कोरोना वायरस से यूं तो देश का हर राज्य अपने तरीके से लड़ रहा है, लेकिन कुछ राज्य ऐसे हैं जिन्होंने ये साबित कर दिखाया है कि अगर कड़े नियम और अलग रणनीति से काम लिया जाए तो किसी भी महामारी से लड़ा जा सकता है. कुछ ऐसा ही कर केरल ने भी कर दिखाया है. जहां कोरोना के केस तो सामने आए, लेकिन यहां की सरकार ने इसकी स्पीड पर ब्रेक लगा दिया. कोरोना से पहले भी निपाह वायरस को लेकर भी केरल मॉडल ने देश के सामने एक नजीर पेश की थी.
कोरोना के लिए हो रहे अलग प्रयोग
केरल में कोरोना से निपटने के लिए कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं. सोशल डिस्टेंसिंग के ऐसे तरीके खोजे जा रहे हैं, जो काफी अलग और कारगर हैं. यहां टैक्सी ड्राइवरों को कोरोना से बचाने के लिए एक अलग ही आईडिया निकाला गया है. जिसमें टैक्सी ड्राइवर और पैसेंजर की सीट के बीच एक फाइबर ग्लास शीट लगाने की बात कही गई है. इस पार्टिशन से ड्राइवर पैसेंजर के संपर्क में नहीं आ पाएगा.
इसी तरह केरल के वित्तमंत्री ने लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग फॉलो करने के लिए छतरी का एक आइडिया दिया.
इसके पीछे तर्क था कि दो लोग अगर उतना ही करीब आ सकते हैं जब तक उनके छाते आपस में टकरा न जाएं. इसके बाद ये छतरी मुहिम चल पड़ी. नगर पालिकाओं ने हजारों छाते बांटे. लोगों ने मार्केट और सार्वजनिक जगहों पर छाते के साथ जाना शुरू कर दिया.
केरल मॉडल की चर्चा सिर्फ ऐसे नए प्रयोगों को देखकर नहीं हो रही है, बल्कि आंकड़े देखकर हो रही है. केरल वही राज्य है जहां सबसे पहले कोरोना के मामले सामने आए थे. लेकिन केरल ने कोरोना के कर्व को ऊपर नहीं उठने दिया और इसे फ्लैट करने में लगभग कामयाब रहा.
केरल में 23 मार्च को 95 मामले सामने आ चुके थे. वहीं इसके ठीक एक महीने बाद यहां 447 केस थे. यानी एक महीने में सिर्फ 4 गुना बढ़ोतरी हुई. 7 मई को राज्य में कुल पॉजिटिव केस की संख्या 502 है. वहीं 3 लोगों की मौत हुई है. यहां 94.42% मरीज रिकवर हो चुके हैं.
मजबूत है केरल का हेल्थ मॉडल
कोरोना चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ था. जहां केरल के कई छात्र पढ़ाई के लिए जाते हैं. ऐसे में राज्य सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय था कि जब ये छात्र लौटकर आएंगे तो क्या होगा? स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने जनवरी के आखिरी हफ्ते में बैठक बुलाई और तैयारी शुरू कर दी. जिसके बाद 30 जनवरी को भारत का पहला केस केरल में आया. लेकिन इससे पहले ही कंट्रोल रूम तैयार हो चुका था. देखते ही देखते पूरे राज्य में जागरुकता अभियान चलाया गया. हर जिले में स्वास्थ्य कर्मियों की टीमों को रवाना कर दिया गया. जिसके बाद आज केरल की भारत सहित दुनियाभर में चर्चा हो रही है.
लेकिन केरल अपने हेल्थ मॉडल को इससे पहले भी साबित कर चुका था. साल 2018 में निपाह वायरस का नाम सबसे पहले दक्षिण भारत से ही सामने आया था. ये वायरस इतना खतरनाक था कि इंसानी शरीर में सांस लेने की समस्या, तेज बुखार और कोमा तक पहुंचा सकता था. तब केरल के दो जिलों में निपाह वायरस के करीब 18 मामले सामने आए थे और कई मौतें भी हो चुकी थीं. लेकिन केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने तुरंत हेल्थ सिस्टम को एक्टिव किया और स्ट्रैटेजी तैयार की. मरीजों को तुरंत अलग किया गया और वायरस की चेन ब्रेक कर दी गई. इसके बाद वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने भी केरल मॉडल की तारीफ की थी.
केरल के हेल्थ स्ट्रक्चर का इस तरह मजबूत होने का एक बड़ा कारण ये भी है कि राज्य सरकार ने हेल्थ सेक्टर पर खास फोकस किया है. पिछले पांच साल में राज्य ने अपने हेल्थ स्ट्रक्चर पर करीब 5 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं. इसके अलावा लगातार नए हॉस्पिटल और डॉक्टर-नर्सों की भर्तियां हुईं.
कोरोना से निपटने के लिए केरल ने क्या किया?
- राज्य में तीसरा मरीज मिलते ही इमरजेंसी का ऐलान कर दिया गया. सभी मजिस्ट्रेट को पूरे अधिकार दे दिए गए.
- विदेश से आने वाले हर नागरिक को 28 दिन के क्वॉरंटीन में रखना शुरू कर दिया गया.
- संक्रमित मरीजों के कॉन्टैक्ट और उनके पूरे इलाके की निगरानी की गई, जरूरत पड़ने पर लोगों को अलग किया गया.
- राज्य में कोरोना मरीजों की पहचान के लिए करीब 12 टेस्टिंग लैब तैयार हुईं
- राज्य के शैक्षणिक संस्थानों, हॉस्टल और खाली पड़े सामुदायिक भवनों को आइसोलेशन वार्ड में तब्दील किया गया.
- दूसरे राज्य से आने वाले शख्स के लिए 14 दिन और विदेश से आने वालों के लिए 28 दिन का क्वॉरंटीन जरूरी
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