अगर आप फेसबुक पर दिखने वाले सभी विज्ञापनों पर आंख मूंदकर भरोसा करते हैं, तो सतर्क हो जाइए. फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग ने माना है कि उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आने वाले विज्ञापनों में झूठे दावे और बयान शामिल होते हैं. उन्होंने सोशल नेटवर्क नीतियों का बचाव करते हुए कहा कि लोगों को खुद तय करना होगा कि विज्ञापनों में कितनी सच्चाई और कितना झूठ है.
एफे न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, वॉशिंगटन के जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में अपने भाषण के दौरान जुकरबर्ग ने स्वीकारा कि वह समाज और ऑनलाइन क्षेत्र में हो रहे 'सच की कमी' को लेकर फिक्रमंद हैं. लेकिन साथ ही उन्होंने इस विचार को भी नकार दिया कि उनकी कंपनी और अन्य तकनीकी कंपनियों को सोशल नेटवर्क पर दिए गए विज्ञापनों की सच्चाई की प्रमाणिकता का पता लगाना चाहिए.
ये भी पढ़ें- प्राइवेसी पर फेसबुक फिर कटघरे में,विप्रो से खंगलवाए यूजर्स के डेटा
“मुझे नहीं लगता कि ज्यादातर लोग एक ऐसी दुनिया में रहकर उन चीजों को पोस्ट करना चाहेंगे, जिसे तकनीकी कंपनियां 100 फीसदी सच मानती हैं. जनता को सच्चाई तय करनी चाहिए, न कि तकनीकि कंपनियों को.”- मार्क जुकरबर्ग, फेसबुक के फाउंडर
'विज्ञापनों की प्रमाणिकता तय करना मुश्किल'
जुकरबर्ग ने अपने भाषण में ये भी कहा, "मैं इस बात पर भरोसा नहीं करता कि लोकतंत्र में निजी कंपनियां नेताओं और समाचार को सेंसर करें." उन्होंने कहा कि लोग चुनाव से संबंधित या अन्य चीजों को लेकर फेसबुक पर विज्ञापन देते हैं, अब ऐसे में कंपनियों के लिए यह काफी मुश्किल है कि वे इन विज्ञापनों की प्रमाणिकता का पैमाना कैसे तय करें.
(इनपुट: आईएएनएस)
ये भी पढ़ें- फेसबुक,अमेजन और नेटफ्लिक्स के लिए टेस्टिंग बाजार बन कर उभरा भारत
फेसबुक ला रहा है Threads मैसेजिंग ऐप, क्या निशाने पर है स्नैपचैट?
फेसबुक ने मार्क जुकरबर्ग की सुरक्षा पर खर्च किए 156 करोड़ रुपये
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)