हरियाणा के सोनीपत स्थित अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के पद से राजनीतिक विश्लेषक प्रताप भानु मेहता के इस्तीफे के बाद दुनियाभर के 150 से ज्यादा अकैडमीशियन उनके समर्थन में आ गए हैं. ये अकैडमीशियन कोलंबिया, येल, हार्वर्ड, प्रिंसटन, ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसी जानी-मानी इंटरनेशन यूनिवर्सिटीज से जुड़े हुए हैं.
बता दें कि प्रताप भानु मेहता ने अशोका यूनिवर्सिटी से 16 मार्च को इस्तीफा दिया था. अपने फैसले को लेकर उन्होंने बताया था, ''एक राजनीति जो आजादी और सभी नागरिकों के लिए बराबर सम्मान के संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करती है, उसके समर्थन में मेरे सार्वजानिक लेखन को यूनिवर्सिटी के लिए खतरा समझा जाने लगा था. यूनिवर्सिटी के हित में मैं इस्तीफा देता हूं.”
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, यूनिवर्सिटी के ट्रस्टियों, प्रशासकों और फैकल्टी को संबोधित करते हुए लिखे गए अकैडमीशियन्स के ओपन लेटर में कहा गया है कि हस्ताक्षरकर्ता “अशोका यूनिवर्सिटी से राजनीतिक दबाव” के तहत मेहता के बाहर निकलने के बारे में जानकार “व्यथित” हैं. इस लेटर के शीर्षक में लिखा गया है- ‘’अकादमिक आजादी पर एक खतरनाक हमला’’
लेटर में मेहता को लेकर लिखा गया है, ''मौजूदा भारत सरकार के एक प्रमुख आलोचक और अकादमिक स्वतंत्रता के रक्षक, वह अपने लेखन के लिए एक टारगेट बन गए थे. ऐसा लगता है कि अशोका के ट्रस्टी, जिनको अपने संस्थागत कर्तव्य के रूप में उनका (मेहता का) बचाव करना चाहिए था, इसके बजाए उनके इस्तीफे के लिए दबाव बनाया गया.''
अकैडमीशियन्स ने लिखा है, ‘’हम प्रताप भानु मेहता के साथ एकजुटता जताते हुए लिख रहे हैं, और उन मूल्यों के महत्व की पुष्टि करने के लिए जो उन्होंने हमेशा अपनाए हैं. राजनीतिक जीवन में, ये स्वतंत्र तर्क, सहिष्णुता और समान नागरिकता की लोकतांत्रिक भावना हैं.’’
लेटर पर हस्ताक्षर करने वालों में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर होमी के भाभा, यूसी बर्केली स्कूल ऑफ लॉ के डीन एरविन चेमरिन्सकी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर केट ओ रेगन और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की डेनियल एलन जैसे नाम शामिल हैं.
अशोका के फाउंडर्स ने टेके घुटने: राजन
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की भी अशोका मामले पर प्रतिक्रिया सामने आई है. उन्होंने कहा है, ''फ्री स्पीच एक महान यूनिवर्सिटी की आत्मा होती है. इस पर समझौता करके, फाउंडर्स ने इसकी आत्मा को दूर कर दिया.''
इकनॉमिस्ट और प्रोफेसर राजन ने कहा है, ''अशोका के फाउंडर्स ने एक आलोचक से छुटकारा पाने के लिए बाहर के दबाव के आगे घुटने टेक दिए.''
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