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यूक्रेन से जंग में रणनीति बदलने पर क्यों मजबूर हुए पुतिन, जानिए इसके 4 बड़े कारण

लंबे युद्ध के थकाने वाले अभियान को देखते हुए रूस 17-18 साल के युवाओं को भी इसमें झोंकने की तैयारी कर रहा है.

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यूक्रेन (Ukraine) को चंद दिनों में अपनी विशाल सैन्य शक्ति के बल पर जीतने का रूस (Russia) का मंसूबा पूरा नहीं हो रहा तो उसने अपनी रणनीति चेंज कर ली है. रूस की इस नई युद्ध रणनीति पर 'क्विंट हिंदी' की खबर में हमने आपको बताया था कि रूस कैसे अपने प्लान 'ए' से शिफ्ट होकर 'बी' पर आ गया है. इस प्लान में रूसी सेना यूक्रेन पर अपने आक्रमण में पहले की तेजी की बजाय अब बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रही है.

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रूस का यह 'प्लान बी' यूक्रेन से उसके संघर्ष को कई और हफ्तों, संभवतः महीनों तक बढ़ा सकता है. द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने रूस के इस प्लान चेंजिंग पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें उसने उन कारणों पर भी प्रकाश डाला है जिनकी वजह से पुतिन और उनका रूस यूक्रेन से जंग में अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर हुए हैं. यहां जानिए वे चार बड़े कारण जिनकी वजह से रूस अपने वॉर प्लान को बदल सकता है.

जान-माल का भारी नुकसान

शुरुआती हफ्तों की कड़ी लड़ाई के बाद रूस अपने सैनिकों को बचाने की रणनीति पर भी उतर आया है. रूस के प्रशासन ने शुरू से ही जंग को लेकर यह स्वीकार नहीं किया कि उसके कितने लड़ाके शहीद हो चुके हैं, पर यूक्रेन के दावों पर गौर करें तो रूस को जंग में जान-माल का तगड़ा झटका लग चुका है.

अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स का कहना है कि रूस ने 1,500 से अधिक टैंक, ट्रक, घुड़सवार उपकरण और अन्य भारी गियर खो दिए हैं. युद्ध के मैदान में उसके बेशकीमती चार जनरलों की मौत हो चुकी है.

रूस के प्लान 'ए' वाले तेज हमले में वह किसी भी रिस्क को उठाकर जीत हासिल करना चाहता था, पर अब उसे सेना की रक्षा के मसले पर भी सोचना पड़ रहा है. 2008 में जॉर्जिया के साथ युद्ध के दौरान पांच दिनों की लड़ाई में रूस में 64 मौतें हुईं. अफगानिस्तान में 10 वर्षों में लगभग 15,000, और चेचन्या में लड़ाई के वर्षों में 11,000 से अधिक सैनिक शहीद हो गए थे, अब वह इस लड़ाई में इतनी ज्यादा जान दांव पर लगाने के मूड में नहीं है.

युद्ध के लंबे खिंचने की आशंका

इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडी ऑफ वॉर के मुताबिक रूस को यूक्रेन साथ चल रहे वर्तमान युद्ध के लंबे खिंचने की आशंका है. इसी को देखते हुए रूस अपने अभियान को प्लान 'बी' की तरफ ले जाने वाला है. रूस ने अब अपनी तैयारियां भी लंबे युद्ध के हिसाब से कर ली हैं. वह लंबे युद्ध के थकाउ अभियान को देखते हुए 17-18 साल के युवाओं को भी इसमें झोंकने की तैयारी कर रहा है.

अंतरराष्ट्रीय मीडिया की वॉर रिपोर्टिंग में यह जानकारी सामने आई है कि रूस अपने सैनिकों को बचाने लीबिया के लड़ाकों की सेवाएं भी ले सकता है. उसकी इसी स्ट्रेटजी के तहत मानव रहित विमानों और हेलीकॉप्टरों से हमले हो रहे हैं.

गुरिल्ला अटैक से खतरा

यूक्रेन की रणनीति इस मामले में स्पष्ट थी. उसे अपनी संप्रभुता और क्षेत्र को बचाना था. कभी झुकना नहीं था और युद्ध की सबसे खराब स्थिति आने पर भी गुरिल्ला युद्ध के लिए तैयार रहना था. गुरिल्ला अटैक की छापामार शैली केा यूक्रेन के सैनिक अभी भी अपना रहा है, इसमें यूक्रेनी सैनिक आम लोगों की तरह जनता के बीच रह रहे हैं और मौका लगते ही दुश्मन सेना पर हमला कर देते हैं.

अभी तक रशियन आर्मी को यूक्रेन के इस गुरिल्ला अटैक से बहुत नुकसान हुआ है. रूस अपने दुश्मन को इस आत्मघाती स्तर की मानसिकता तक नहीं लाना चाहता. ऐसे में यूक्रेन के कम सैनिक कम संसाधनों के साथ रशियन आर्मी को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं.इस स्थिति से भी उसे कहीं न कहीं खतरा महसूस हो रहा होगा.

रियल वॉर एक्सपीरियंस - जीरो

1945 के बाद रूसी यह पहला बड़ा पारंपरिक युद्ध लड़ रहे हैं. उनकी भर्ती-आधारित सेना का प्रशिक्षण रियल वॉर के हिसाब से शून्य है. रूस की कठोर कमांड-एंड-कंट्रोल रणनीति आधुनिक युद्ध के लिए उपयुक्त नहीं है. इन सब बातों ने रूस को अपनी योजना में परिवर्तन के लिए मजबूर कर दिया है.

(रूस के इस प्लान 'बी' श्रंखला की एक और खबर पढ़िए 'क्विंट हिंदी' पर, ''यूक्रेन को झुकाने का पुतिन का प्लान 'ए' फेल, अब प्लान 'बी' पर शिफ्ट हुई यूरोप की जंग'')

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