चीन (China) ने जापान (Japan) से सीफूड (Sea Food- समुद्र में रहने वाले खाने योग्य जीव) के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है. दरअसल चीन ने जापान पर समुद्र में दूषित पानी छोड़ने का आरोप लगाया है और फिर जापान से सीफूड के आयात पर बैन लगा दिया है.
लेकिन चीन ने ऐसी क्यों किया? क्या जापान वाकई दूषित पानी को समुद्र में छोड़ रहा है? आइए समझते हैं.
Japan: फुकुशिमा के पानी को समुद्र में छोड़ने पर क्यों भड़का चीन? क्या अब भी खतरा?
1. 2011 - फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट की कहानी
जापान में प्रशांत महासागर से जुड़ी जमीन पर फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाया गया था. साल 2011 में उसी इलाके में 9.0 तीव्रता का भूकंप आया, इससे सुनामी भी उठी. इसी तबाही में फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट तबाह हो गया है. लेकिन 2011 में तबाह हुए न्यूक्लियर पावर प्लांट की बात 2023 में क्यों?
2011 में फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट की तबाही के बाद उसे हटाने का अभियान शुरू किया गया लेकिन एक न्यूक्लियर पावर प्लांट को हटाना इतना आसान काम नहीं है, इसे हटाने में कई दशक भी लग सकते हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि इस प्लांट को हटाने में 30 साल से भी ज्यादा का समय लगेगा.
इसी पावर प्लांट को हटाने के दौरान इकट्ठा किए गए दूषित पानी को हटाने के लिए जापान ने उसे समुद्र में छोड़ने का फैसला लिया है.
Expand2. कहां से आया ये विवादित पानी?
किसी भी न्यूक्लियर पावर प्लांट में रिएक्टर्स होते हैं, इन रिएक्टर्स के कोर को ठंडा करने की जरूरत होती है. इसके लिए इस्तेमाल होता है ताजा पानी. हर दिन जरूरत पड़ती है 170 टन पानी की. रिएक्टर्स के कोर को ठंडा करने से पानी भी रेडियोएक्टिव हो जाता है यानी पानी दूषित हो जाता है. इतना दूषित कि इसे खुले में भी नहीं छोड़ सकते हैं.
इसलिए इस पानी को प्लांट के स्टोरेज टैंक में जमा किया जाता है.
फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट में 1 हजार 46 स्टोरेज टैंक्स हैं. इसमें 1,343 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी जमा हो सकता है. लगभग 13 लाख 43 हजार लीटर पानी और सारा का सार पानी दूषित. अब चूंकी प्लांट को बंद कर दिया गया है और उसे हटाया जा रहा है, ऐसे में इस पानी को कहीं न कहीं ठिकाने पर लगाना होगा.
ऐसे में जापान को सबसे सस्ता और आसान तरीका इस पानी को समुद्र में बहा देने का लगा.
Expand3. कितना दूषित है ये पानी?
इस प्लांट का रखरखाव Tepco - टोक्यो इलेक्ट्रीक पावर कंपनी के हाथ में है. टेपको ने ही इस दूषित पानी को प्रशांत महासागर में बहाने का फैसला लिया है. लेकिन कंपनी दूषित पानी को समुद्र की झोली में डालने से पहले ट्रीट कर रही है. यानी इस पानी को फिल्टर किया जा रहा है ताकी इस पानी में से दूषित करने वाले तत्वों (रेडियोएक्टिव आईसोटोप्स) को बाहर किया जा सके.
लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान एक दूषित तत्व को बाहर करना असंभव है और वो है - ट्राइटियम. हालांकि ट्राइटियम की मात्रा को एक निश्चित स्तर से नीचे ला दिया जाए तब इसे कुछ हद तक सुरक्षित माना जा सकता है. टेपको ने भी यही किया. इसलिए उसे इस पानी को समुद्र में छोड़ने की इजाजत मिली है.
कितना खतरनाक है - ट्राइटियम? विशेषज्ञों के अनुसार इससे कैंसर की बीमारी हो सकती है.
लेकिन जापान की ओर से कहा गया है कि ट्राइटियम की मात्रा को कम कर दिया गया है और यह आम प्रक्रिया है जो पूरी दुनिया भी करती है. मात्रा कम करने से ये हानिकारक नहीं रह जाता है.
Expand4. जापान को दूषित पानी समुद्र में छोड़ने की किसने दी इजाजत?
जापान की एटॉमिक एजेंसी और संयुक्त राष्ट्र की इंटरनेशनल एटोमिक एनर्जी एजेंसी ने इस पानी को छोड़ने की इजाजत दी है. इन एजेंसियों ने माना है कि जापान के इस पानी किसी को खतरा नहीं है साथ ही पर्यावरण को भी खतरा नहीं है.
लेकिन कई पर्यावरणविद, फिशिंग एक्सपर्ट का मानना है कि ये हानिकारक हो सकता है. समुद्र की मछलियां भी मारी जा सकती हैं.
Expand5. क्या इस पानी को खत्म करने का कोई और जरिया है?
पर्यावरण के जानकारों ने इसके लिए कई विकल्प सुझाए हैं. उनका कहना है कि पानी को गर्म कर भाप बनाकर उड़ा दिया जा सकता है या तो और स्टोरेज बना कर पानी उसी में रखा जा सकता है.
लेकिन भाप बना कर हवा में उड़ाने के हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं. वहीं और स्टोरेज में पानी को रखने का जोखिम है. कभी भूकंप आता है तो ये स्टोरेज टूट सकते हैं और पानी कई लोगों को नुकसान पहुंचा सकता है.
साथ ही ये सारे उपाय समय लेंगे और महंगे हैं इसीलिए जापान ने इसे समुद्र में छोड़ने का ही फैसला लिया है.
Expand6. चीन को क्या समस्या है?
चीन ने जापान के इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है और प्रतिक्रिया के रूप में जापान से होने वाले सीफूड के आयात पर रोक लगा दी है. चीन के अनुसार, जापान से सीफूड का चीन सबसे ज्यादा आयात करता है. अब चूंकी जापान ने समुद्र में दूषित पानी छोड़ा है तो उससे समुद्री जीव भी दूषित होंगे और उन्हीं जीवों को पकड़ कर भोजन के रूप में जापान चीन को निर्यात करता है. चीन का मानना है ये सीफूड उनके लिए हानिकारक हो सकता है, इसलिए चीन ने आयात पर रोक लगा दी है.
आयात पर रोक लगाने से जापान की फिशिंग इंडस्ट्री पर गहरा प्रभाव पड़ने के आसार हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Expand
2011 - फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट की कहानी
जापान में प्रशांत महासागर से जुड़ी जमीन पर फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाया गया था. साल 2011 में उसी इलाके में 9.0 तीव्रता का भूकंप आया, इससे सुनामी भी उठी. इसी तबाही में फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट तबाह हो गया है. लेकिन 2011 में तबाह हुए न्यूक्लियर पावर प्लांट की बात 2023 में क्यों?
2011 में फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट की तबाही के बाद उसे हटाने का अभियान शुरू किया गया लेकिन एक न्यूक्लियर पावर प्लांट को हटाना इतना आसान काम नहीं है, इसे हटाने में कई दशक भी लग सकते हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि इस प्लांट को हटाने में 30 साल से भी ज्यादा का समय लगेगा.
इसी पावर प्लांट को हटाने के दौरान इकट्ठा किए गए दूषित पानी को हटाने के लिए जापान ने उसे समुद्र में छोड़ने का फैसला लिया है.
कहां से आया ये विवादित पानी?
किसी भी न्यूक्लियर पावर प्लांट में रिएक्टर्स होते हैं, इन रिएक्टर्स के कोर को ठंडा करने की जरूरत होती है. इसके लिए इस्तेमाल होता है ताजा पानी. हर दिन जरूरत पड़ती है 170 टन पानी की. रिएक्टर्स के कोर को ठंडा करने से पानी भी रेडियोएक्टिव हो जाता है यानी पानी दूषित हो जाता है. इतना दूषित कि इसे खुले में भी नहीं छोड़ सकते हैं.
इसलिए इस पानी को प्लांट के स्टोरेज टैंक में जमा किया जाता है.
फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट में 1 हजार 46 स्टोरेज टैंक्स हैं. इसमें 1,343 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी जमा हो सकता है. लगभग 13 लाख 43 हजार लीटर पानी और सारा का सार पानी दूषित. अब चूंकी प्लांट को बंद कर दिया गया है और उसे हटाया जा रहा है, ऐसे में इस पानी को कहीं न कहीं ठिकाने पर लगाना होगा.
ऐसे में जापान को सबसे सस्ता और आसान तरीका इस पानी को समुद्र में बहा देने का लगा.
कितना दूषित है ये पानी?
इस प्लांट का रखरखाव Tepco - टोक्यो इलेक्ट्रीक पावर कंपनी के हाथ में है. टेपको ने ही इस दूषित पानी को प्रशांत महासागर में बहाने का फैसला लिया है. लेकिन कंपनी दूषित पानी को समुद्र की झोली में डालने से पहले ट्रीट कर रही है. यानी इस पानी को फिल्टर किया जा रहा है ताकी इस पानी में से दूषित करने वाले तत्वों (रेडियोएक्टिव आईसोटोप्स) को बाहर किया जा सके.
लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान एक दूषित तत्व को बाहर करना असंभव है और वो है - ट्राइटियम. हालांकि ट्राइटियम की मात्रा को एक निश्चित स्तर से नीचे ला दिया जाए तब इसे कुछ हद तक सुरक्षित माना जा सकता है. टेपको ने भी यही किया. इसलिए उसे इस पानी को समुद्र में छोड़ने की इजाजत मिली है.
कितना खतरनाक है - ट्राइटियम? विशेषज्ञों के अनुसार इससे कैंसर की बीमारी हो सकती है.
लेकिन जापान की ओर से कहा गया है कि ट्राइटियम की मात्रा को कम कर दिया गया है और यह आम प्रक्रिया है जो पूरी दुनिया भी करती है. मात्रा कम करने से ये हानिकारक नहीं रह जाता है.
जापान को दूषित पानी समुद्र में छोड़ने की किसने दी इजाजत?
जापान की एटॉमिक एजेंसी और संयुक्त राष्ट्र की इंटरनेशनल एटोमिक एनर्जी एजेंसी ने इस पानी को छोड़ने की इजाजत दी है. इन एजेंसियों ने माना है कि जापान के इस पानी किसी को खतरा नहीं है साथ ही पर्यावरण को भी खतरा नहीं है.
लेकिन कई पर्यावरणविद, फिशिंग एक्सपर्ट का मानना है कि ये हानिकारक हो सकता है. समुद्र की मछलियां भी मारी जा सकती हैं.
क्या इस पानी को खत्म करने का कोई और जरिया है?
पर्यावरण के जानकारों ने इसके लिए कई विकल्प सुझाए हैं. उनका कहना है कि पानी को गर्म कर भाप बनाकर उड़ा दिया जा सकता है या तो और स्टोरेज बना कर पानी उसी में रखा जा सकता है.
लेकिन भाप बना कर हवा में उड़ाने के हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं. वहीं और स्टोरेज में पानी को रखने का जोखिम है. कभी भूकंप आता है तो ये स्टोरेज टूट सकते हैं और पानी कई लोगों को नुकसान पहुंचा सकता है.
साथ ही ये सारे उपाय समय लेंगे और महंगे हैं इसीलिए जापान ने इसे समुद्र में छोड़ने का ही फैसला लिया है.
चीन को क्या समस्या है?
चीन ने जापान के इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है और प्रतिक्रिया के रूप में जापान से होने वाले सीफूड के आयात पर रोक लगा दी है. चीन के अनुसार, जापान से सीफूड का चीन सबसे ज्यादा आयात करता है. अब चूंकी जापान ने समुद्र में दूषित पानी छोड़ा है तो उससे समुद्री जीव भी दूषित होंगे और उन्हीं जीवों को पकड़ कर भोजन के रूप में जापान चीन को निर्यात करता है. चीन का मानना है ये सीफूड उनके लिए हानिकारक हो सकता है, इसलिए चीन ने आयात पर रोक लगा दी है.
आयात पर रोक लगाने से जापान की फिशिंग इंडस्ट्री पर गहरा प्रभाव पड़ने के आसार हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)