एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है, जिसमें खून से लथपथ एक महिला दिख रही हैं और आरोप लगा रही हैं कि लावारिस कुत्तों की मदद के वक्त उनपर और उनकी टीम पर हमला हुआ. अब इस वीडियो को फर्जी दावे के साथ वायरल किया जा रहा है, दावा किया जा रहा है कि ये महिला मुस्लिम हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने उनपर हमला किया है.
हालांकि, द क्विंट से बातचीत में आयशा क्रिस्टिना जो कि एनजीओ 'नेबरहुड वूफ' की फाउंडर हैं, उन्होंने साफ किया है कि इस घटना में कोई भी धार्मिक या सांप्रदायिक एंगल नहीं था.
दावा
कुछ सोशल मीडिया यूजर इस दावे के साथ पोस्ट शेयर कर रहे हैं कि ये मुस्लिम डॉक्टर हैं. एक ट्विटर यूजर ने इस टेक्स्ट के साथ वीडियो शेयर किया है- “हिंदू चरमपंथी समूह आरएसएस, जिससे प्रधानमंत्री मोदी और सत्ताधारी दल भी जुड़े हैं, उसके कार्यकर्ताओं ने हॉस्पिटल में आयशा की पिटाई की है, वो एक डॉक्टर हैं. उनपर ये आरोप लगाया गया है कि वो कोरोनावायरस फैला रही हैं और भारत में मुस्लिमों के खिलाफ एक बड़ा अभियान चलाया देखा जा रहा है.''
कई सारे दूसरे ट्विटर यूजर ने भी कमोबेश इसी नैरेटिव के साथ वीडियो शेयर किया है.
हमने क्या पाया?
तीन जुलाई को हुई एक घटना के बैकग्राउंड में ये सारे नैरेटिव चलाए जा रहे हैं. 3 जुलाई को 'नेबरहुड वूफ' एनजीओ टीम ने ये आरोप लगाया था कि दिल्ली के रानी बाग के ऋषि नगर इलाके में उनपर हमला हुआ था. स्थानीय लोगों ये हमला किया था, जब वो लावारिस कुत्तों की मदद के लिए इस इलाके में पहुंचे थे. टीम ने पूरी घटना को बताते हुए एक वीडियो शेयर किया था लेकिन कहीं भी ऐसा जिक्र नहीं था कि इस घटना में कोई धार्मिक-सांप्रदायिक एंगल हो. क्विंट की वेबकूफ टीम ने आयाशा क्रिस्टिन से इस बारे में बात कि उन्होंने साफ किया कि घटना का किसी भी धार्मिक विवाद से लेना देना नहीं है.
“मेरा नाम आयशा क्रिस्टीना बेन कांत है. मेरे दादाजी शर्मा थे. मेरे पिता, एक हिंदू शख्स, जिन्होंने अपनी बेटी को मुस्लिम नाम दिया. क्या ये ऐसे लोगों को करारा जवाब नहीं है जो मामले को सांप्रदायिक एंगल देने की कोशिश में हैं. ये भेदभाव है लेकिन कोई धार्मिक भेदभाव नहीं.’’आयशा क्रिस्टीना, फाउंडर, नेबरहुड वूफ
क्रिस्टिना ने कहा,’’वो जो भी लोग हैं, जो इसे गलत मकसद से फैला रहे हैं, उनकी सोच और एजेंडा बिलकुल साफ है, कम से कम मेरे लिए तो है ही. इसलिए न तो मैं ऐसे लोगों को कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहती, अगर मैं ऐसा करती हूं तो ये उनकी सोच को बढ़ावा देना ही होगा.''
इस बीच, 4 जुलाई को जारी एक प्रेस रिलीज में दिल्ली पुलिस की तरफ से कहा गया था कि इस मामले में स्थानीय लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 323, 341, 506, 427 के तहत केस दर्ज कर लिया गया है. दिल्ली पुलिस ने अपने बयान में कहा था, ''देर रात को देखते हुए, स्थानीय लोगों ने एनजीओ के मेंबर्स से उनकी पहचान के बारे में पूछा, बातचीत बहस में तब्दील हो गई और उनके बीच हाथापाई हुई. इसके बाद एनजीओ के मेंबर अपनी गाड़ी में बैठकर निकलने की कोशिश कर रहे थे, उस वक्त तीन स्थानीय लोगों ने उनकी कार पर हमला किया और उन्हें मामूली चोटें आईं.''
कुल मिलाकर ये पूरी घटना दिल्ली के ऋषि नगर में हुई जरूर थी लेकिन वीडियो को गलत नैरेटिव के साथ, कम्युनल एंगल देकर सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है, जो पूरी तरह से फर्जी है.
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