचायत का कार्यकाल जिला पंचायत की पहली बैठक की तारीख से शुरू होकर 5 वर्षों तक का होता है. यदि किसी कारणवश जिला पंचायत को निर्धारित समय के पूर्व भंग कर दिया जाता है तो इसके लिए 6 महीने के अंदर चुनाव करवाना पड़ता है.
जिला पंचायत के प्रशासन और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए संविधान में जिला पंचायत की बैठक का प्रावधान किया गया है. इसके अंतर्गत प्रत्येक 2 माह में कम से कम एक बैठक का आयोजन करना अनिवार्य है. जिला पंचायत अध्यक्ष द्वारा बैठक का आयोजन कभी भी किया जा सकता है. यदि अध्यक्ष उपस्थित नहीं है तो उपाध्यक्ष जिला पंचायत की बैठक बुला सकता है.
जिला पंचायत अध्यक्ष का वेतन कितना है?
जिला पंचायत अध्यक्ष के पद का अपना राजनीतिक रुतबा होता है. भले ही पार्टियां इसके लिए सिंबल ना दे लेकिन वे अपने प्रत्याशित घोषित करती हैं. जिला पंचायत अध्यक्ष को राज्य सरकार प्रति महीने ₹14,000 मानदेय और अन्य भत्ते देती है.
दूसरी तरफ जिला पंचायत सदस्यों को कोई मानदेय नहीं मिलता.हालांकि उनके लिए भत्ते का प्रावधान किया गया है. उन्हें हर बैठक में शामिल होने के लिए ₹1000 भत्ता मिलता है.
आखिर जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए राजनीतिक पार्टियां इतना जोर क्यों लगाती हैं?
राजनीतिक दलों का जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए पूरा दमखम लगाने का सबसे बड़ा कारण है कि इससे ग्रामीण स्तर तक की नुमाइंदगी मिलती है. इससे पब्लिक परसेप्शन को मापने का पैमाना माना जाता है और कई बार जिला पंचायत अध्यक्ष के नतीजे आगामी चुनाव में वोट को एक पाले से दूसरे पाले में मोड़ने का काम भी कर सकते हैं. यही कारण है कि सत्ताधारी बीजेपी ही नहीं बल्कि एसपी समेत पूरा विपक्ष भी दमखम के साथ इसमें जुटा हुआ है.
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