केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली सीमा पर चल रहा किसान आंदोलन अब भी जारी है. किसान संगठन कह रहे हैं कि जबतक कृषि कानून वापस नहीं लिए जाएंगे तबतक ये प्रदर्शऩ चलता रहेगा.
ऐसे में एक तरफ जहां किसान आंदोलन से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. वहीं दूसरी तरफ आंदोलन से जुड़ी फेक न्यूज फैलाने वाले भी रुकने को तैयार नहीं हैं. क्विंट हिंदी की वेबकूफ टीम लगातार किसान आंदोलन से जुड़े भ्रामक दावों का सच आप तक पहुंचाती रही है. जानिए ऐसे 5 झूठे दावों का सच जिन्हें सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में यूजर्स ने सच मानकर शेयर किया.
1.किसान आंदोलन में नहीं गईं थीं अमूल्या, गलत दावे के साथ फोटो वायरल
तमिलनाडु की स्टूडेंट एक्टिविस्ट वलारमथी जनवरी में किसानों के विरोध में शामिल होने के लिए टिकरी बॉर्डर आईं थी. वलारमथी की फोटो को सोशल मीडिया में अमूल्या लियोना के तौर पेश किया जा रहा है. अमूल्या पर पिछले साल ''पाकिस्तान जिंदाबाद'' के नारे लगाने के आरोप लगे थे. कई सोशल मीडिया यूजर ने दोनों एक्टिविस्ट की फोटो एक साथ शेयर करके ये गलत दावा किया कि ये दोनों एक ही हैं.
क्विंट की वेबकूफ टीम से बात करते हुए वलारमथी ने कहा कि यह दावा ‘’पूरी तरह से गलत’’ है. वलारमथी 25 से 27 जनवरी के बीच टिकरी और सिंघु बॉर्डर में कई लोगों के साथ पहुंची थी. हमें वलारमथी से जुड़ी कई न्यूज रिपोर्ट भी देखने को मिलीं. इनमें द हिंदू और न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स भी शामिल हैं.
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2. अंडरटेकर ने नहीं किया किसान आंदोलन का समर्थन
अंडरटेकर की एक फोटो शेयर कर दावा किया गया कि वे भारत में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में उतर आए हैं. दावे के साथ किसान आंदोलन के समर्थन में किए गए अंडरटेकर के एक कथित ट्वीट का स्क्रीनशॉट भी कई यूजर्स ने शेयर किया.
वेबकूफ की पड़ताल में ये स्क्रीनशॉट फेक निकला. दावे की पुष्टि के लिए हमने अंडरटेकर का ऑफिशियल ट्विटर हैंडल चेक किया. 17 दिसंबर, 2020 के ट्वीट में हमें वही फोटो मिली, जो वायरल स्क्रीनशॉट में है. लेकिन, ये ट्वीट अंडरटेकर ने किसान आंदोलन को लेकर नहीं किया है. ये ट्वीट समाजसेवा से जुड़े एक प्रोग्राम को लेकर है.
वायरल स्क्रीनशॉट और असली ट्वीट को मिलाने पर साफ हो रहा है कि एडिटिंग के जरिए किसान आंदोलन से जुड़ा ट्वीट जोड़ा गया है. ट्वीट के फॉन्ट में दिख रहे अंतर से भी साफ हो रहा है कि वायरल स्क्रीनशॉट असली नहीं है और ये दावा झूठा है.
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3.किसान आंदोलन में नहीं बंटी शराब
सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर कर दावा किया गया कि किसान आंदोलन के दौरान शराब बांटी गई. हालांकि, वेबकूफ की पड़ताल में सामने आया कि वीडियो अप्रैल 2020 का है, संसद में कृषि से जुड़े तीन नए कानून तब पास भी नहीं हुए थे.
ये पुष्टि नहीं हो सकी कि वीडियो असल में किस जगह का है और कब शूट किया गया. लेकिन, चूंकि वीडियो अप्रैल 2020 को ही इंटरनेट पर आ चुका है इसलिए साफ है कि ये संसद में कृषि से जुड़े बिल पास होने से पहले का है. यानी इस वीडियो का दिल्ली सीमा पर चल रहे किसान के प्रदर्शन से कोई संबंध नहीं है.
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4. फर्जी महिला पत्रकारों के अकाउंट से दावा- किसानों ने की अश्लील हरकत
ट्विटर पर महिलाओं के नाम से बने कुछ अकाउंट्स से ट्वीट कर ये दावा किया गया कि किसान आंदोलन में महिलाओं के साथ अश्लील हरकत हुई. महिलाओं के नाम पर बने अकाउंट से ये मैसेज छेड़छाड़ के एक निजी अनुभव की तरह शेयर किया गया.
मैसेज है - कल जो मेरे साथ अश्लील हरकत हुई उसके सीधे-सीधे जिम्मेवार राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव हैं मैं दिल्ली पुलिस से मांग करती हूं इन दोनों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करें मैं एक पत्रकार नहीं महिला भी हूं.
मैसेज पोस्ट करने वाले हैंडल अलग हैं. लेकिन पोस्ट एक ही है. शब्दशः छेड़छाड़ का एक ही अनुभव. मैसेज कॉपी-पेस्ट होने की वजह से इसकी सत्यता पर सवाल खड़े होते हैं. दावा करने वाले ट्विटर हैंडल्स की प्रोफाइल चेक करने पर सामने आया कि मैसेज शेयर करने वाले अकाउंट फेक हैं.
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5. लाल किले पर किसानों ने नहीं फहराया खालिस्तानी झंडा
26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली में शामिल किसानों ने लाल किले पर चढ़कर झंडा फहराया. दिल्ली के कई हिस्सों में प्रदर्शनकारी किसानों और सुरक्षा बलों के बीच तीखी झड़प भी देखने को मिली.इसी बीच सोशल मीडिया समेत कुछ न्यूज चैनल्स की रिपोर्ट में ये दावा किया गया कि लाल किले पर फहराया गया झंडा खालिस्तान का है. वेबकूफ की पड़ताल में सामे आया कि झंडा खालिस्तान का नहीं है. एक झंडा सिख धर्म से जुड़े निशान साहिब का है. वहीं दूसरा किसान संगठन का ह
कई वेरिफाइड ट्विटर अकाउंट्स से दावा किया गया कि तिरंगे को हटाकर खालिस्तान का झंडा लगाया गया है.
लाल किले पर मौजूद द क्विंट के संवाददाता शादाब मोईज़ी ने बताया कि दोनों में से कोई भी झंडा खालिस्तान का नहीं है. पहला झंडा ( केसरिया रंग ) सिख धर्म से जुड़े निशंक साहिब का है. वहीं दूसरा झंडा (पीला रंग) किसानों का है. हमने लाल किले पर लगाए गए झंडे की फोटो का निशंक साहिब के झंडे की फोटो से मिलान किया. जिसमें साफ हुआ कि दोनों एक ही हैं.
दोनों झंडों का खालिस्तान के झंडे से मिलान करने पर भी ये साफ हो रहा है कि लाल किले पर खालिस्तान का झंडा नहीं है. ये पुष्टि नहीं हो सकी कि पीला झंडा किस किसान संगठन का है. लेकिन, ये साफ हो गया कि खालिस्तान का नहीं है.
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