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UP: हर साल औसतन 27 आरोपियों की मुठभेड़ में मौत, मेरठ जोन में सबसे ज्यादा एनकाउंटर

सबसे ज्यादा मौतें साल 2018 में हुई थी, जहां एनकाउंटर में 41 अभियुक्त मारे गए थे.

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उत्तर प्रदेश में बढ़ते एनकाउंटर (Encounter in UP) पर उठे सवालों के बीच चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद 11 हजार 808 मुठभेड़ की घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें 194 अभियुक्तों की मौत हुई है.

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ये आंकड़े यूपी पुलिस की ओर से जारी किए गए हैं, जिसके अनुसार, 5896 आरोपियों के पैर में गोली लगी है, जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई. इन आंकड़ों पर सवाल उठने लगे हैं. कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश पुलिस महकमे के वरिष्ठ अधिकारी भले ही इसे नीतिगत व्यवस्था न मानें, लेकिन एनकाउंटर प्रदेश की पुलिस की कार्यशैली का एक अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं.

अगर आंकड़ों पर गौर करें तो सरकार बनने के बाद औसतन प्रतिदिन पांच एनकाउंटर प्रदेश में हुए हैं. इस दौरान 16 पुलिसकर्मियों ने भी जान गंवाई है. इसमें 1501 पुलिसकर्मी घायल भी हुए.

जानकारों का कहना है कि मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के बाद एनकाउंटर का जो दौर शुरू हुआ, वह अभी तक नहीं थमा है. शुरुआत में पुलिस की इन कार्रवाइयों पर मानवाधिकार आयोग और गैर सरकारी संस्थाओं ने आवाज उठाए. कई मामले सुप्रीम कोर्ट तक भी गए लेकिन कोई ठोस कार्रवाई पुलिस के खिलाफ नहीं हो पाई.

उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री समेत कई बड़े मंत्रियों ने एनकाउंटर के हवाले कथित तौर पर सुधरी कानून व्यवस्था को चुनावी मंच से अपनी उपलब्धि के तौर पर गिनाया है.

ताबड़तोड़ एनकाउंटर, लेकिन अपराधियों के हौसले नहीं हुए पस्त

पिछले 7 सालों में 194 अभियुक्तों की पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई है. इसमें सबसे ज्यादा मौतें साल 2018 में हुई थीं, जहां एनकाउंटर में 41 अभियुक्त मारे गए थे. वहीं सबसे कम संख्या 2022 में थी, जब 14 आरोपियों की पुलिस मुठभेड़ में मौत हो गई थी.

इसी साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी हुए थे, जब बीजेपी प्रचंड बहुमत से दोबारा उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई थी और एक बार फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बागडोर संभाली. उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इस साल 2023 में 7 दिसंबर तक 26 अभियुक्तों की पुलिस मुठभेड़ में मृत्यु हुई है. पिछले 7 सालों में औसतन 27 अभियुक्तों की हर साल पुलिस एनकाउंटर में मौत हुई है.

प्रदेश में ताबातोड़ हो रहे एनकाउंटर के बावजूद कई ऐसे मौके आए, जहां पर बदमाशों ने खुलेआम पुलिस को चुनौती दी. इसमें सबसे खौफनाक कानपुर का बिकरु कांड था, जहां पर माफिया विकास दुबे और उसके साथियों ने एक डीएसपी समेत 8 पुलिस वालों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. जवाबी कार्रवाई में विकास दुबे समेत उसके 6 साथियों को पुलिस एनकाउंटर में मार गिराया गया था.

मेरठ में सबसे अधिक, किस जिले में कितने एनकाउंटर?

7 दिसंबर 2023 तक जारी आंकड़ों के जोन और कमिश्नरी के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि सबसे ज्यादा एनकाउंटर मेरठ जोन में हुए हैं. इस जोन में मेरठ, हापुड़, मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर बिजनौर और बागपत जिले आते हैं. पिछले 7 सालों में जहां 3428 एनकाउंटर हुए, जिसमें सबसे ज्यादा 64 अपराधी मारे गए.

दूसरे नंबर पर वाराणसी क्षेत्र रहा, जहां जोन और कमिश्नरी मिलकर पिछले 7 साल में 27 अपराधी मारे गए. इसके बाद नंबर आता है आगरा क्षेत्र का, जहां जोन और कमिश्नरी मिलकर इतने ही समय में 21 अपराधी पुलिस की गोलियों का शिकार हुए.

एनकाउंटर में एसटीएफ सबसे एक्टिव

यूपी पुलिस की इकाई स्पेशल टास्क फोर्स एनकाउंटर को लेकर सबसे ज्यादा सक्रिय रही. एडिशनल डायरेक्टर जनरल अमिताभ यश के नेतृत्व में एसटीएफ की टीमों ने पूरे प्रदेश भर में कई एनकाउंटर किए. बिकरू कांड से चर्चा में आए विकास दुबे, माफिया अतीक अहमद के बेटे असद अहमद, गैंगस्टर अनिल दुजाना और राशिद कालिया के अलग- अलग एनकाउंटर में हुई मौत से एसटीएफ हमेशा पर चर्चा में रही.

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एसटीएफ के अलावा "एनकाउंटर कॉप" के नाम से जाने जाने वाले कुछ आईपीएस ऑफिसर्स हमेशा मीडिया की सुर्खियों में छाए रहे. इनमें डीआईजी अजय साहनी और एसपी अजय पाल शर्मा शामिल हैं. अजय साहनी इस समय डीआईजी सहारनपुर रेंज के पद पर तैनात हैं. अलीगढ़, मेरठ और जौनपुर में जिले के बतौर पुलिस कप्तान इनके कार्यकाल के दौरान ताबातोड़ एनकाउंटर हुए. कुछ ऐसी ही स्थिति अजय पाल शर्मा की रही, जो इस समय बतौर पुलिस कप्तान जौनपुर में तैनाती है. शामली में तैनाती के दौरान इनके एनकाउंटर के चर्चे लखनऊ तक होते थे.

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