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ये समय विराट के लिए सच और आलोचनाओं का सामना करने का है: पाटिल

पहले दो टेस्ट में भारतीय प्रदर्शन को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि टीम ने अपने कप्तान के बयान को गंभीरता से लिया है

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इंग्लैंड दौरे पर जाने से पहले कप्तान विराट कोहली और कोच रवि शास्त्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस हम सबको बखूबी याद है. तब उन्होंने भरोसे के साथ कहा था- "हमारे पास इंग्लिश कंडीशन्स से तालमेल बिठाने के लिए पर्याप्त समय है और हम वहां कॉफी के मजे लेंगे."

पहले दो मैचों में भारतीय प्रदर्शन को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि टीम ने वाकई अपने कप्तान के बयान को गंभीरता से लिया है- हमारे खिलाड़ी वास्तव में इंग्लिश कंडीशन्स में सिर्फ कॉफी के मजे ले रहे हैं. किसी को भी आलोचना पसंद नहीं होती, लेकिन अगर एक टीम इस हद तक खराब प्रदर्शन करे, तो उन्हें सच्चाई, तथ्यों और आलोचनाओं का सामना करने के लिए तैयार भी रहना चाहिए.

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मैं आपको रवि शास्त्री के उस बयान की तरफ ध्यान दिलाना चाहता हूं, जो उन्होंने साउथ अफ्रीका दौरे के बाद दिया था. तब टीम इंडिया के कोच शास्त्री ने कहा था कि उनकी बीसीसीआई टूर कमेटी के साथ बात होगी और वो उनसे कहेंगे कि भविष्य के विदेशी दौरों में खिलाड़ियों को वहां की परिस्थितियों से तालमेल बिठाने के लिए ज्यादा वक्त मिले.

इसी बात को दिमाग में रखते हुए मौजूदा इंग्लैंड दौरा इस प्रकार से प्लान किया गया जिससे कि खिलाड़ियों को तैयारियों के लिए वक्त मिल सके. इसके लिए टी20 सीरीज के बाद टीम को आराम भी दिया गया. लेकिन परेशान करने वाली बात ये रही कि जब बीसीसीआई ने शास्त्री और कोहली की मांग के हिसाब से टीम को प्रैक्टिस मैचों का मौका भी दिया, फिर भी खिलाड़ियों ने वनडे सीरीज और टेस्ट के बीच मिले 14 दिन के वक्त में सिर्फ तीन दिन प्रैक्टिस मैच में हिस्सा लेना मुनासिब समझा. इसकी जगह खिलाड़ियों ने आराम को तरजीह दी.

इस बात को लेकर देश के महान क्रिकेटर्स सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली सभी ने चिंता जताई, लेकिन मौजूदा भारतीय टीम ने इनकी सलाह को सुनने की जरूरत नहीं समझी.

ऐसा गैर जिम्मेदाराना बयान पहले किसी ने नहीं...

पहले के दौर में चीजें अलग थीं. तब हमारे दिमाग में ये बात हमेशा रहती थी कि हमें चीजों को देखने, उसमें सुधार करने, कड़ी मेहनत करने के साथ-साथ वरिष्ठ खिलाड़ियों की सलाह का पालन करना है. हम उनसे सीखने की कोशिश करते थे. लेकिन पूर्व में इंग्लैंड के माहौल का अनुभव रखने वाले और वहां सफल भी रहे सीनियर्स की सलाह मानने की जगह ऐसा लगता है कि कोहली की टीम इंग्लैंड की कॉफी के मजे लेकर ही खुश है.

सच तो ये है कि अगर मैं इंग्लैंड का दौरा करने वाले कप्तानों अजित वाडेकर, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, अजहरुद्दीन पर नजर डालता हूं, तो पाता हूं कि किसी भी कप्तान ने इतने अहम दौरे की पूर्व संध्या पर ऐसा गैर जिम्मेदाराना बयान नहीं दिया.

पहले दो टेस्ट में भारतीय प्रदर्शन को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि टीम ने अपने कप्तान के बयान को गंभीरता से लिया है
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हम टेस्ट सीरीज में 2-0 से पीछे हैं जबकि अभी तीन और मैच बाकी है. मुझे खासतौर से इसलिए बुरा लग रहा है क्योंकि ये सारे खिलाड़ी बहुत ही प्रतिभाशाली हैं और इनमें से कई मेरे चीफ सेलेक्टर रहते हुए टीम का हिस्सा बने हैं.

मेरे लिए ये चौंकाने वाली बात है कि इतने प्रतिभाशाली ये खिलाड़ी पिछले दो मैचों में ऐसा लगता है कि खौफ के माहौल में खेल रहे हैं, जैसे कि वो अपना डेब्यू मैच खेल रहे हों.

जैसा कि मैंने पहले कहा था कि क्रिकेट एक क्रूर गेम है. एक ऐसा खेल, जिसमें शानदार अनिश्चितताएं होती हैं. कल का हीरो आज जीरो हो जाता है. मौजूदा इंग्लिश दौरे का सत्तर प्रतिशत हिस्सा पहले ही खत्म हो चुका है और हम अभी भी कॉफी की चुस्कियां ले रहे हैं.

पहले दो टेस्ट में भारतीय प्रदर्शन को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि टीम ने अपने कप्तान के बयान को गंभीरता से लिया है
भारत और इंग्लैंड के बीच पहला टेस्ट
(फोटो: AP)  

किसी को तो जिम्मेदारी लेनी होगी

दोष सिर्फ कोच और कप्तान पर नहीं डाला जा सकता, पूरा दल इंग्लैंड में दिखे पतन के लिए जिम्मेदार है. गावस्कर ने टीम के कई फैसलों की आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि जब टेस्ट से पहले अभ्यास मैचों का आयोजन किया गया था, तो भारतीय टीम के सदस्य इसमें खेलने की जगह यूरोप के दौरे में व्यस्त थे. क्या अब बीसीसीआई इस बात पर टीम से सफाई मांगेगी? मैं इस बात से सहमत हूं कि इतने लंबे दौरे में एक ब्रेक की जरूरत होती है, लेकिन मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि रिकवर करने के लिए एक या दो दिन काफी होता है.

ये बिल्कुल साफ था कि टेस्ट में भारत के खराब प्रदर्शन का कारण उनकी खराब तैयारियां थीं. आप कभी भी परीक्षा में बिना तैयारी के नहीं आ सकते. और फिर ये अंग्रेजी पेपर तो किसी भी सूरत में मुश्किल ही रहना था. समय निकल रहा है. कागज पर तो भारत अभी भी एक मजबूत टीम दिखती है, लेकिन हर मैच और हर हार के साथ कोई भी ये नहीं जानता कि अगले मैच में हमारी टीम टीम क्या होगी और उससे भी ज्यादा अहम ये कि पारी कौन शुरू करेगा?

मैं अपने पहले ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और फीजी आइसलैंड के दौरों को याद करता हूं. ये साढ़े चार महीना लंबा टूर था. लेकिन हमारे कप्तान सुनील गावस्कर ने किसी भी खिलाड़ी को ब्रेक नहीं लेने दिया. पूरे साढ़े चार महीने हम क्रिकेट के बारे में ही सोचते थे, बातें करते थे और खेलते थे.

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जीतने के लिए प्रैक्टिस बहुत जरूरी

1982 में दो महीने के इंग्लैंड दौरे पर जब सुनील गावस्कर फिर से हमारे कप्तान थे, तो किसी को भी ब्रेक लेने की आजादी नहीं थी और इसमें खुद कप्तान भी शामिल थे. फिर से 1984 का पाकिस्तान दौरा भी डेढ़ महीना लंबा था. परंतु किसी ने कोई ब्रेक नहीं लिया. 1986 में दो महीने के इंग्लैंड दौरे पर भी किसी ने भी ब्रेक नहीं लिया और नतीजा ये हुआ कि हम सीरीज जीत गए.

पहले दो टेस्ट में भारतीय प्रदर्शन को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि टीम ने अपने कप्तान के बयान को गंभीरता से लिया है
सुनील गावस्कर
(फोटो: Facebook)
हम लोग प्रैक्टिस करके क्रिकेट खेलते थे लेकिन अब के खिलाड़ी क्रिकेट बिना अभ्यास के खेलते हैं और उसका नतीजा आपके सामने है.

इन दिनों इंटरनेशनल कैलेंडर बहुत ही सख्त है. आज के क्रिकेटर सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मैच खेलते हैं जबकि 70, 80 और 90 के दशक में हम लोग क्लब क्रिकेट, ऑफिस क्रिकेट, घरेलू क्रिकेट और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट सभी एक साथ खेलते थे. इसी बीच मिलने वाले समय में कड़ी प्रैक्टिस भी करते थे.

महान गावस्कर, कपिल, वेंगसरकर, अमरनाथ हों या फिर बाद में अजहर, सचिन, सौरव, वीवीएस लक्ष्मण, कुंबले या द्रविड़, क्रिकेट ने पिछले चार दशकों में बहुत सारे बदलाव देखे हैं, लेकिन अगर आप प्रैक्टिस नहीं करेंगे, तो कभी अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएंगे.

मेरी सलाह है कि आप बातें कम करें, प्रैक्टिस ज्यादा और क्रिकेट खेलें.

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