राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राज्यपाल कलराज मिश्र से लगातार विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पढ़ें तो सत्र बुलाने पर कैबिनेट की सिफारिश के बाद राज्यपाल के पास अपने विवेक का इस्तेमाल करने के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं बचती.
अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, राज्यपाल आर्टिकल 174 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए, अशोक गहलोत सरकार की सलाह को तभी टाल सकते हैं या दरकिनार कर सकते हैं, जब सरकार का बहुमत संदेह में हो.
संविधान का आर्टिकल 174 कहता है, ‘’राज्यपाल समय-समय पर, राज्य के विधानमंडल के हर एक सदन या सदन को ऐसे समय और स्थान पर , जिसे वह ठीक समझें, मिलने के लिए समन करेंगे, लेकिन उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की पहली बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह महीने का अंतर नहीं होगा.’’
तो क्या इसका मतलब यह है कि राज्यपाल अपने आकलन के मुताबिक सदन को समन करने के लिए, सीएम की अध्यक्षता वाले मंत्रिपरिषद की सलाह को अनदेखा करते हुए भी, अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकते हैं? नबाम रेबिया फैसले (जुलाई 2016) में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने संविधान के प्रारूप और उसके अंतिम संस्करण में आर्टिकल 174 के रूप में प्रावधान की बारीकी से समीक्षा की और फैसला सुनाया, ''हम यह निष्कर्ष निकालने में संतुष्ट हैं कि राज्यपाल सदन को समन, स्थगित या भंग सिर्फ सीएम के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद की सलाह पर कर सकते हैं. अपने आप से नहीं.''
बेंच ने कहा था, “हमारा विचार है कि सामान्य परिस्थितियों में जब सीएम और उनके मंत्रिपरिषद के पास सदन का विश्वासमत हो, राज्यपाल के पास निहित शक्ति का इस्तेमाल सीएम और उनके मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के अनुरूप किया जाना चाहिए.’’
कोर्ट ने कहा था, "ऐसी स्थिति में जहां राज्यपाल के पास यह विश्वास करने की वजह है कि सीएम और उनकी मंत्रिपरिषद ने सदन का विश्वास खो दिया है, तो राज्यपाल के पास यह विकल्प होगा कि वह सीएम और उनके मंत्रिपरिषद को फ्लोर टेस्ट के जरिए बहुमत साबित करने को कहें. केवल ऐसी स्थिति में, जब इस तरह का फ्लोर टेस्ट होने पर सत्ता में सरकार बहुमत खोती दिखती हो, राज्यपाल के पास विकल्प होगा कि वह आर्टिकल 174 के तहत निहित शक्तियों का इस्तेमाल करें.''
क्या राजस्थान के राज्यपाल को लगता है कि गहलोत सरकार ने अपना बहुमत खो दिया है और वह उसकी सलाह के मुताबिक सदन को बुलाने के लिए बाध्य नहीं हैं? अगर ऐसा होगा फिर भी राज्यपाल को सीएम को सदन के पटल पर बहुमत साबित करने का निर्देश देना होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले राज्यपाल को राजभवन में ही बैठकर यह फैसला लेने से रोकते हैं कि सरकार को सदन का बहुमत हासिल है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कई बार फैसला दिया है कि बहुमत का परीक्षण सदन के पटल पर होना चाहिए.
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