ओवल टेस्ट के पहले टीम इंडिया की प्लेइंग इलेवन में बदलाव होने बिल्कुल तय थे. ईशांत शर्मा का बाहर होना पक्का था, वहीं आर अश्विन के फिर से वापस आने की संभावना काफी प्रबल थी. इतना ही नहीं अजिंक्य रहाणे के भी टीम से बाहर होने पर तलवार लटक रही थी.
लेकिन, टॉस हारने के बाद जब कप्तान विराट कोहली ने अपनी टीम का खुलासा किया तो इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और बेहद सम्मानित क्रिकेट एक्सपर्ट अपने कान पर भरोसा नहीं कर पाये, जब उन्होंने सुना कि अश्विन एक बार फिर से टीम का हिस्सा नहीं है.
पत्थर की लकीर जैसा टैम्पलेट
कोई भारतीय कमेंटेटर होता तो कोहली से इस फैसले पर सीधा सवाल करने का दुस्साहस नहीं कर पाता, क्योंकि अगली सीरीज से उसका पत्ता ही कट जाता!
लेकिन, एथर्टन और नासिर हुसैन जैसे न्यूट्रल और बिना लाग-लपेट वाले और एजेंडाहीन कमेंटेटर को कोहली जैसे दिग्गज की नाराजगी और खुशी से कोई फर्क नहीं पड़ता.
जवाब देते समय कोहली के चेहरे पर झुंझलाहट साफ देखी जा सकती थी. लेकिन, कप्तान ने किसी तरह से अपने 4 तेज गेंदबाज और एक स्पिनर वाली 'पत्थर की लकीर जैसे टैम्पलेट' का हवाला देते हुए अश्विन को बाहर रखने के फैसले का तर्क दिया.
ज्यादातर जानकारों और अधिकांश फैंस को ये तर्क कम कुतर्क ज्यादा लगा.कुतर्क अगर ना भी कहें तो, इसे बौखलाने वाला फैसला निश्चित तौर पर कहा जा सकता है. या इसे निश्चित तौर पर एक जिद्दी कप्तान का अड़ियल फैसला कहा जा सकता है?
कोहली तो क्या दुनिया का कोई भी कप्तान दुनिया के सबसे बेहतरीन स्पिनर को लगातार 4 टेस्ट मैचों में बाहर रखने का दुस्साहस तो कर ही नहीं सकता था.
ये वही अश्विन हैं, जो जनवरी में इंग्लैंड के खिलाफ मैन ऑफ द सीरीज थे. ये वही अश्विन हैं, जो पिछले साल कोहली और कई सीनियर गेंदबाजों की गैर-मौजूदगी में अपने खेल का स्तर दूसरे मुकाम पर ले गये, जिससे टीम ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीती. सबसे दर्दनाक बात तो ये है कि अश्विन को जडेजा के चलते टीम से बाहर रखा जा रहा है. उस जडेजा के चलते, जिन्होंने अब तक इंग्लैंड में 3 टेस्ट में सिर्फ 2 विकेट लिए थे.
अश्विन को बाहर रखने और जडेजा को शामिल करने पर हास्यास्पद दलील!
और तो और कोहली ने अश्विन को बाहर रखने और जडेजा को शामिल करने पर जो दलील दी वो और हास्यास्पद रही.
कोहली का कहना था कि, इंग्लैंड की टीम में चूंकि 4 बायें हाथ के बल्लेबाज हैं, इसलिए जडेजा ज्यादा कारगर साबित होंगे और वो बल्लेबाज भी बेहतर हैं. अब कोहली को जाकर ये आंकड़े कौन बतायेगा कि भारतीय इतिहास में ही नहीं बल्कि क्रिकेट इतिहास में भी किसी स्पिनर ने 200 से ज्यादा बायें हाथ के बल्लेबाजों के विकेट नहीं लिए है, जोकि अश्विन ने किया है.
अब कोहली का दूसरा तर्क भी सुन लें
कोहली के अनुसार, जडेजा बेहतर बल्लेबाज हैं अश्विन के मुकाबले, और टीम को एक बेहतर बल्लेबाज चाहिए जो कुछ ओवर्स की स्पिन भी डाल सके. इस हिसाब से तो हनुमा विहारी का भी चयन हो सकता था, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया में टीम इंडिया को जिताने में अहम भूमिका निभायी थी.
संतों के भी सब्र की एक सीमा होती है
लॉर्ड्स टेस्ट के शुरू होने से पहले भी कोहली ने अश्विन के प्लेइंग इलवेन में नहीं चुने जाने के सवाल पर अपना जवाब कुछ इस अंदाज में दिया था,
“पूरी इंग्लैंड सीरीज के दौरान अब हमारी रणनीति कमोबेश ऐसी ही रहेगी. वैसे हाल के सालों में विदेशी पिचों पर हालात को देखते हुए हमने अपनी सोच में बदलाव किए हैं, जो इस टीम की सबसे बड़ी ताकत रही है और ऐसी जरूरत महसूस हुई तो आगे भी करेंगे.”
कोहली अपनी जिद को सही साबित करने के चक्कर में इस चैंपियन गेंदबाज के साथ बदसलूकी तो नहीं कर रहें हैं?
कई जानकार अक्सर दबी जुबान में ये कह चुके हैं कि कोहली शायद अश्विन जैसे सीनियर की प्रतिभा के साथ सही रवैया नहीं अपनाते हैं और इसका बीज उन्होंने कप्तान के तौर पर अपने पहले ही टेस्ट में बो दिया था, जब 2014 के एडिलेड टेस्ट में अश्विन को नजरअंदाज कर युवा करन शर्मा को मौका दिया था.
बहरहाल, संतों के भी सब्र की एक सीमा होती है और फिर अश्विन तो एक पेशेवर खिलाड़ी हैं. वो चाहे कितने ही विनम्र क्यों न हों, उनके मान को तो ऐसे फैसलों से बहुत ठेस पहुंच रही होगी. अश्विन को बेहद सुलझा और क्रिकेट की बेहतरीन समझ रखने वाला खिलाड़ी माना जाता है.
लेकिन, 600 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय विकेट लेने के बाद अगर आपको कोई गंभीरता से नहीं ले, तब समझ लेना चाहिए कि उस खिलाड़ी के पास कितना संयम है. लेकिन, अब तो कोहली ने हद ही कर दी है.
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