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पाक आर्मी ऐसे डालती है अपने करतूतों पर पर्दा, गुलालई हैं उदाहरण

इस्माइल फिलहाल अमेरिका में हैं, जहां उन्होंने राजनीतिक शरण मांगी है.  

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पाकिस्तान में मानवाधिकारों की आवाज उठाने वाले लोगों का क्या हश्र होता है, इसका एक उदाहरण हैं मानवाधिकार कार्यकर्ता गुलालाई इस्माइल. मारे जाने के डर से अमेरिका पलायन करने वालीं गुलालाई इस्माइल के परिवार का पाकिस्तान में जीना दूभर हो गया है. गुलालाई अमेरिका में हैं, लेकिन पाकिस्तानी एजेंसियां उनके परिवार पर लगातार अत्याचार कर रही हैं.

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पाकिस्तानी सुरक्षा बल के जवान गुरुवार को गुलालई के रिटायर्ड प्रोफेसर पिता के पास जा पहुंचे और उनसे घर से बाहर आने के लिए कहा. सुरक्षा बलों ने प्रोफेसर से कहा कि वो उनसे बात करना चाहते हैं. लेकिन गुलालई के पिता मोहम्मद सुरक्षा बलों की मंशा समझ गए और घर से बाहर नहीं आए.

मोहम्मद ने कहा, वो लोग बिना यूनिफॉर्म के थे और उनके पास हथियार भी थे. इसलिए घर से बाहर नहीं आए.

परिवार को किया जा रहा है प्रताड़ित

कश्मीर में मानवाधिकार का राग अलापने वाला पाकिस्तान खुद मानवाधिकार का सामना कर रहा है. पाकिस्तान में ऐसे लोगों की आवाज दबाने के लिए उनको और उनके परिवार को प्रताड़ित किया जा रहा है.

पाकिस्तान ने मानवाधिकार कार्यकर्ता गुलालाई इस्माइल के खिलाफ इस्लामाबाद की एक अदालत ने गैर जमानती वारंट जारी किया है. ये गैर जमानती वारंट 'राष्ट्रीय संस्थाओं को बदनाम करने' के आरोप में जारी किया गया है. अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि अगर वह 21 अक्टूबर तक पेश नहीं होती हैं तो उन्हें भगोड़ा घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की जाए.

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पाक सेना की ‘करतूतों’ के खिलाफ एक आवाज

गुलालाई इस्माइल पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की उम्मीदों का नया चेहरा बनकर उभरी हैं. 27 सितंबर को इस्माइल न्यूयॉर्क की व्यस्त सड़कों पर पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की हालत पर आवाज उठाती दिखीं थी.

जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित कर रहे थे, तब इस्माइल पश्तून, बलूच, सिंधी और दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों के साथ संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के बाहर विरोध-प्रदर्शन कर रही थीं. करीब 1 महीने से न्यूयॉर्क में रह रही इस्माइल ने उस दुर्दशा को रेखांकित किया, जिसका सामना पाकिस्तान के अल्पसंख्यक दशकों से कर रहे हैं.

इस्माइल ने बताया, ''आतंकवाद के खात्मे के नाम पर निर्दोष पश्तूनों को मारा गया है. हजारों लोग पाकिस्तानी सेना के टॉर्चर सेल में हैं. हमारी मांग है कि पाकिस्तानी सेना मानवाधिकार का उल्लंघन तुरंत बंद करे. वो टॉर्चर सेल में बंद लोगों को तुरंत रिहा करे. मगर हम उनके खिलाफ आवाज उठाते हैं तो हमें आतंकवाद का आरोपी बना दिया जाता है. खैबर पख्तूनख्वा प्रोविंस में पाकिस्तानी सेना की तानाशाही है.''

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