पटना में महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन के बाद पटना मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल प्रशासन की ओर से लापरवाही की घटना सामने आई है. वशिष्ठ नारायण का पार्थिव शरीर करीब एक घंटे तक एंबुलेंस के इंतजार में अस्पताल के बाहर पड़ा रहा.
सिंह के भाई अयोध्या प्रसाद सिंह ने आरोप लगाया कि उनके भाई के पार्थिव शरीर को पटना स्थित उनके आवास ले जाने के लिए पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल प्रशासन ने समय पर एंबुलेंस उपलब्ध नहीं करवाई जिसके कारण शव को काफी देर तक स्ट्रेचर पर रखना पड़ा.
इस आरोप के बारे में पीएमसीएच के अधीक्षक राजीव रंजन प्रसाद ने कि उन्हें जैसे ही सूचना मिली तुरंत एंबुलेंस उपलब्ध करवाई गई.
वशिष्ठ नारायण के मृत्यु पर सभी ने शोक तो जताया पर शायद ये मात्रा एक दिखावा था, बताया जा रहा है की मृत्यु जे बाद वशिष्ठ नारायण सिंह का पार्थिव शरीर पीएमसीएच कैंपस के बहार स्ट्रेचर पर रखा था जहां उनके परिजन एम्बुलेंस का इंतज़ार कर रहे थे.
लोगों ने वशिष्ठ को बताया असली हीरो...
कुमार विश्वास ने ट्वीट करके कहा उफ़्फ़, इतनी विराट प्रतिभा की ऐसी उपेक्षा? विश्व जिसकी मेधा का लोहा माना उसके प्रति उसी का बिहार इतना पत्थर हो गया? आप सबसे सवाल बनता हैं ! भारतमाँ क्यूँ सौंपे ऐसे मेधावी बेटे इस देश को जब हम उन्हें सम्भाल ही न सकें?
वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन बिहार एवं देश के लिए अपूरणीय क्षति है. उन्होंने दिवंगत आत्मा की चिर-शान्ति तथा उनके परिजनों को दुःख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
शादी के बाद कितना कितना कठिन था नारायण का जीवन
सिंह का विवाह वर्ष 1973 में वंदना रानी सिंह के साथ हुआ. करीब एक साल बाद वर्ष 1974 में उन्हें पहला दौरा पड़ा. परिजनों ने उनका इलाज कराया गया लेकिन जब उनकी तबीयत ठीक नहीं हुई, तो उन्हें 1976 में रांची में भर्ती कराया गया. बीमारी के कारण उनके असामान्य व्यवहार से परेशान होकर उनकी पत्नी ने उनसे तलाक तक ले लिया.
निर्धन परिवार से होने और आर्थिक तंगी में जीवन व्यतीत करने वाले सिंह वर्ष 1987 में अपने गांव लौट आए और यहीं रहने लगे. करीब दो साल बाद वर्ष 1989 में वह अचानक लापता हो गये. परिजनों ने उन्हें ढूंढने की काफी कोशिश की लेकिन वह नहीं मिले. करीब चार साल बाद वर्ष 1993 में वह सारण जिले के डोरीगंज में पाये गये थे.
राजधानी पटना के कुल्हड़यिा कॉम्पलेक्स में अपने भाई के एक फ्लैट में गुमनामी का जीवन बिताते रहे महान गणितज्ञ के अंतिम समय तक के सबसे अच्छे मित्र किताब, कॉपी और पेंसिल ही रहे. सिंह ने अपने जीवन के 44 साल मानसिक बीमारी सिजेफ्रेनिया में गुजारा। उनके बारे में मशहूर किस्सा है कि नासा में अपोलो की लॉन्चिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर का कैलकुलेशन एक समान था.
आइंस्टीन के सिद्धांत को दी थी चुनौती
गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह ने महान वैज्ञानिक आइंस्टीन के रिलेटिविटी के सिद्धांत को चुनौती दी थी. उनका एक मशहूर किस्सा है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए, तो नारायण ने उस बीच कैलकुलेशन किया और कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक जैसा ही था.
उनके निधन की खबर से पूरा बिहार गम में है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने श्रद्धांजलि दी है. महान गणितज्ञ के निधन पर मुख्यमंत्री ने कहा कि वह इस निधन से दुखी हैं. वह बेहद सम्मानित सज्जन थे.
पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने भी वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन पर शोक जताया. मांझी ने कहा कि वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन से समाज को अपूर्णीय क्षति पहुंची है.
1969 में कैलिफोर्निया से PHD
गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह ने 1969 में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की. जिसके बाद वह वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए. वशिष्ठ नारायण ने नासा में भी काम किया, लेकिन वह 1971 में भारत लौट आए.
भारत लौटने के बाद वशिष्ठ नारायण ने आईआईटी कानपुर, आईआईटी बंबई और आईएसआई कोलकाता में नौकरी की. 1973 में उनकी शादी हो गई. शादी के कुछ समय बाद वह मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित हो गए. इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद उनकी पत्नी ने उनसे तलाक ले लिया.
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