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'पंप में पेट्रोल नहीं',हफीज के ट्वीट से दिखी बदहाली,श्रीलंका की राह पर पाकिस्तान

Pakistan Economic Crisis: महंगाई की मार, पाकिस्तान में पब्लिक की मुसीबतें हजार

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पाकिस्तान में निजाम बदला, लेकिन वहां के आर्थिक हालत नहीं. पाकिस्तान में आर्थिक हालात (Pakistan Economic Crisis) किस हद तक खास्ताहाल हैं, यह वहां के पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद हफीज की जुबानी सुनिए. हफीज ने बुधवार, 25 मई को ट्वीट करते हुए लिखा कि “लाहौर के किसी भी पेट्रोल पंप पर पेट्रोल नहीं है ??? ATM मशीनों में कैश नहीं है ?? एक आम आदमी को राजनीतिक फैसलों का खामियाजा क्यों भुगतना पड़ता है”

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आर्थिक विशेषज्ञ पाकिस्तान में कमजोर होते रूपये, तेजी से बढ़ती महंगाई और विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ते संकट में श्रीलंका से समानता देख रहे हैं. पाकिस्तान की शाहबाज सरकार अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से आर्थिक मदद के लिए गुहार लगा रही है, जो बदले में मदद से पहले शर्त रख रही है.

आइए समझते हैं कि पाकिस्तान में अभी आर्थिक हालत कैसे हैं? वहां की सरकार इससे पार पाने के लिए क्या कदम उठा रही है और क्या इस स्थिति में पाकिस्तान की तुलना श्रीलंका से करना वाजिब होगा?

पाकिस्तान में अभी आर्थिक हालात कैसे हैं?

पाकिस्तान की सरकार जब आर्थिक राहत के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास पहुंची, तो दोनों किसी समझौते पर पहुंचने में विफल रहे. IMF का कहना था कि जबतक शाहबाज शरीफ की सरकार फ्यूल और बिजली पर दी जा रही सरकारी सब्सिडी नहीं हटा लेती, वह लोन की एक अरब डॉलर की किश्त जारी नहीं करेगा.

आखिर में पाकिस्तान की सरकार को झुकना पड़ा और उसने पेट्रोलियम उत्पाद की कीमत को 30 रुपये प्रति लीटर बढ़ा दिया वहीं बिजली की कीमतों में प्रति यूनिट 7 रुपये की बढ़ोतरी का फैसला लिया.

पाकिस्तान की सरकार आर्थिक मजबूरी में यह फैसला तब ले रही है जब पाकिस्तान की जनता पहले ही बढ़ती महंगाई की मार झेल रही है. हाल के महीनों में उपभोक्ता कीमतों में बढ़ोतरी हुई है. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के मुर्तजा सैयद के अनुसार अप्रैल में महंगाई 13.4% तक पहुंच गई, जो पिछले दो सालों में सबसे अधिक है.

पाकिस्तान में बढ़ती महंगाई के कारण देश के केंद्रीय बैंक को दो महीने में ही दूसरी बार अपनी ब्याज दर (रेपो रेट) में वृद्धि करनी पड़ी.

पाकिस्तान के पास आयात के लिए सिर्फ 2 महीनों का रिजर्व

पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा भंडार 28 महीने के निचले स्तर 11 अरब डॉलर से नीचे आ गया है. इतना कम विदेशी मुद्रा भंडार पाकिस्तान में अगले दो महीनों के लिए आयात को कवर करने के लिए मुश्किल से पर्याप्त है.

जुलाई 2021 में शुरू हुए चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में, पाकिस्तान को $33.28bn की वस्तुओं और सेवाओं में नकारात्मक व्यापार घाटा (negative trade deficit) हुआ.

इसने 28.85 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात किया जबकि 62.13 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का आयात किया. इन 9 महीनों में पाकिस्तान का चालू खाता घाटा पिछले वर्ष की इसी अवधि के 275 मिलियन डॉलर से बढ़कर 13.17 अरब डॉलर हो गया.
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डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया कमजोर

पाकिस्तान में उच्च चालू खाता घाटा और घटते विदेशी मुद्रा भंडार ने डॉलर की दर को बढ़ा दिया है. एक डॉलर की कीमत इस महीने की शुरुआत में खुले बाजार में 190 पाकिस्तानी रुपया थी जो अब बढ़कर 202 पाकिस्तानी रूपये से ऊपर चली गयी है.

डॉलर की ऊंची दरों का मतलब है कि पाकिस्तान को अब आयात की समान मात्रा के लिए अधिक पाकिस्तानी रूपये का भुगतान करना होगा.

क्या श्रीलंका की राह पर पाकिस्तान?

श्रीलंका की तरह ही ब्याज लौटाने में चूक (डिफॉल्ट) और दिवालियेपन की भविष्यवाणी पाकिस्तान के इक्विटी, ऋण और मुद्रा बाजारों को झकझोर रही हैं. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पर कम भरोसे के कारण ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पाकिस्तानी बांडों की हालत पस्त है.

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान को इस तरह के संकट का सामना करना पड़ा है. सिर्फ पिछले 20 वर्षों में पाकिस्तान ने 1998-99 (परमाणु परीक्षण के बाद लगे आर्थिक प्रतिबंधों के कारण) के भीषण आर्थिक संकट की तरह ही या उससे भी बदतर परिस्थितियों का सामना किया है- 2008, 2013, और 2018-19 में.

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आज पाकिस्तान के आर्थिक हालात को राजनीतिक अस्थिरता, कोरोना महामारी, यूक्रेन युद्ध, रूस के खिलाफ प्रतिबंध, विकसित देशों में ब्याज दरों में वृद्धि, चीन में लॉकडाउन और जलवायु परिवर्तन (हीटवेव्स) ने और बदतर कर दिया है.

हालांकि इशरत हुसैन जैसे आर्थिक विशेषज्ञ का मानना है कि पाकिस्तान के हालात अभी श्रीलंका जितने खराब नहीं हुए हैं और जैसे अतीत में पाकिस्तान ने अपने आर्थिक संकट से पार पाया है, इस बार भी यह संभव है.

इशरत हुसैन ने Geo न्यूज में लिखा है कि पाकिस्तान में इस आर्थिक संकट के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए जिस सवाल का जवाब खोजने की जरुरत है, वह यह है कि पाकिस्तान भुगतान संतुलन पर दबाव बनाए बिना जीडीपी ग्रोथ रेट को कैसे पुनर्जीवित और तेज कर सकता है? इसी के साथ वह महंगाई को कम रखते हुए कैसे अधिकतम रोजगार का अवसर पैदा कर सकता है और आबादी के गरीब तबके की सहायता कर सकता है?

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