कोरोना वैक्सीन को लेकर मिल रही अच्छी खबरों के बीच एक बुरी खबर सामने आई है. ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन के रिजल्ट्स में कुछ गड़बड़ी पाई गई है. यहां तक कि कंपनी ने खुद इस बात को अब स्वीकार कर लिया है कि वैक्सीन में मैन्युफैक्चरिंग एरर था. जिसके बाद अब वैक्सीन के ट्रायल रिजल्ट पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
कंपनी ने जारी किए थे ट्रायल रिजल्ट
एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड की इस वैक्सीन के हाल ही में ट्रायल रिजल्ट जारी किए गए थे. जिनमें कंपनी ने बताया था कि उनकी वैक्सीन 90 फीसदी तक कारगर है. अब इसी ट्रायल रिजल्ट में गड़बड़ी की बात कही गई है.
23 नवंबर को कंपनी की तरफ से फेज-3 ट्रायल के रिजल्ट जारी करते हुए बताया गया कि उनकी कोरोना वैक्सीन 90% तक प्रभावी है और इस वैक्सीन को कोई खास साइड इफेक्ट्स भी नहीं हैं. हालांकि 90 फीसदी कारगर होने की बात एक फुल डोज के बाद हाफ डोज देने से बताई गई. कंपनी ने कहा था कि वैक्सीन कुल मिलाकर 70 फीसदी तक कारगर है.
इसके बाद कई एक्सपर्ट्स ने इन नतीजों को लेकर सवाल उठाए थे. वहीं अब जब कंपनी ने खुद गड़बड़ी की बात को स्वीकार कर लिया है तो ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि क्या तमाम देशों के रेगुलेटर अब इस वैक्सीन को आगे भी मंजूरी देंगे या फिर नहीं.
वैक्सीन की हाफ डोज
इस वैक्सीन के शुरुआती ट्रायल्स में इसके साइड इफेक्ट भी देखने को मिले थे, लेकिन ये उम्मीद के मुताबिक काफी कम थे. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने जब अप्रैल के अंत में वैक्सीन की डोज दी तो उन्होंने देखा कि इससे थकान, सिरदर्द और हाथ में दर्द जैसे लक्षण तो पाए गए, लेकिन ये उतने ज्यादा नहीं थे. लेकिन इन कैंडिडेट्स को वैक्सीन की आधी से कम डोज दी गई थी. इसे तब इफेक्टिव मान लिया गया था. जिस पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं.
क्यों शक के दायरे में वैक्सीन
अब एक्सपर्ट्स का कहना है कि कई लोगों को वैक्सीन की सही डोज नहीं दी गई. एपी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कम डोज दिए जाने वाले ग्रुप में ज्यादातर जवान लोगों को रखा गया था. जिनकी उम्र 55 साल से नीचे थी. वहीं फार्मा कंपनी की तरफ से बताया गया कि जिन लोगों को कम डोज दी गई, उनमें बेहतर लक्षण पाए गए. अब एक्सपर्ट्स का कहना है कि जवान लोगों में देखा गया है कि उनका इम्युनिटी सिस्टम मजबूत है और कोरोना से लड़ सकता है. इसीलिए वैक्सीन के कारगर होने पर यहां सवाल उठते हैं.
वहीं एक्सपर्ट्स के ग्रुप को ये भी लगता है कि दोनों ग्रुप (जवान और बूढ़े) में वैक्सीन के नतीजों को साफ नहीं किया गया है. ये नहीं बताया गया है कि किन पर वैक्सीन कितनी प्रभावी रही है.
अब खुद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर कम डोज इतनी प्रभावी कैसे रही. ऑक्सफोर्ड की साइंटिस्ट सारा गिलबर्ट का कहना है कि, वैक्सीन की डोज काफी कम या काफी ज्यादा देना बेकार है, इसे उसकी उचित मात्रा में दिया जाना चाहिए. ज्यादा डोज देने से इसके नतीजों पर असर पड़ सकता है.
तो कुल मिलाकर इस वैक्सीन पर अब कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. साथ ही इससे भारत समेत दुनियाभर के देशों की उम्मीदों को भी बड़ा झटका लगा है. क्योंकि इस वैक्सीन को लेकर अब तक पॉजिटिव खबरें सामने आ रही थीं और उम्मीद थी कि ये जल्द लोगों तक पहुंच सकती है. लेकिन अब इसे मंजूरी मिलने में देरी संभव है.
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