दुनिया के तमाम देश जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन चीन बार-बार इस प्रस्ताव पर पानी फेर देता है. गुरुवार को चीन ने चौथी बार इस प्रस्ताव पर अड़ंगा डाला.
ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर चीन को पाकिस्तान और आतंकी सरगना मसूद अजहर से क्या लगाव है? क्या उसे पाक में पनाह लेने वाले आतंकियों से किसी तरह का डर है? वो क्यों बार-बार पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है? आखिरकार ऐसा करने से चीन को क्या फायदा होता है?
चीन का क्या है सबसे बड़ा डर
पाकिस्तान दुनिया में आतंक का सबसे बड़ा गढ़ है. इस बात से सिर्फ भारत, अमेरिका, फ्रांस या रूस ही नहीं, बल्कि चीन खुद भी इस बात से बहुत अच्छी तरह वाकिफ है. लेकिन फिर भी चीन हर बार 'ऊंची दीवार' बनकर पाक और उसके आतंकी सरगनाओं का समर्थन करता है. इसकी सबसे बड़ी वजह है आतंकियों से चीन का डर.
चीन को इस बात का डर सताता है कि अगर उसने मसूद अजहर को नहीं बचाया, तो कहीं आतंकी चीनी नागरिकों पर हमला न कर दें. पाकिस्तान में चीन के अरबों डॉलर के कई बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिसमें हजारों चीनी इंजीनियर काम कर रहे हैं.
चीन की मदद से बन रहा चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है. ये प्रोजेक्ट पीओके और पाकिस्तान में मानसेहरा जिले के खैबर पख्तूनख्वा से गुजरता है. खैबर पख्तूनख्वा वही जगह है, जहां जैश-ए-मोहम्मद का ट्रेनिंग कैंप है और हाल ही में भारत ने एयर स्ट्राइक की थी.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान में बालाकोट के पास नेशनल हाइवे-15 के पास चीन ने सीपीईसी प्रोजेक्ट के लिए कई एकड़ जमीन खरीदी है. अगर चीन पाक की मदद न करें, तो उसे डर है कि कहीं आतंकी जमीन पर कब्जा न कर लें.
दूसरा, चीन की मदद से पीओके में 1100 मेगावाट का कोहरा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है. इसके साथ ही 640 मेगावाट का आजाद पट्टन माही हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट भी बन रहा है.
ग्वादर पोर्ट पर है चीन की नजर
ग्वादर पोर्ट, पाकिस्तान में बलूचिस्तान के अरब सागर तट पर स्थित है. इस पोर्ट के जरिए सेंट्रल एशिया, दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया, फारस की खाड़ी आदि में सीधे व्यापारिक पैठ बनाई जा सकती है. इसलिए ये पोर्ट चीन के लिए खास महत्व रखता है.
चीन की ग्वादर पोर्ट पर नजर है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन ग्वादर पोर्ट और वहां तक पहुंचने वाले रास्ते पर पूरी तरह से अपना कब्जा चाहता है. इस वजह से बंदरगाह को बनाने के लिए पाकिस्तान की आर्थिक रूप से बड़ी मदद भी की थी.
भारत ने चीन के OBOR प्रोजेक्ट का किया विरोध
भारत चीन के सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजक्ट ‘वन बेल्ट वन रूट‘(OBOR) का काफी समय से विरोध करता आ रहा है. OBOR प्रोजेक्ट का मकसद यूरोप, अफ्रीका और एशिया के कई देशों को सड़क और समुद्र रास्तों से जोड़ना है.
ऐसा दावा है कि सड़क रास्तों से दुनिया के कई देशों को एकसाथ जोड़ने से इन देशों के बीच कारोबार को बढ़ाने और इंफ्रस्ट्रक्चर को मजबूत करने में मदद मिलेगी. लेकिन भारत इसका हमेशा से विरोध करता आ रहा है. साल 2017 में इस प्रोजेक्ट की वजह से भारत और चीन की सेना बॉर्डर पर आमने-सामने तक आ गई थी.
भारत इसका विरोध इसलिए करता आ रहा है, क्योंकि इस प्रोजेक्ट में चीन-पाक इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) भी प्रस्तावित है. ये कॉरिडोर पीओके के गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है, जिस पर भारत अपना हक जताता रहा है. भारत ने इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताया है. चीन भारत के इस फैसले से खुश नहीं है और कई बार अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुका है.
चीन को भारत-अमेरिका की दोस्ती बर्दाश्त नहीं
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के भारत के साथ अच्छे संबंध है. अमेरिका कई मौकों पर भारत का समर्थन करता रहा है. भारत में पठानकोट, उरी, पुलवामा जैसे आतंकी हमलों की अमेरिका ने खुलकर निंदा की है और पाकिस्तान को आतंक के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की हिदायत दी है.
अमेरिका का इस तरह भारत को सहयोग करना चीन को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं, क्योंकि इससे कहीं न कहीं चीन को पाकिस्तान की तरफ से दबाव झेलना पड़ता है.
चीन जानता है कि पाकिस्तान में किसी सरकार या सेना का राज नहीं है, वहां सिर्फ आतंकियों की चलती है. अगर सयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) मसूद अजहर को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित कर दें, तो पाकिस्तान को उसके सभी फंड, संपत्ति और आय के स्रोत फ्रीज करने पड़ेंगे. चीन ने पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है. ऐसे में चीन को भी बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)