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Nobel Prize: 13 विजेताओं में मात्र 1 महिला - मेरिट नहीं या मौके की कमी?

Nobel prize Gender Gap: दुनिया के हरेक फील्ड में महिलाओं के असमान प्रतिनिधित्व का कारण कामो-बेश एक ही है

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“21वीं सदी की दुनिया” वाला राग गाते हुए दुनिया को 21 साल से अधिक गुजर चुके हैं लेकिन संसद से लेकर नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) तक- महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी जरूरी स्तर से कोसों दूर है. साल 2021 के 13 नोबेल पुरस्कार विजेताओं में मात्र एक महिला विजेता है.

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फिलीपींस की खोजी पत्रकार Maria Ressa इस साल नोबेल से सम्मानित होने वाली एकमात्र महिला थीं, जिन्होंने 12 पुरुष विजेताओं में से एक साथी पत्रकार Dmitry Muratov के साथ नोबेल शांति पुरस्कार साझा किया है.

जनसंख्या में लगभग 50% भागीदारी रखने वाली महिलाओं को दुनिया के सबसे बड़े पुरस्कार माने जाने वाले नोबेल में केवल 7.7% भागीदारी मिले तो सवाल उठना लाजमी है. अगर इसका इलाज आप महिलाओं के लिए कोटा फिक्स करने में देखते हैं तो इसे साफ नकार दिया गया है.

स्वीडन की वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार प्रदान करने वाली अकेडमी की प्रमुख ने इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए विजेताओं के चयन में लिंग या जातीय आधार पर कोटा निर्धारित करने के विचार को खारिज कर दिया है.

Nobel Prize: “मेरिट और प्रतिनिधित्व” का सवाल

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज की महासचिव, Göran Hansson ने स्वीकार किया कि नोबेल पाने की दौड़ में बहुत कम महिलाएं हैं, लेकिन पुरस्कार अंततः उन लोगों को मिलेगा जो "सबसे योग्य पाए जाएंगे. यानी मुद्दा फिर वहीं “मेरिट और प्रतिनिधित्व” के उसी सवाल पर अटक गया जिसको हम गाहे-बगाहे सुनते रहते हैं.

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इस स्थिति पर Göran Hansson का कहना है कि “यह समाज की अनुचित परिस्थितियों को दर्शाता है, विशेष रूप से पिछले वर्षों में. लेकिन यह अनुचित परिस्थितियां अभी भी मौजूद हैं और अभी बहुत कुछ करना बाकी है”. इसके बावजूद उन्होंने यह भी कह दिया कि वर्तमान प्रणाली "अल्फ्रेड नोबेल की अंतिम इच्छा की भावना" के अनुरूप है.

इससे पहले कि आप अल्फ्रेड नोबेल की अंतिम इच्छा और “मेरिट सर्वोपरी है की भावनाओं में उलझें, एक नजर इस तथ्य पर डालिए- 1901 से लेकर अब तक 943 व्यक्तियों और 25 संगठनों ने नोबेल पुरस्कार जीता है. इसमें केवल 58 महिलाएं हैं, यानी लगभग 6%.

STEM क्षेत्र के नोबेल पुरस्कार में महिलाओं का और कम प्रतिनिधित्व

दुनिया के हरेक फील्ड में महिलाओं के असमान प्रतिनिधित्व का कारण कामो-बेश एक ही है. अगर नोबेल पुरस्कारों में बात करें तो खासकर STEM- Science, Technology, Engineering and Math के क्षेत्र में स्थिति और खराब है.

फिजिक्स में 2018 के नोबेल पुरस्कारों में से एक डोना स्ट्रिकलैंड को मिला, जो किसी भी वैज्ञानिक के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. लेकिन फिर भी अधिकांश न्यूज कवरेज ने इस तथ्य पर ध्यान केंद्रित किया था कि वह 1903 में मैरी क्यूरी और 1963 में Maria Goeppert-Mayer के बाद फिजिक्स में नोबेल प्राप्त करने वाली केवल तीसरी महिला वैज्ञानिक थीं.

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2020 में भी एंड्रिया गेज ने 2 अन्य पुरुष वैज्ञानिकों के साथ फिजिक्स में नोबेल शेयर किया था. बावजूद इसके प्रतिनिधित्व हद से ज्यादा खराब है.

अरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर Mary K. Feeney के अनुसार अध्ययनों से पता चला है कि जो महिलाएं साइंस करियर में बनी रहती हैं उन्हें आगे बढ़ने के लिए स्पष्ट और सिस्टम में मौजूद बाधाओं का सामना करना पड़ता है. अतीत में लड़कियां और महिलाएं STEM में स्टडी से अपनी अक्षमता के कारण नहीं बचती रही हैं बल्कि शिक्षा नीति, सांस्कृतिक संदर्भ, रूढ़िवादिता और रोल मॉडल की कमी के कारण ऐसा था.

अभी भी पारंपरिक रूढ़िवादी मान्यता यह है कि महिलाओं को 'गणित पसंद नहीं है' और वो 'साइंस में अच्छी नहीं हैं'. जबकि महिलाओं ने इसे गलत साबित किया है. अधिक महिलाएं STEM पीएचडी और अर्निंग फैकल्टी पदों के साथ ग्रेजुएट हो रही हैं. लेकिन बावजूद इसके नोबेल में उनकी सहभागिता सीमित है.

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भारत रत्न में महिला प्रतिनिधित्व का हाल

भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पुरस्कार है. वर्ष 1954 से आज तक कुल 48 लोगों को इससे नवाजा गया है लेकिन उसमें केवल 5 महिला शामिल हैं. प्रतिशत में बात करें तो 10.4% है.

इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा, अरुणा आसफ अली, एम.एस. शुभलक्ष्मी और लता मंगेशकर पांच महिलाएं हैं जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया है.

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