फेसबुक पर एक शख्स की तस्वीरें शेयर कर दावा किया जा रहा है कि वो भौतिक विज्ञानी एचसी वर्मा हैं, जिन्होंने 'कॉन्सेप्ट्स ऑफ फिजिक्स' नाम की एक किताब लिखी है. इस किताब का इस्तेमाल बहुत से स्कूलों में किया जाता है.
दावे में कहा गया है कि वर्मा को उनकी किताब के लिए 1 करोड़ रुपये की रॉयल्टी मिलती है. जिसे वे प्रधानमंत्री राहत कोष में दान करते हैं. और सादा जीवन जीते हैं.
हमने पाया कि शेयर हो रही तस्वीरें वाकई में वर्मा की ही हैं. लेकिन उन्होंने साल 2018 में ही इस दावे को खारिज किया था. ये मैसेज तब भी ट्विटर पर शेयर किया जा रहा था. तब कई मीडिया आउटलेट ने इस दावे के संबंध में रिपोर्ट्स भी पब्लिश की थीं.
दावा
फोटो के साथ शेयर किए जा रहे टेक्स्ट में लिखा है: "ये कानपुर IIT की सीनियर प्रोफेसर एचसी वर्मा हैं. इन्हें अपनी किताब 'कॉन्सेप्ट्स ऑफ फिजिक्स' के लिए हर साल रॉयल्टी में 1 करोड़ रुपये मिलते हैं. जिसे वो प्रधानमंत्री राहत कोष और दूसरे चैरिटी संगठनों को दान कर देते हैं. वो अपनी तनख्वाह से गरीब छात्रों की फीस भरते हैं. आज भी, वो अपने पुराने बजाज प्रिया स्कूटर से चलते हैं. ऐसे व्यक्तित्व को सलाम. लेकिन आश्चर्य ये है कि हमारी मीडिया कभी भी ऐसे शख्स के बारे में बात नहीं करती.''
पड़ताल में हमने क्या पाया
हमने शेयर की जा रही तस्वीरों को रिवर्स इमेज सर्च करके देखा. हमें ये फोटो एचसी वर्मा की वेबसाइट पर मिलीं.
हमने 'HC Verma royalties' जैसे कीवर्ड इस्तेमाल करके सर्च किया, जिससे हमें साल 2018 की DNA और Moneycontrol की न्यूज रिपोर्ट्स मिलीं. इनमें इस बारे में बताया गया था कि कैसे एचसी वर्मा ने इन दावों को खारिज किया है और खुद को ''एक आम आदमी और भौतिकी सीखने वाला'' बताया था.
इसके अलावा, हमें एचसी वर्मा के फेसबुक पेज पर 13 अप्रैल, 2018 की एक पोस्ट मिली, जिसमें उन्होंने इन दावों को गलत बताया था.
फेसबुक पोस्ट के मुताबिक, उन्होंने इस दावे को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करते हुए ये भी बताया कि उनके पास कभी भी इस तरह का कोई स्कूटर नहीं था जैसा कि दावे में बताया जा रहा है. उन्होंने इस पोस्ट में खुद को आम आदमी बताया.
एचसी वर्मा को साल 2020 में, यानी उनके रिसर्च और टीचिंग से रिटायरमेंट के 3 साल बाद पद्मश्री से नवाजा गया है.
मतलब साफ है, ये दावा गलत है कि एचसी वर्मा अपनी किताब के लिए मिलने वाली 1 करोड़ की रॉयल्टी प्रधानमंत्री राहत कोष में दान कर देते हैं और गरीब बच्चों की फीस भरते हैं. उन्होंने साल 2018 में ही इस दावे को खारिज कर दिया था.
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