सोशल मीडिया पर कोविड-19 'वैरिएंट्स' और उनकी कथित 'रिलीज डेट' की एक टेबल वायरल हो रही है. दावे में कहा गया है कि वैरिएंट लोगों को बेवकूफ बनाने का एक तरीका है.
हालांकि, हमने पाया कि ये दावा सही नहीं है. और जैसा कि स्क्रीनशॉट में दिख रहा है, किसी भी संगठन ने भविष्य के कोविड-19 वैरिएंट से जुड़ी कोई लिस्ट जारी नहीं की है. इसके अलावा, संबंधित वैरिएंट के लिए बताई गई तारीखें भी गलत हैं.
दावा
वायरल पोस्ट के साथ कैप्शन में लिखा है, ''इन कोविड-19 वैरिएंट को प्लान किया गया है - बस उन तारीखों को देखें जब उन्हें मीडिया के लिए जारी किया जाएगा.''
टेबल में दो कॉलम दिए गए हैं, जो स्पैनिश में हैं. एक का टाइटल है, ''सेपा/वेरिएंट (cepa/variante)" और दूसरे का "लानज़ैमेंटो (lanzamiento)". इनका मतलब होता है ''वैरिएंट'' और ''लॉन्च''. टेबल में इन कॉलम के नीचे वैरिएंट के नाम और उनकी रिलीज डेट लिखी हुई है.
सोशल मीडिया में कई लोगों ने इसी कैप्शन के साथ वायरल फोटो के शेयर किया है.
पड़ताल में हमने क्या पाया
वैज्ञानिक महामारी की शुरुआत से ही वायरस के अलग-अलग म्यूटेशन और उसके संभावित वैरिएंट की स्टडी कर रहे हैं. WHO ने 31 मई को घोषणा की थी कि वो ग्रीक वर्णमाला के अक्षरों के हिसाब से नए वायरल स्ट्रेन को लेबल (वर्गीकरण) करेगा.
यूके और दक्षिण अफ्रीका में सामने आए वैरिएंट को अल्फा और बीटा वैरिएंट के रूप में नाम दिया गया था. इसके अलावा, जो वैरिएंट पहली बार भारत में पाया गया था उसे डेल्टा वैरिएंट कहा गया.
जिन-जिन संगठनों के लोगो इस वायल स्क्रीनशॉट में थे, उनके नाम हैं डब्ल्यूएचओ, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी. हमने इन सभी संगठनों की वेबसाइट पर जाकर देखा.
किसी भी संगठन ने भविष्य में आने वाले वैरिएंट की ऐसी लिस्ट नहीं जारी की है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, अभी तक 10 ऐसे वेरिएंट की पहचान की गई है जो चिंता का विषय (वैरिएंट ऑफ कंसर्न) हैं और जो वैरिएंट्स ऑफ इंट्रेस्ट हैं.
वायरल लिस्ट के मुताबिक, डेल्टा वैरिएंट को जून 2021 में रिलीज किया गया था जबकि वास्तव में ये वैरिएंट पहली बार अक्टूबर 2020 में पाया गया था. इसे WHO ने 11 मई को वैरिएंट ऑफ कंसर्न (VOC) में शामिल किया था.
वायरल लिस्ट में पिछले वैरिएंट जैसे अल्फा और बीटा का जिक्र नहीं था.
कैसे बनते हैं कोविड वैरिएंट?
वायरल लिस्ट में ये तथ्य भी नजरअंदाज किया गया है कि वैरिएंट स्वाभाविक रूप से अनियमित या अचानक से हुए म्यूटेशन की वजह से सामने आते हैं. ये मानव निर्मित नहीं है.
म्यूटेशन तब होता है जब वायरस अपनी ही कॉपी बनाता है. ज्यादातर मामलों में ये कॉपी फ्लॉलेस (यानी इनमें कोई बदलाव या कमी नही आती) होती हैं. लेकिन कभी-कभी इसमें छोटे-छोटे बदलाव होते हैं, जिन्हें म्यूटेशन कहा जाता है. ये म्यूटेशन आपस में मिलकर वैरिएंट बनाते हैं.
इसके अलावा, नए और उभरते हुए वैरिएंट की भविष्यवाणी करना कठिन है.
बाथ यूनिवर्सिटी में सूक्ष्मजीव विकास के प्रोफेसर एड फीन ने मई 2020 में The Conversation के एक पीस लिखा. उन्होंने लिखा, ''वायरस के विकास से जुड़ी भविष्यवाणियां और विशेष रूप से उसके विषैलेपन में बदलाव, हमेशा अनिश्चितता से भरे रहेंगे. अनियमित रूप से म्यूटेट हुए आरएनए की अनिश्चितता, वायरस के संचार और बढ़ने से जुड़ा अव्यवस्थित पैटर्न, और प्राकृतिक चयन की आंशिक रूप से समझी जाने वाली फोर्स, यहां तक कि सबसे व्यावहारिक विकासवादी भविष्यवक्ता के लिए भी चुनौतियां पेश करती हैं.''
मतलब साफ है कि कई लोगों ने सोशल मीडिया पर कोविड-19 वैरिएंट और उनके लॉन्च होने की भविष्य की तारीखों वाली एक नकली लिस्ट शेयर की है. न तो इस लिस्ट का कोई प्रामाणिक स्रोत है और न ही इसे किसी संगठन या संस्थान ने जारी किया है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)