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चंद्रयान-2: ऑर्बिटर, लैंडर, रोवर चांद पर पहुंचकर क्या-क्या करेंगे?

लैंडर एक सितंबर को ऑर्बिटर से अलग होकर 7 को चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा

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22 जुलाई को भारत के चंद्रयान-2 के लॉन्च होने के बाद से ही दुनिया भर की नजरें इस मिशन पर जमी हुई हैं. चंद्रयान में ऑर्बिटर, लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर शामिल हैं. बता दें ऑर्बिटर चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. वहीं लैंडर विक्रम एक सितंबर को आर्बिटर से अलग होकर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की तरफ बढ़ेगा. सात सितंबर को यह चंद्रमा की सतह पर लैंड होगा. अभी तक इस ध्रुव पर कोई भी देश लैंडिंग नहीं कर पाया है.

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फिलहाल, चंद्रयान-2 दूसरी कक्षा में पहुंच गया है. चंद्रयान को अपने टारगेट तक पहुंचने के लिए 5 कक्षाओं से होकर गुजरना पड़ेगा. जानिए चंद्रयान के कुछ अहम हिस्सों के बारे में...

ऑर्बिटर

आर्बिटर चंद्रमा के आसपास घूमेगा. इसका वजन 2,379 किलो है. चंद्रयान-2, बयालू स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (IDSN) और विक्रम लैंडर से संपर्क करने में सक्षम है. ऑर्बिटर की मिशन लाइफ एक साल है.

लैंडर एक सितंबर को ऑर्बिटर से अलग होकर 7 को चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा
ऑर्बिटर
फोटो: isro

लैंडर विक्रम

लैंडर एक सितंबर को ऑर्बिटर से अलग होकर 7 को चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा
लैंडर विक्रम
फोटो: isro

लैंडर विक्रम का नाम मशहूर वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के ऊपर रखा गया है. इसे एक 'लूनार डे' (चंद्रमा का दिन) पर काम करने के लिए बनाया गया है. पृथ्वी के 14 दिन एक 'लूनार डे' के बराबर होते हैं. यह बेंगलुरु में IDSN के साथ-साथ लैंडर और रोवर के साथ भी कम्यूनिकेशन कर सकता है. लैंडर चंद्रमा पर लैंडिंग के लिए बनाया हुआ है.

लैंडर का वजन 1471 किलो है. यह तकरीबन 650 वॉट इलेक्ट्रिक पॉवर जेनरेशन की क्षमता रखता है.

रोवर प्रज्ञान

लैंडर एक सितंबर को ऑर्बिटर से अलग होकर 7 को चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा
प्रज्ञान रोवर
फोटो: isro

प्रज्ञान शब्द संस्कृत से लिया गया है. इसका मतलब होता है बुद्धिमत्ता. 27 किलो का यह प्रज्ञान रोवर एक 6 पहियों वाला रोबोट है. यह 500 मीटर तक चल सकता है. साथ ही खुद की फंक्शन को चलाने के लिए सोलर एनर्जी का भी इस्तेमाल कर सकता है. लेकिन यह केवल लैंडर से कम्यूनिकेट कर सकता है.

चंद्रयान-1 से भारत को जानकारी मिली थी कि चंद्रमा पर पानी है. अब चंद्रयान-2 इस बात का पता लगाएगा कि चंद्रमा के किस इलाके पर कितना पानी है. दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग की बड़ी वजह यही है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बड़ी मात्रा में बर्फ जमी हुई है.

इसके अलावा इस मिशन से चंद्रमा के मौसम के बारे में भी जानकारी मिलेगी. साथ ही हमें चंद्रमा की मिट्टी और उसमें मौजूद खनिजों के बारे में भी पता चल सकेगा.

पढ़ें ये भी: US-चीन चांद तक 4 दिन में पहुंचे, चंद्रयान 2 को क्यों लगेंगे 48 दिन

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