9/11. 11 सितंबर 2001 को अमेरिकी की खुफिया एजेंसी CIA के डायरेक्टर जॉर्ज टेनेट एक होटल में ब्रेकफास्ट कर रहे थे. 8 बजकर 46 मिनट पर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ टॉवर में एक विमान क्रैश होता है. टेनेट की सुरक्षा में लगे लोग उन्हें तुरंत होटल से निकाल कर CIA हेडक्वार्टर्स की तरफ ले जाते हैं. CIA हेडक्वार्टर्स में पहले क्रैश के बाद हड़कंप नहीं मचा था. लेकिन ओसामा बिना लादेन (Osama bin Laden) को पकड़ने के लिए समर्पित ALEC स्टेशन के प्रमुख रिचर्ड ब्ली ने कह दिया था: "ये बिन लादेन ही है." ब्ली गलत नहीं थे. ये लादेन का ही काम था और उसने अमेरिकी पर हमले की धमकी को पूरा कर दिया था. लेकिन CIA को कुछ ही समय में पता लगने वाला था कि इस हमले का मास्टरमाइंड लादेन नहीं, बल्कि कोई और था.
मास्टरमाइंड वो शख्स था, जो अल-कायदा के नेटवर्क में काफी सक्रिय होने के बावजूद CIA की रडार पर नहीं था. इस मास्टरमाइंड ने 8 साल पहले 1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में एक और आतंकी हमले को फाइनेंस किया था. ये शख्स अमेरिका की सरकारी फाइलों में KSM के नाम से दर्ज होने वाला था. ये मास्टरमाइंड खालिद शेख मोहम्मद (Khalid Sheikh Mohammed) था.
मोहम्मद ने ही 2002 में वॉल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार डेनियल पर्ल की कराची में हत्या की थी. इस बात का दावा खालिद ने उसी साल अल जजीरा के पत्रकार योसरी फौदा के साथ इंटरव्यू में किया था.
लेकिन खालिद शेख मोहम्मद की कहानी पाकिस्तान या अफगानिस्तान से नहीं, बल्कि कुवैत से शुरू होती है.
साइंस का होनहार छात्र
खालिद शेख मोहम्मद ने रेड क्रॉस को बताया था कि उसका जन्म 14 अप्रैल 1965 में कुवैत में हुआ था. हालांकि, मोहम्मद का परिवार बलूचिस्तान से था. खालिद 9 भाई-बहन थे और वो आठवां बच्चा था. मोहम्मद के भतीजे उसी की उम्र के थे और वो सब साथ ही स्कूल जाते थे. इनमें से एक भतीजे रमजी युसूफ ने 1993 में खालिद की मदद से वर्ल्ड ट्रेड टॉवर में बम धमाका किया था.
खालिद शेख मोहम्मद अपने भाईयों की तरह ही एक अच्छा छात्र था. उसके एक स्कूल टीचर ने पत्रकार टेरी मैकडर्मोट को बताया था कि ‘मोहम्मद साइंस के उनके सबसे होनहार छात्रों में से एक था.
कुवैत के जिन पब्लिक स्कूलों में मोहम्मद ने पढ़ाई की थी, वहां अधिकतर टीचर फलीस्तीनी थे. फलीस्तीन को पूरी अरब दुनिया में इजरायल और अमेरिका के हाथों सताया हुआ माना जाता था. कुवैत में फलीस्तीनियों की संख्या काफी ज्यादा थी और उन दिनों वो उनकी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था. बड़े फलीस्तीनी नेता यासिर अराफात वहां सिविल इंजीनियर के तौर पर काम करते थे. फलीस्तीनी संगठन हमास के एक फाउंडर खालिद मशाल कुवैत शहर में पढ़ाते थे. फलीस्तीन से जुड़ी हर घटना का अरब देशों के लोगों पर गहरा असर होता था.
16 साल की उम्र में खालिद शेख मोहम्मद अपनी भाई की तरह ही मुस्लिम ब्रदरहुड में शामिल हो गया. ब्रदरहुड की स्थापना मिस्र में हुई थी और ये एक कट्टरपंथी संगठन है, जिसका मानना है कि मुस्लिमों को इस्लाम के सख्त कायदे-कानून के हिसाब से चलना चाहिए. संगठन में शामिल होने के बाद मोहम्मद ने मुस्लिम ब्रदरहुड के सबसे प्रभावी नेता सैय्यद क़ुतुब के जिहाद, पश्चिम-विरोधी, आधुनिकता पर विचारों के बारे में जाना.
1984 में मोहम्मद अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना में चौवान कॉलेज पहुंचा और एक सेमेस्टर पूरा करने के बाद वो एक यूनिवर्सिटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग पढ़ने चला गया. खालिद ने पकड़े जाने के बाद अमेरिकी एजेंसियों को बताया था कि कॉलेज में रहते हुए कि उसे अमेरिका से नफरत हो गई थी. उसने कहा था कि अमेरिकी 'अय्याश और नस्लभेदी' होते हैं. कॉलेज में बिल न चुकाने की वजह से खालिद को कुछ समय जेल में भी रहना पड़ा था.
अमेरिका से पाकिस्तान का सफर
अमेरिका से लौटने के बाद खालिद शेख मोहम्मद पूरी तरह बदल चुका था. उसने अपने टीचर से कहा था कि 'अमेरिकी लोग इस्लाम से नफरत' करते हैं.
1980 के दशक के आखिरी और 1990 के शुरुआती सालों में दुनियाभर के मुसलमानों पर अफगानिस्तान में चल रहे युद्ध का प्रभाव हो रहा था. खालिद के अमेरिका जाने से पहले उसका भाई जाहिद कुवैत में लजनात अल-दावा अल-इस्लामिया नाम की एक चैरिटी के लिए काम करने लगा था. अफगान युद्ध के समय इस चैरिटी ने जाहिद से पेशावर जाकर राहत कार्य करने को कहा. अमेरिका से लौटने के बाद खालिद को जब कुवैत में काम नहीं मिला तो वो भी 1987 में पेशावर पहुंच गया.
पेशावर में मोहम्मद ने अफगानी नेता अब्दुल रसूल सय्याफ के लिए काम करना शुरू कर दिया था. सय्याफ ने पेशावर के अफगान शरणार्थी कैंप में दावा अल-जिहाद नाम की एक यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी. खालिद वहां इंजीनियरिंग पढ़ाने लगा था. इसी कैंप में सय्याफ अफगान मुजाहिदीनों के लिए ट्रेनिंग कैंप चलाता था. ऐसा कहा जाता है कि अब्दुल रसूल सय्याफ ही वो शख्स था, जिसने 1996 में सूडान से निकाले गए ओसामा बिन लादेन को अफगानिस्तान आने का न्योता दिया था.
पेशावर में खालिद शेख मोहम्मद विदेशियों के उस समूह का हिस्सा था, जिसका काम अफगान मुजाहिदीनों के लिए वित्तीय मदद इकट्ठा करना था. इसी समूह में अब्दुल्ला यूसुफ अज्जाम भी शामिल था. अज्जाम को ‘वैश्विक जिहाद’ का जनक माना जाता है. जिहाद का असल मतलब खुद की खामियों को ठीक करने के लिए किया जाने वाला संघर्ष था. लेकिन अज्जाम ने मुजाहिदीनों को जिहाद की परिभाषा ‘काफिरों’ के खिलाफ लड़ाई बताई. अज्जाम को लादेन का गुरू कहा जाता है. 90 के दशक में इसी समूह में अयमान अल-जवाहिरी और ओसामा बिन लादेन भी शामिल हो गए थे. जवाहिरी उस समय ‘इस्लामिक जिहाद’ नाम का संगठन चलाता था. लेकिन फिर बाद में वो अल-कायदा का सेकंड-इन कमांड बन गया था.
ओसामा बिन लादेन से मुलाकात और 9/11 हमले की योजना
1993 में खालिद शेख मोहम्मद के भतीजे रमजी यूसुफ ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में बम धमाका किया था. इस धमाके से सेंटर के दोनों टॉवर को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन इसमें छह लोगों की मौत हो गई थी. हमले के लिए मोहम्मद ने यूसुफ को करीब 600 डॉलर रुपये मुहैया कराए थे. हालांकि, किसी आतंकी घटना की योजना बनाने में खालिद एक साल बाद शामिल हुआ.
1994 में यूसुफ और खालिद फिलीपींस में मिले और दोनों ने ‘बोजिंका प्लॉट’ नाम के एक हमले की योजना बनाई. दोनों प्रशांत महासागर के ऊपर 12 कमर्शियल अमेरिकी जंबो जेट को बम से उड़ाना चाहते थे. ये पहली बार था जब खालिद ने विमान को एक हथियार के तौर पर देखा था. वो आगे इसका इस्तेमाल करने वाला था. हालांकि, ‘बोजिंका प्लॉट’ कामयाब नहीं हो पाया क्योंकि फरवरी 1995 में रमजी यूसुफ इस्लामाबाद में गिरफ्तार हो गया था. बाद में उसे प्रत्यर्पण कर अमेरिका लाया गया. जब एक SWAT टीम यूसुफ को जेल ले जा रही थी, तो टीम के एक सदस्य ने यूसुफ से वर्ल्ड ट्रेड टॉवर की तरफ इशारा कर कहा था, “देखो वो अभी भी खड़े हैं.” यूसुफ ने जवाब दिया था, “खड़े नहीं होते, अगर हमारे पास और पैसे होते.”
पैसा. यही वो कमी थी जो खालिद शेख मोहम्मद को ओसामा बिन लादेन के पास ले गई थी. पेशावर में 1980 के दशक के अंत में खालिद और लादेन मिल चुके थे. लादेन सऊदी अरब के एक बहुत अमीर शेख का बेटा था. अफगान युद्ध के लिए लादेन काफी पैसा दिया करता था. खालिद लादेन की वित्तीय क्षमता से वाकिफ था और वो जानता था कि ‘बोजिंका प्लॉट’ जैसे किसी हमले के लिए उसे लादेन की जरूरत होगी.
खालिद शेख मोहम्मद की लादेन से पहली मुलाकात अल-कायदा के मिलिट्री चीफ मोहम्मद आतिफ (अबु हफ्स अल-मसरी) ने आयोजित की थी. इस मुलाकात के दौरान खालिद ने ओसामा को 1993 वर्ल्ड ट्रेड सेंटर धमाके और 'बोजिंका प्लॉट' के बारे में जानकारी दी. खालिद ने पायलटों को ट्रेनिंग देकर विमान अमेरिकी इमारतों में क्रैश करने की योजना भी सामने रखी. यही योजना कुछ सालों में 9/11 हमले की सूरत अख्तियार करने वाली थी. हालांकि, इस मुलाकात के समय ओसामा की स्थिति अफगानिस्तान में बहुत स्थिर नहीं थी और ओसामा ने इस योजना को मंजूरी नहीं दी. लेकिन, ओसामा ने खालिद से अल-कायदा में शामिल होने को कहा, जिसके लिए खालिद ने इनकार कर दिया.
लेकिन फिर दो साल बाद 1998 के आखिर में ओसामा बिन लादेन ने मोहम्मद आतिफ के कहने पर खालिद शेख मोहम्मद को इस योजना पर काम करने की इजाजत दे दी. लादेन और आतिफ ने मिलकर हमले के लिए व्हाइट हाउस, अमेरिकी संसद, रक्षा मंत्रालय का हेडक्वार्टर पेंटागन और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर चुना था. खालिद योजना को लागू करने के लिए अफगानिस्तान पहुंच गया था.
मंजूरी मिलने के कुछ ही महीनों बाद खालिद ने हमले के लिए इंटेलिजेंस जुटानी शुरू कर दी थी. ओपन सोर्स इंटेलिजेंस के जरिए खालिद ने पश्चिमी एविएशन मैगजीन, अमेरिकी शहरों की टेलीफोन डायरेक्टरी, एयरलाइन टाइमटेबल और अमेरिका के फ्लाइट स्कूलों के बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरू कर दिया था. साल 2000 में 9/11 हमले का लीडर मोहम्मद अट्टा और कोऑर्डिनेटर रमजी बिन अल-शिबह ने कंधार में खालिद शेख मोहम्मद से मुलाकात की थी. खालिद ने इन दोनों को अमेरिका में सुरक्षा और वहां रहने के बारे में निर्देश दिए थे. इसके अलावा मोहम्मद ने आतंकियों की अमेरिकी यात्रा का भी इंतजाम किया था.
डेनियल पर्ल की हत्या
डेनियल पर्ल वॉल स्ट्रीट जर्नल के दक्षिण एशिया के ब्यूरो चीफ थे. 9/11 हमले के बाद पर्ल पाकिस्तान में अल-कायदा नेटवर्क पर रिपोर्टिंग के लिए कराची गए थे. 23 जनवरी 2002 की शाम 7 बजे के करीब कराची के मेट्रोपोल होटल के पास अहमद उमर सईद शेख ने पर्ल को अगवा कर लिया था. 9 दिन बाद डेनियल पर्ल की हत्या कर दी जाती है. आतंकी उनका सर शरीर से अलग कर देते हैं. इस घटना का वीडियो इंटरनेट पर डाला गया था.
पर्ल की हत्या के वीभत्स तरीके से पूरी दुनिया हैरान रह गई थी. सभी को लगा था कि उमर शेख ने ही पर्ल की हत्या की है. लेकिन सर शरीर से अलग कर देने जैसी बर्बरता के लिए अरब देशों से पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आए आतंकी ही बदनाम थे. फिर 2002 में अल जजीरा के पत्रकार योसरी फौदा ने खालिद शेख मोहम्मद का इंटरव्यू किया और इसी के दौरान मोहम्मद ने कबूल किया कि पर्ल की निर्मम हत्या उसने ही की थी. मोहम्मद ने इंटरव्यू के दौरान कहा था, “जिसे भी इस बात की पुष्टि करनी है, वो इंटरनेट पर देख सकता है, मेरी तस्वीरें मिल जाएंगी.”
कैसे पकड़ा गया खालिद शेख मोहम्मद?
इस्लामाबाद, फरवरी 2003 - एक CIA ऑपरेटिव के पास मेसेज आता है 'I M W KSM', मतलब कि 'मैं KSM के साथ हूं.' 9/11 हमले के बाद CIA खालिद शेख मोहम्मद को पकड़ने के लिए उतना ही उतावला और बैचेन था, जितना ओसामा बिन लादेन के लिए था. CIA ने तय किया कि वो मेसेज भेजने वाले पर यकीन करेगा. 1 मार्च 2003 को CIA के स्पेशल एक्टिविटीज डिवीजन के अफसरों ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के साथ मिलकर रावलपिंडी के एक कंपाउंड में रेड डाली. कई बार चकमा देने के बाद खालिद शेख मोहम्मद आखिरकार CIA के कब्जे में आ गया था.
मोहम्मद इस समय क्यूबा में ग्वांतनामो बे जेल में बंद है. ये जेल अमेरिका के ग्वांतनामो बे नेवल बेस पर स्थित है. 2003 में पकड़े जाने के बाद से खालिद शेख मोहम्मद यहीं पर है.
मोहम्मद ने आरोप लगाया है कि क्यूबा में हिरासत के समय उसको बार-बार टॉर्चर किया गया था. CIA डॉक्युमेंट्स पुष्टि करते हैं कि मोहम्मद 183 बार ‘वॉटरबोर्डिंग’ से गुजरा है. ‘वॉटरबोर्डिंग’ के दौरान कैदी के मुंह पर कपड़ा बांधा जाता है और फिर उसके मुंह और नाक पर पानी डाला जाता है.
11 जनवरी 2021 से खालिद और चार अन्य लोगों के खिलाफ मिलिट्री कोर्ट में ट्रायल शुरू होगा. अगर दोषी पाए जाते हैं तो पांचों को सजा-ए-मौत होगी.
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