1 दिसंबर 2022 मेरे प्रोफेशनल करियर का सबसे दुखद दिन है. ऐसा लगता है कि अथाह ताकत वाला एक इंसान को, जिसे अक्सर आज की पत्रकारिता का पिलर बताया जाता है, देश के सबसे लोकप्रिय टीवी नेटवर्क में से एक NDTV में चल रहे घटनाक्रम ने पीछे धकेल दिया है. मुझे यकीन है कि आप समझ गए होंगे कि मैं किसके बारे में बात कर रहा हूं- द रवीश कुमार (Ravish Kumar Resigns) .
गुरुवार को, रवीश सर ने अपने यूट्यूब चैनल पर ऐलान किया कि उन्होंने 26 साल से अधिक समय तक काम करने के बाद NDTV से आधिकारिक रूप से इस्तीफा दे दिया है.
मैं पत्रकार न होता अगर रवीश...
यूट्यूब पर आया उनका वीडियो देखने के बाद मैं कुछ मिनट के लिए स्तब्ध रह गया. उनका वीडियो मुझे 2015 में वापस ले गया जब मैंने इंजीनियरिंग में अपना करियर छोड़कर और इस ईमानदार पत्रकार के साथ काम करने की उम्मीद के साथ NDTV में शामिल हुआ था. सिर्फ रवीश के कारण ही मैंने पत्रकार बनने का फैसला किया था.
मैं NDTV में एक इंटर्न के रूप में शामिल हुआ. 8 मई 2015 की बात है जब मैंने न्यूज रूम में करिश्माई व्यक्तित्व वाले रवीश सर को देखा था. तारीख मुझे साफ-साफ याद है क्योंकि जब मैं ऑफिस में दाखिल हुआ तो मेरा पहला मकसद रवीश सर से ही मिलना था.
खैर, मैं उस दिन सिर्फ उन्हें देख पाया, मैं उनसे नहीं मिल पाया क्योंकि मैं उनके सामने जाने से हिचकिचा रहा था. अगले दो सालों तक मैंने उनसे मिलने की कई बार कोशिश की, लेकिन जेहन में मौजूद मेरी झिझक ने मुझे कभी उनसे मिलने नहीं दिया.
जैसे-जैसे हफ्ते और महीने बीतते गए, मैंने गौर किया कि वे दोपहर 2 बजे ऑफिस आते थे. तो मैं जानबूझकर मैं उस वक्त उन सीढ़ियों के पास चला जाता था, जहां से वे अंदर दाखिल होते थे और मैं उन्हें सलाम-नमस्ते कर पाता था.
'उनके साथ काम करना सपना सच होने जैसा था'
फिर 2018 में आखिरकार मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला. तब तक, वे NDTV में 22 साल से अधिक समय तक काम कर चुके थे जबकि मुझे पत्रकारिता में केवल 3 साल का अनुभव था. उनमें मौजूद ऊर्जा, जुनून और उत्साह मेरे लेवल से कहीं ऊपर था और मैं उसकी बराबरी नहीं कर सकता था.
उसी साल वे अपने प्राइम टाइम में कुछ कॉलेज सीरीज कर रहे थे, जिसमें बिहार के कॉलेजों की बदहाली को दिखाया गया था. मैंने एक स्टोरी का सुझाव दिया जो उनकी इस सीरीज में फिट बैठती.
जब मैंने उनसे इस बारे में बात की, तो उनका पहला जवाब था, "पहले इसको लिख लीजिए फिर चीजें ज्यादा क्लियर होती हैं. उसके बाद प्रोसेस शुरू करें."
इस सिंपल से फीडबैक ने मेरे लिए लेखन और आईडिया को मूर्त रूप देने की प्रक्रिया को आसान बना दिया.
उनकी पसंदीदा सलाह थी कि 'कभी भी किसी स्टोरी को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हो जाइए.' यहां तक कि अगर कोई स्टोरी महत्वपूर्ण है और उसे अर्जेंटली पब्लिश करनी है, तो उनका मंत्र होता था- 'वेरीफाई कर लीजिए 2-3 सोर्स से'.
सालों तक, उन्होंने अपने प्राइम टाइम में उसी समर्पण के साथ अपना इंट्रो और स्क्रिप्ट लिखने का काम किया. वह समय पर ठीक दोपहर 2 बजे ऑफिस पहुंचते थे. रवीश सर अपने सहयोगियों से दिन की डेवलपिंग स्टोरीज के बारे में बात करते और फिर अपने रिसर्चर्स के साथ शाम 4 बजे तक उस पर काम करने के लिए बैठ जाते.
उन्होंने एक बार मुझसे कहा था, "मुझे कम से कम 2 घंटे चाहिए होते हैं अपने शो के लिए लिखने को. इसलिए मैं 6 बजे के बाद ज्यादा किसी से बात नहीं करता."
चूंकि मैं उनके साथ और उनके आसपास काम करने वाले सबसे भाग्यशाली पत्रकारों में से एक हूं, इसलिए वो जिससे गुजर रहे हैं वह मुझे देखकर दुख हो रहा है. NDTV में मैंने पांच साल काम किया. इस दौरान, मैं हमेशा उन्हें बताना चाहता था कि उन्होंने मेरे जीवन और मैं चीजों को कैसे देखता हूं, उसे कैसे प्रभावित किया है. लेकिन मैं 2020 तक उनसे कुछ नहीं कह पाया.
18 फरवरी 2020 को NDTV में मेरा आखिरी वर्किंग डे था. मैंने साहस जुटाया और उन्हें बताया कि कैसे उन्होंने मेरे जीवन को प्रभावित किया है और कैसे उनके कार्य मेरे लिए ज्ञान और प्रेरणा के स्रोत रहे हैं. मैंने उन्हें यह भी बताया कि मैं क्विंट से जुड़ूंगा. वह यह सुनकर खुश हो गए.
मुझे अभी भी याद है कि उन्होंने कहा था, "आज कल लोगो को टीवी बंद कर देना चाहिए क्योंकि टीवी पर हिंदू-मुस्लिम के अलावा कुछ और नहीं किया जाता. अच्छा है आप द क्विंट जा रहे हैं क्योकि क्विंट जैसे डिजिटल मीडिया संस्थान में यंग जर्नलिस्ट अच्छा काम कर रहे हैं... आपको भी अच्छा काम करने का मौका मिलेगा. ऑल द बेस्ट."
उसके साथ यह बातचीत मेरे लिए सबसे अच्छा फेयरवेल गिफ्ट था, जिसकी मैं कल्पना कर सकता था.
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