कैमरा: सुमित बडोला
वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया
वीडियो प्रोड्यूसर: बादशा रे और सुशोभन सरकार
बात जब क्रिकेट की हो रही हो और वो भी इंडिया vs ऑस्ट्रेलिया की, तो रोमांच बढ़ना लाजमी है. भई इतिहास गवाह है कि जब-जब भारत और ऑस्ट्रेलिया की टीमें आमने-सामने आईं, तो खेल सिर्फ ऑन फील्ड तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि ये खिलाड़ियों की मानसिक एकाग्रता की भी परीक्षा लेता है. और मानसिक एकाग्रता को भंग करने के लिए वो ब्रह्मास्त्र जिसके जनक ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर्स माने जाते हैं, वो है स्लेजिंग.
स्लेजिंग का प्रयोग अमूमन तब होता है, जब सामने वाले खिलाड़ी का ध्यान खेल से भटकाना हो या फिर उसे इतना फ्रस्ट्रेट कर देना हो कि झुंझलाहट में आकर वो कोई गलत शॉट या गलत गेंद डाल दे.
अब ये स्लेजिंग वैसे तो मजाक के लिहाज से देखी जाती है, श्रोताओं को मजा भी खूब आता है, लेकिन कई बार ये गेम का मूड खराब भी कर देती है. अब आप सबको हरभजन सिंह और एंड्रू सायमंड का 'monkey gate' तो याद ही होगा.
उस घटना के बाद ना केवल खेल समीक्षकों ने बल्कि खेल प्रेमियों ने भी इस पूरी घटना और खेल में हो रही स्लेजिंग की जम कर आलोचना की थी. खैर, उस बात को बीते काफी टाइम हो गया. लेकिन हाल ही में जब बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के एक मैच में जब ऋषभ पंत और ऑस्ट्रेलिया के कप्तान टिम पेन आपस में स्लेजिंग करते नजर आये, तो इस बहस ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया कि क्या खेल में स्लेजिंग जरूरी है.
अगर यह सच में खेल का एक अभिन्न हिस्सा है, तो क्या स्टंप माइक को हमेशा ऑन रख के हो रही बात को लोगों तक पहुंचाना जायज है? क्या ब्रॉडकास्टर्स स्लेजिंग को बढ़ावा दे रहें, अपनी TRP रेटिंग को बढ़ाने के लिए?
देखिये हम ना तो पक्ष में हैं न हीं विपक्ष में. लेकिन इससे पहले की आप अपनी राय बनायें, जरा देखें इस वीडियो को और समझो कि आखिर माजरा क्या है?
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