मनिमय विश्वकर्मा (50 वर्ष) अपनी 31 साल की बेटी रीना और दो नातियों के साथ एक छोटे टेबल के पास बैठी हैं. इसके बीच में लकड़ी से जलने वाले स्टोव पर एक प्रेशर कुकर रखा है. इससे कमरे को गर्म रखने में भी मदद मिल रही है. कुप्पुप में 13,000 वर्ग फुट की ऊंचाई पर विश्वकर्मा परिवार के छोटे से घर से दुकान भी चलती है. यहां से पांच किलोमीटर की दूरी पर भारत-चीन-भूटान बॉर्डर है और उससे पहले यह भारतीय सीमा का आखिरी गांव है.
इस बॉर्डर के 2 किलोमीटर दक्षिण में डोका ला एरिया है, जहां चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को रोड बनाने से रोकने पर भारत के साथ विवाद शुरू हुआ. यह रोड तीनों देशों की सीमा से बहुत करीब है और इस सड़क के पूरा होने पर भारत और भूटान की सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ सकता है.
डोका ला कुप्पुप के बीचोंबीच से 7 किलोमीटर दूर है. अभी तक रोड को लेकर भारत और चीन अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं.
डोका ला के पास के गांव की आवाजें
कुप्पुप में लगातार बारिश हो रही है और धुंध छाई है. यहां टिन की छत वाले 200 के करीब घर हैं. विश्वकर्मा परिवार की भाषा नेपाली है और घर के पुरुष सदस्य काम पर गए हैं. परिवार नाश्ता खत्म करने ही वाला था, तभी रीना ने हिंदी में कहा, ‘डोका ला यहां से 7 किलोमीटर दूर है. बाईं तरफ का रास्ता भारत-चीन-भूटान सीमा की ओर जाता है और दाईं तरफ का रास्ता थुकला घाटी में बाबा हरभजन मंदिर की तरफ.’ रीना बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) की इकाई जनरल रिजर्व इंजीनियरिंग फोर्स (जीआरईएफ) के लिए काम करती हैं.
बीआरओ के लिए जीआरईएफ रिक्रूटमेंट करती है. रीना को इस पर गर्व है. सिक्किम और चीन के साथ लगने वाली सीमा के पहाड़ी इलाकों में रोड बनाने का जिम्मा बीआरओ पर है. रीना एक महीने में 12,900 रुपये की मजदूरी मिलती है. वह और उनके सहकर्मी भारत और चीन की सेना के बीच टकराव से वाकिफ हैं, जो महीना भर पहले शुरू हुआ था.
चीन की सेना ने भूटान की सीमा से पीछे हटने से इनकार कर दिया है. यही नहीं, वह भारतीय सेना को डोका ला से जाने को कह रही है, लेकिन भारतीय सेना भी पीछे हटने को तैयार नहीं है.
कुप्पुप के 40-50 पुरुष भारतीय सेना के लिए कुली का काम करते हैं. ये लोग सुबह घर से निकलते हैं और देर रात घर लौटते हैं. यहां के दूसरे लोग जीआरईएफ से जुड़े हैं. सिक्किम पुलिस के कांस्टेबल टीआर छेत्री ने हमारा ट्रैवल परमिट क्लीयर करते हुए बताया, ‘कुप्पुप में फोटो खींचना सख्त मना है.’ सिक्किम के बॉर्डर एरिया में जाने के लिए परमिट जरूरी है.
कुप्पुप बहुत खूबसूरत है. यहां के पहाड़ हरे-भरे हैं और कई वॉटरफॉल भी हैं. रोड का एक सिरा पहाड़ी रास्तों और चट्टानी घाटियों से होते हुए पुराने हरभजन मंदिर की तरफ जाता है. इसी रोड के पास एलिफैंट लेक है. हाथी जैसा आकार होने की वजह से इस झील को यह नाम दिया गया है. झील के एक किनारे से एक रास्ता ऊपर की तरफ पहाड़ियों के बीच गुम हो जाता है, जिसके उस पार डोका ला है.
'चीन को सबक सिखाना चाहिए'
झील से कुछ आगे 70 साल के अंबर बहादुर गुरुंग रहते हैं. 66 साल की पत्नी दोरजीलामू और 32 साल के बेटे केसांग थिंगले के साथ वह आग के चारों तरफ बैठे हैं, जिसका इस्तेमाल खाना पकाने और घर को गर्म रखने के लिए किया जाता है. उनका घर पहाड़ी चट्टानों से बना है.
दोरजीलामू ने मेरी तरफ चाय का कप बढ़ाते हुए कहा, ‘हम गर्मियों और मॉनसून सीजन में यहां रहते हैं क्योंकि यह याक के चरने का सीजन होता है. हम याक के दूध से बटर और चीज बनाते हैं और उसे लोकल बाजार में बेचते हैं.’ उनके मन में 1962 के भारत-चीन युद्ध की कुछ ही यादें बची हैं.
उन्होंने बताया कि 1962 में युद्ध शुरू होने पर उनका परिवार कुप्पुप से निचले इलाके के गांव में चला गया था. केसांग ने बताया कि उन्होंने गांव के बुजुर्गों से यह सुना है कि 1962 में चीन की सेना के दागे गए कई गोले झील और आसपास के इलाकों में अभी भी पड़े हुए हैं. इसकी पुष्टि नहीं हो पाई क्योंकि तीनों देशों की सीमा का जहां बोर्ड लगा था, वहां तैनात भारतीय सेना के जवानों ने इस बारे में कुछ भी कहने से मना कर दिया.
केसांग पूछते हैं कि क्या भारत और चीन के बीच युद्ध होगा? और जवाब खुद ही देते हैं. केसांग ने कहा, ‘चीन को सबक सिखाना चाहिए क्योंकि वह आक्रामक रुख दिखा रहा है.’ हालांकि, दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने से उन्हें सीमा पार से होने वाला व्यापार बंद होने का डर है. वह चावल के आटे और डालडा की बिक्री करते हैं, जिसके लिए चीन के खरीदार उन्हें येन में भुगतान करते हैं. वह इसे गंगटोक जाकर रुपये में बदलते हैं.
जहां सीमा पर तनाव है, वहीं सिक्किम में बाबा हरभजन के पुराने मंदिर में शांति पसरी है. शेरथांग के पास बाबा हरभजन का नया मंदिर बना है.
सिक्किम में भारत-चीन सीमा पर तैनात इस दिवंगत ट्रूपर को भारतीय सैनिक पूजते हैं. वे पुराने मंदिर में दर्शन के लिए आते रहते हैं. थुकला घाटी के ऊपर यह मंदिर स्थित है. आप यहां टेलीफोन केबल्स देख सकते हैं, जिससे इस क्षेत्र में भारतीय सेना के कम्युनिकेशन नेटवर्क का अंदाजा लगता है. पास में ही आर्टिलरी गन पोजीशन भी है.
इस घाटी में भारतीय सेना ने कई बंकर बना रखे हैं, जिन तक कच्चे-पक्के सड़कों से होकर पहुंचा जा सकता है. हालांकि, हरभजन सिंह मंदिर में सैनिक दर्शन की जल्दी में हैं क्योंकि उन्हें अपने स्टेशन पर पहुंचा है. सुबेदार बीरेंद्र सिंह का परिवार उनके साथ मंदिर में दर्शन को आया है. वह उन्हें जल्द दर्शन पूरा करने के लिए कहते हैं. उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों से कहा, ‘वापस लौटना है, जल्दी करो. उनके चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा है.’ उन्होंने हमें बताया, ‘डोका ला पे अभी भी टेंशन है.’
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