"नमस्कार मैं रवीश कुमार." इन शब्दों से आप परिचित तो होंगे ही, इन शब्दों में केवल परिचय ही नहीं, एक अनुभव शामिल है. एनडीटीवी में एक अनुवादक से समूह संपादक की यात्रा तय करने के बाद रवीश कुमार ने एनडीटीवी से अपना इस्तीफा (Ravish Kumar Resigns NDTV) दे दिया. भारत का हर वह व्यक्ति जो टेलीविजन का दर्शक है, जिसने रवीश कुमार को टीवी पर देखा है, उनके चर्चित कार्यक्रम प्राइम टाइम को जरूर सराहा है. इसी प्राइम टाइम में रवीश कुमार देश और दुनिया के ज्वलंत मुद्दों को बड़ी ही बेबाकी के साथ उठाया करते थे.
रवीश एनडीटीवी से एक ट्रांसलेटर की तरह जुड़े. इसके साथ ही वह वहां आने वाली दर्शकों की चिट्ठियों को छांटकर उनसे संक्षिप्त लेख बनाने का काम करते थे. उनका यह सफर एक दिग्गज पत्रकार के रूप में उनके इस्तीफे के साथ एनडीटीवी से समाप्त हुआ.
यह लेख किसी भी तरह से राजनैतिक दृष्टिकोण से नहीं लिखा गया है, यह लेख केवल सराहना है एक अनूठे पत्रकार की जिनकी पत्रकारिता का नजरिया क्रांतिकारी रहा है. रवीश एक तटस्थ पत्रकार रहें हैं और वे शायद आखरी पत्रकार हैं जिन्होंने पारंपरिक पत्रिकारिता को बनाये रखा था.
समय के साथ-साथ पत्रकारिता में कई बदलाव आये हैं. जहां पत्रकारिता आज पक्ष-विपक्ष की बहस में फंस गयी है, ऐसे में रवीश ने एक निर्भीक और बेबाक पत्रकार का किरदार बखूबी निभाया. उन्होंने अपने कर्तव्य का निर्वाहन पूर्ण तरीके से किया. वह एक ऐसे निष्पक्ष पत्रकार रहे जिन्होंने कभी सच प्रकट करने में हिचकिचाए नहीं.
एक पत्रकार के रूप में उनके द्वारा कि गई ग्राउंड रिपोर्टिंग दर्शक को पत्रिकारिता के करीब लाने की क्षमता रखती है. उनका रिपोर्टिंग का अंदाज बहुत ही बेबाक और प्रेरणादयी रहा है,जो युवाओं को पत्रकारिता को अपना पेशा बनाने के लिए प्रेरित भी करता है. रवीश दर्शकों के बीच जाकर उनमें घुल-मिल जाने की कला को बखूबी जानते हैं. बेहद आत्मीय अंदाज से मिलकर उन्होंने आम और खास लोगों से चर्चाएं की हैं.
मुद्दे को प्रस्तुत करने का बहुत ही निराला अंदाज
उनकी मातृभाषा भोजपुरी है, इसके बावजूद वे कमाल के हिंदी वक्ता हैं. उनकी भाषा और उच्चारण बहुत ही स्पष्ट है. वह अपनी ट्विटर बायो में लिखते हैं कि "उन्हें अंग्रेजी नहीं आती". यह बात उनके सरल और सहज स्वभाव को दर्शाती है, इसलिए भी क्योंकि लंबे समय तक अंग्रेजी से अनुवाद करना उनकी नौकरी का हिस्सा था.
इस्तीफा देने के बाद उन्होंने सर्वप्रथम अपने दर्शकों को अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से सराहा, उन्हें धन्यवाद दिया और उनमें विश्वास जताया. उनका इस्तीफा इस बात की मिसाल है की, एक पत्रकार के लिए उसके वैचारिक स्वतंत्रता कितनी मायने रखती है और उसे दर्शकों से जुड़ने में सहायता भी करती है.
वे दुखी थे क्योंकि उनसे उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उनसे छूट रहा था. जिस व्यक्ति ने अपने जीवन का लगभग ढाई दशक से अधिक का समय एक चैनल को दिया और उसे मजबूती प्रदान की, उसको छोड़ते हुए दुखी होना स्वाभाविक था.
भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में यह शायद पहली बार हुआ है कि एक पत्रकार के इस्तीफा पर इतना कोलाहल मच गया. लाखों भारतीयों के लिए वे केवल एक साधारण पत्रकार नहीं थे. वह उनसे भावनात्मक रूप से जुड़े हुए आम इंसान कि बात को रखने वाले इंसान भी हैं.
उनके पत्रकारिता के सफर को हम सभी ने अपने सामने बढ़ता हुआ देखा है. एक बेबाक और ईमानदार पत्रकार को इस तरह से इस्तीफा देते हुए देखना सभी को संवेदनशील और आम लोगों को दुखी करने वाली बात है. वाकई एक पत्रकार चाहे तो वह क्या कुछ नहीं कर सकता है, रवीश इसका प्रामण हैं.
दर्शक केवल नामी सितारों को ही नहीं बल्कि एक पत्रकार को भी उतना ही प्रेम दे सकते है. रवीश ने भले ही एनडीटीवी को अलविदा कह दिया हो ,परंतु दर्शक उन्हें दूसरे मंच पर देखने के लिए उत्सुक हैं. हम और आप यह उम्मीद करते हैं कि रवीश अपनी इसी बेबाकी, निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ जल्द ही किसी दूसरे मंच से देश के आम लोगों की बात को उतनी ही सहज ढंग से रख सकेंगे. रवीश की आवाज इस देश के करोड़ों लोगों की आवाज थी और रहेगी. ये समय है एक बदलाव का और हम सभी इस बदलाव को खुले मन से अपनाएंगे.
(लेखिका आदिश्री यादव, धर्मशास्त्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट हैं. यह उनके अपने निजी विचार हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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