ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोरोना कहर के बावजूद लॉकडाउन क्यों नहीं ला रही महाराष्ट्र सरकार?

क्यों महाराष्ट्र सरकार के पास डे एंड नाइट कर्फ्यू के अलावा कोई और विकल्प नहीं था

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिहाड़ी कमाने वालों के बारे में सोच विचार कर लाए इस लॉकडाउन ने व्यापार संगठनों को नाराज किया है. इसे कर्फ्यू कहिए, कड़ा प्रतिबंध कहिए या फिर आप इसे कोई भी नाम दीजिए. लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने यकीनन 2020 के देशव्यापी लॉकडाउन के लगभग 1 साल बाद फिर से लॉकडाउन लगा दिया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
जहां पिछले साल लॉकडाउन को हरेक स्टेकहोल्डर्स ने स्वीकार किया था ,इस बार सरकार द्वारा सख्त चेतावनी ,लॉकडाउन से प्रभावित होने वाले संभावित लोगों से परामर्श और आम नागरिकों से सहयोग की अपील के बावजूद अधिकतर लोगों ने लॉकडाउन को मन से नहीं स्वीकारा है.

अनेक व्यापार संगठनों ,जिसमें महाराष्ट्र चेंबर ऑफ कॉमर्स ,इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर भी शामिल हैं, ने महाराष्ट्र सरकार पर कोविड-19 संक्रमण को रोकने के नाम पर उनके व्यापार को रोकने का आरोप लगाते हुए "कानूनी कार्यवाही" की बात की है.हालांकि यह किस तरह की "कानूनी कार्यवाही" होगी यह स्पष्ट नहीं है. यह दिखाता है कि वे अपने जीवन और उनसे संबंधित लोगों के जीवन की कितनी कम परवाह करते हैं .

क्यों महाराष्ट्र सरकार के पास डे एंड नाइट कर्फ्यू के अलावा कोई और विकल्प नहीं था

इसके बावजूद क्या सरकार के पास कोई और विकल्प था या क्या इन व्यापार संगठनों ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में कोविड-19 की दूसरी लहर को रोकने में सरकार का सहयोग किया ?

जब नवंबर 2020 के बाद कोविड-19 के प्रसार में कमी दिख रही थी, तब कर्मचारियों से जुड़े प्रोटोकॉल ,सुरक्षित दूरी, अनिवार्य रूप से मास्क लगाने या दूसरे उपायों को लेकर सतर्कता नहीं बरती गई.

नागरिकों ने भी हर एहतियाती उपायों का उल्लंघन करके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के अपीलों को नजरअंदाज किया. इसके बाद सरकार के पास राज्य में डे एंड नाइट कर्फ्यू लगाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

केंद्र से तल्ख संबंधों के बीच महाराष्ट्र की यूनिवर्सल वैक्सीनेशन की मांग

वैक्सीन आपूर्ति की कमी को लेकर केंद्र से तनाव के बीच महाराष्ट्र सरकार ने यूनिवर्सल वैक्सीनेशन की मांग की जिसमें 25 वर्ष के युवा भी शामिल हों.महाराष्ट्र में संक्रमित और मरने वालों के आंकड़े ज्यादा हैं क्योंकि गुजरात और उत्तर प्रदेश के विपरीत यहां आंकड़ों को छुपाने का आरोप नहीं है. साथ ही यहां पर्याप्त मात्रा में टेस्ट हो रहे हैं और मरने वालों के आधिकारिक आंकड़े और हॉस्पिटल से आ रहे वास्तविक जमीनी आंकड़ों के बीच का अंतर नगण्य है जबकि देश के दूसरे राज्यों में कहानी इसके ठीक विपरीत है.

मुंबई जैसे शहर में वायरस के प्रसार को रोकना एक कठिन कार्य है .जबकि महाराष्ट्र के दूसरे शहर जैसे पुणे, नासिक और उसके विंटर कैपिटल नागपुर में भी उसकी रफ्तार तुलनात्मक रूप से कम है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

महाराष्ट्र सरकार का सहानुभूति भरा लॉकडाउन प्रस्ताव -जिसने व्यापार संगठनों को नाराज किया

कोई यह कह सकता है कि सरकार और नागरिक ,दोनों के स्तर पर सावधानी में कमी के कारण महामारी में यह उछाल देखा जा रहा है. पर यह परिस्थिति सिर्फ महाराष्ट्र के सामने नहीं है .महाराष्ट्र सरकार इससे प्रभावित लोगों का ध्यान रखते हुए इससे लड़ रही है. सरकार ने सब को पर्याप्त नोटिस दिया ,जिसमें रेहडी वाले भी शामिल थे. साथ ही सरकार ने कुछ नियंत्रण के साथ सेवाओं के वितरण की अनुमति दी ताकि लॉकडाउन में मांग-आपूर्ति के संतुलन और कमाई में अत्यधिक बाधा ना पहुंचे.

दिहाड़ी कमाई वाले लोगों को काम करने की अनुमति दी गई है जबतक की वे भीड़ इकट्ठा ना करें और शारीरिक दूरी का ख्याल रखें. पर ऐसे कदम जनता के कल्याण के लिए बहुत सकारात्मक नहीं है.

2020 की ही तरह अधिकतर प्रवासी मजदूर जो मुंबई में नई शुरुआत की आशा से लौटे थे, पुनः वापस सड़कों से जाने लगे हैं .हालांकि इस साल उन्हें चिलचिलाती धूप में सैकड़ों किलोमीटर वापस पैदल नहीं जाना होगा क्योंकि यातायात के साधन पूरी तरह से ठप नहीं है .सरकार ने इम्पलॉयर्स पर कोविड लॉकडाउन से प्रभावित कामगारों की देखभाल और एक स्तर तक की आमदनी की शर्त रखी है.

आश्चर्यजनक रूप से यही वह कारण है जिसने व्यापार संगठनों को नाराज किया है. उनका तर्क है कि उन्हें पगार देना होगा जबकि बदले में वे उनसे काम नहीं ले सकते
ADVERTISEMENTREMOVE AD

महाराष्ट्र में आगे कुआं-पीछे खाई वाली हालत

सरकार एक तरफ अमीरों को नाराज कर रही, गरीबों को निराश कर रही है तो दूसरी तरफ कंपनियों को आधे कर्मचारी के साथ काम करने का निर्देश दे सैलरी क्लास को आय से वंचित कर रही है. इन सब का प्रभाव सरकार की अपनी आय पर ही पड़ रहा है.

इन सबके बीच महामारी ने राज्य में हेल्थ केयर सुविधाओं की तंगी कर दी है .सरकार को कोविड बेड्स( अधिकतर प्राइवेट और सरकारी अस्पताल पहले से ही भरे हुए हैं )ऑक्सीजन सुविधा और वेंटीलेटर्स की अत्यधिक जरूरत है. कुछ मायनों में यह स्थिति 2020 से भी भयावह है. मुर्दा घरों में लंबी लाइन है और कोविड से मरे लोगों के लिए डिस्पोजल किट्स की भी भारी कमी है.

इस परिस्थिति ने उद्धव ठाकरे द्वारा केंद्र को इसे “प्राकृतिक आपदा” घोषित करने की मांग पर विवश कर दिया है ताकि राज्य को कुछ फंड और इस महामारी से लड़ने के लिए केंद्र की मदद मिले.

बुधवार 16 अप्रैल को जब महाराष्ट्र में 60,000 केस का आंकड़ा पार हो गया है, राज्य सरकार आपातकाल की स्थिति में है. वह ना सिर्फ अस्पतालों में कोविड बेड्स की संख्या बढ़ा रही बल्कि कई 4 स्टार होटलों को कोविड मरीजों के लिए नॉन इमरजेंसी केयर यूनिट में बदलने पर जोर दे रही है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×