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Ind vs Pak: 33 साल बाद भी भारत-पाक के इस मैच की कोई टक्कर नहीं

ऑस्ट्रेलेशिया कप के फाइनल में भारत और पाकिस्तान की टक्कर हुई थी.

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जोहानेसबर्ग में 2007 टी-20 वर्ल्ड कप फाइनल के आखिरी ओवर में भारत की जीत या डरबन में टाई के बाद बॉल आउट में पाकिस्तान की हार. ढाका में 2014 के एशिया कप में भारत की एक विकेट से हार या कराची में 2004 में 6 रन से पाकिस्तान की हार. भारत और पाकिस्तान के बीच ऐसे कई मैच हैं, जो बिल्कुल आखिरी वक्त तक फैसले का इंतजार करते रहे.

लेकिन इन सबमें से जो मैच, जिसने दोनों देशों की टक्कर को चरम पर पहुंचाया, खिलाड़ियों को हीरो और विलेन बनाया, वो कांटे का मुकाबला था- 1986 का ऑस्ट्रेलेशिया कप फाइनल.

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शारजाह में हुआ ये फाइनल में आज भी दोनों देशों के बीच सबसे रोमांचक मुकाबला माना जाता है.

पहले बैटिंग करने उतरी भारतीय टीम को सुनील गावस्कर और कृष्णामचारी श्रीकांत ने कमाल की शुरुआत दिलाई. दोनों ने पहले विकेट के लिए 117 रन जोड़े. 75 रन बनाकर श्रीकांत आउट हो गए, लेकिन रन बनाने का सिलसिला जारी रहा दिलीप वेंगसरकर और गावस्कर ने मिलकर 99 रन की पार्टनरशिप की.

हालांकि 50 रन बनाकर जब वेंगसरकर आउट हुए, तो उसके बाद भारत के बाकी बल्लेबाज कुछ नहीं कर सके. गावस्कर ने बेहतरीन 92 रन बनाए और आखिरी गेंद पर आउट हुए. भारत ने 50 ओवर में 245 रन बनाए. उस दौर के लिहाज लक्ष्य आसान नहीं था.

पाकिस्तान शुरुआत खराब रही और चेतन शर्मा ने ओपनर मुदस्सर नजर को जल्दी आउट कर दिया. 61 रन तक पाकिस्तान के 3 विकेट गिर गए. यहां से पाकिस्तान के सबसे बड़े बल्लेबाज जावेद मियांदाद ने मोर्चा संभाला. मियांदाद ने सलीम मलिक और अब्दुल कादिर के साथ मिलकर टीम को 181 तक पहुंचाया, जब कादिर को कपिल ने आउट किया.

यहां पर पाकिस्तान की उम्मीदें मियांदाद और इमरान खान से थी, लेकिन मदन लाल ने इमरान खान के स्टंप उखाड़ दिए. हालांकि मियांदाद अभी भी जीत की ओर बढ रहे थे और एक शानदार शतक लगाया.

आखिरी ओवर कराने आए चेतन शर्मा ने जुल्करनैन को बोल्ड किया. चेतन शर्मा अभी तक 3 विकेट वे चुके थे और भारत के हीरो साबित हो रहे थे. बस सामने एक दीवार थी- जावेद मियांदाद, जिसे तोड़ना जरूरी था. आखिरी गेंद पर पाकिस्तान को जीत के लिए चाहिए थे 4 रन और स्ट्राइक पर थे मियांदाद.

मुझे अंदाजा था कि चेतन शर्मा यॉर्कर डालने की कोशिश ही करेगा, इसलिए मैं क्रीज से बाहर आकर खड़ा हो गया. मैं तय किया था, कि थोडा सा ‘रूम’ बनाकर पूरी ताकत से शॉट लगाउंगा. मैं 110 रन बना चुका था और गेंद को अच्छे से देख पा रहा था. मुझे यकीन था कि अगर गेंद बल्ले पर आई तो वो बाउंड्री के पार ही जाएगी.
जावेद मियांदाद, ‘CuttingEdge: My Autobiography’ में

जावेद मियांदाद ने आखिरी गेंद से पहले 2 बार पहले ऑफ साइड की फील्ड को देखा और फिर एक नजर लेग साइड की फील्ड पर भी डाली.

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‘बेचारा चेतन शर्मा’

दो देशों की उम्मीदें उस आखिरी गेंद पर टिकी थीं. भारत के लिए चेतन शर्मा हीरो बनने वाले थे, तो पाकिस्तानियों के लिए जावेद मियांदाद एक करिश्मा करने के करीब थे. भारत को चाहिए था सिर्फ एक विकेट और पाकिस्तान को एक बड़ा शॉट.

जैसा मियांदाद ने सोचा था, वैसा ही हुआ. चेतन शर्मा ने यॉर्कर की कोशिश की, लेकिन गेंद मिडिल और लेग स्टंप के बीच फुल-टॉस बन गई. मियांदाद ने पूरी ताकत से गेंद को मिडविकेट और लॉन्ग ऑन के बीच मार दिया. अपना शॉट देख मियांदाद वहीं पर उछल पड़े और पैवेलियन की ओर भागने लगे. मियांदाद का शॉट बाउंड्री के पार 6 रन के लिए गिरा था.

अगले 2-3 सेकेंड में ही शारजाह के उस मैदान में पाकिस्तानी फैंस अपने हीरो के पास पहुंचने के लिए टूट पड़. किसी तरह मियांदाद फैंस की भीड़ से निकलकर वापस पैवेलियन पहुंच पाए. पाकिस्तान ने मैच की आखिरी गेंद पर एक विकेट से फाइनल जीत लिया था. पाकिस्तान को नेशनल हीरो मिल गया था, जबकि सिर्फ उस छक्के ने शर्मा को भारत का सबसे बड़ा विलेन बना दिया था.

“बेचारा चेतन शर्मा. हिंदुस्तानी कहते हैं कि शर्मा ने यॉर्कर की कोशिश की थी, लेकिन गेंद उसके हाथ से फिसल गई. या शायद मैं बैटिंग क्रीज के काफी बाहर खड़ा था इसलिए उसकी लेंथ खराब हो गई. जो भी राज हो, वो मेरे लिए एक परफेक्ट गेंद थी.”
जावेद मियांदाद, ‘CuttingEdge: My Autobiography’ में

एक साल तक विलेन बने चेतन शर्मा ने 1987 वर्ल्ड कप में इस दाग को धो दिया. न्यूजीलैंड के खिलाफ वर्ल्ड कप में हैट्रिक लेकर वो एक बार फिर हीरो बन गए. वो वर्ल्ड कप में हैट्रिक लेने वाले पहले गेंदबाज थे और आज तक इकलौते भारतीय.

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