चौतरफा आलोचना से घिर रहे दिग्गज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Facebook की पेरेंट कंपनी Meta ने अपने Facial Recognition System को बंद करने का फैसला लिया है. फेशियल रिकगनिशन सॉफ्टवेयर सोशल नेटवर्क पर पोस्ट की गई तस्वीरों और वीडियो में लोगों की ऑटोमैटिक पहचान करते हैं. फेसबुक में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के वाइस प्रेसीडेंट जेरोम पिसेंटी ने एक ब्लॉग पोस्ट में इस बात की जानकारी दी है.
फेसबुक ने कहा है कि वो इस सॉफ्टवेयर के जरिये इकट्ठा किए गए डेटा को भी डिलीट करने के प्लान में है.
फेसबुक क्यों बंद कर रहा है फेशियल रिकगनिशन सिस्टम?
1. Meta ने सॉफ्टवेयर बंद करने पर क्या कहा?
पिसेंटी ने ब्लॉग में लिखा है कि दुनिया का सबसे बड़ा सोशल नेटवर्क आने वाले हफ्तों में फेशियल रिकगनिशन सिस्टम बंद कर देगा. कंपनी ऐसा अपने प्रोडक्ट्स में इस टेक्नोलॉजी को सीमित करने के प्रयास में करेगी. उन्होंने कहा, "हम अभी भी फेशियल रिकगनिशन टेक्नोलॉजी को एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में देखते हैं."
कंपनी फेशियल रिकगनिशन टेक्नोलॉजी पर अपना काम जारी रखेगी, और अपने दूसरे प्रोडक्ट्स में इसका इस्तेमाल कर सकती है, जैसे लोगों को उनके लॉक हुए प्रोफाइल तक पहुंच प्राप्त करना या पर्सनल डिवाइस को अनलॉक करने में मदद करना.
फेसबुक ने कहा है कि उसे रेगुलेटर्स से स्पष्ट नियम नहीं मिले हैं कि इसका कैसे इस्तेमाल करना है.
फेसबुक के रोजाना एक्टिव यूजर्स में से एक तिहाई से ज्यादा ने सोशल मीडिया साइट पर फेशियल रिकगनिशन सेटिंग का विकल्प चुना है. इस सिस्टम के बंद होने से 1 अरब से ज्यादा लोगों के फेशियल रिकगनिशन टेंपलेट डिलीट हो जाएंगे. कहा जा रहा है कि ये प्रक्रिया दिसंबर तक पूरी हो सकती है.
Expand2. क्यों बंद हो रहा है फेशियल रिकगनिशन सिस्टम?
फेशियल रिकगनिशन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को लेकर दुनिया के कई देशों में चिंता बढ़ रही है. इसके आलोचकों का कहना है कि इससे लोगों की प्राइवेसी में खलल पड़ेगा और इसका इस्तेमाल सर्विलांस के लिए भी किया जा सकता है.
अपने ब्लॉग पोस्ट में पिसेंटी ने कहा, "हर नई टेक्नोलॉजी अपने साथ लाभ और चिंता, दोनों की संभावनाएं लेकर आती है, और हम सही संतुलन तलाश करना चाहते हैं. फेशियल रिकगनिशन के मामले में, समाज में इसकी लंबी भूमिका पर खुले तौर पर बहस करने की जरूरत है, और उन लोगों के बीच जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे."
फेसबुक ने साल 2010 में फेशियल रिकगनिशन की शुरुआत की थी. ये सॉफ्टवेयर लोगों को फोटो और वीडियो में 'टैग सजेशन' देता था, और अगर किसी दूसरे यूजर ने उनकी फोटो अपलोड की है, तो उसे लेकर अलर्ट भी करता था. 2017 में कंपनी ने लोगों को इस सिस्टम से हटने का ऑप्शन दिया. 2019 में फेसबुक ने इस फीचर को डिफॉल्ट बंद कर दिया, लेकिन यूजर्स के पास इसे शुरू करने का ऑप्शन था.
Expand3. फेसबुक व्हिसलब्लोअर ने क्या खुलासे किए थे?
फेसबुक व्हिसलब्लोअर Frances Haugen ने कंपनी पर हेट स्पीच और फेक न्यूज को बढ़ावा देने के आरोप लगाते हुए कई इंटरनल डॉक्यूमेंट्स जारी किए हैं. 37 साल की डेटा साइंटिस्ट Haugen ने आरोप लगाया है कि फेसबुक ने बार-बार सुरक्षा के ऊपर कंपनी के प्रॉफिट को चुना. उन्होंने कहा कि कंपनी ने "अपने प्लेटफॉर्म पर हेट स्पीच और फेक न्यूज पर रोक लगाने के लिए की गई प्रोग्रेस के बारे में जनता से झूठ बोला."
Expand4. भारत में फेसबुक पर क्या हैं आरोप?
कुछ दिनों पहले, कंपनी के इंटरनल डॉक्यूमेंट में सामने आया था कि फेसबुक ने भारत में हेट स्पीच और फेक न्यूज को बढ़ावा दिया. फेसबुक ने दो साल पहले भारत में टेस्टिंग के लिए एक अकाउंट बनाया था. इस अकाउंट के जरिये फेसबुक ने जाना कि कैसे उसका खुद का एल्गोरिदम हेट स्पीच और फेक न्यूज को बढ़ावा दे रहा है.
इस अकाउंट को शुरू करने के तीन हफ्तों के अंदर ही इसकी फीड पर फेक न्यूज और एडिटेड तस्वीरों की बाढ़ आ गई.
पिछले हफ्ते, फेसबुक के फाउंडर मार्क जकरबर्ग ने कंपनी का नाम बदलकर मेटा प्लेटफॉर्म इंक करने की घोषणा की थी. ये बदलाव पेरेंट कंपनी के नाम में हुआ है, आम यूजर्स के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का नाम वही रहेगा. वहीं, इंस्टाग्राम और WhatsApp को भी यूजर्स उन्हीं नामों से जानेंगे.
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Meta ने सॉफ्टवेयर बंद करने पर क्या कहा?
पिसेंटी ने ब्लॉग में लिखा है कि दुनिया का सबसे बड़ा सोशल नेटवर्क आने वाले हफ्तों में फेशियल रिकगनिशन सिस्टम बंद कर देगा. कंपनी ऐसा अपने प्रोडक्ट्स में इस टेक्नोलॉजी को सीमित करने के प्रयास में करेगी. उन्होंने कहा, "हम अभी भी फेशियल रिकगनिशन टेक्नोलॉजी को एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में देखते हैं."
कंपनी फेशियल रिकगनिशन टेक्नोलॉजी पर अपना काम जारी रखेगी, और अपने दूसरे प्रोडक्ट्स में इसका इस्तेमाल कर सकती है, जैसे लोगों को उनके लॉक हुए प्रोफाइल तक पहुंच प्राप्त करना या पर्सनल डिवाइस को अनलॉक करने में मदद करना.
फेसबुक ने कहा है कि उसे रेगुलेटर्स से स्पष्ट नियम नहीं मिले हैं कि इसका कैसे इस्तेमाल करना है.
फेसबुक के रोजाना एक्टिव यूजर्स में से एक तिहाई से ज्यादा ने सोशल मीडिया साइट पर फेशियल रिकगनिशन सेटिंग का विकल्प चुना है. इस सिस्टम के बंद होने से 1 अरब से ज्यादा लोगों के फेशियल रिकगनिशन टेंपलेट डिलीट हो जाएंगे. कहा जा रहा है कि ये प्रक्रिया दिसंबर तक पूरी हो सकती है.
क्यों बंद हो रहा है फेशियल रिकगनिशन सिस्टम?
फेशियल रिकगनिशन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को लेकर दुनिया के कई देशों में चिंता बढ़ रही है. इसके आलोचकों का कहना है कि इससे लोगों की प्राइवेसी में खलल पड़ेगा और इसका इस्तेमाल सर्विलांस के लिए भी किया जा सकता है.
अपने ब्लॉग पोस्ट में पिसेंटी ने कहा, "हर नई टेक्नोलॉजी अपने साथ लाभ और चिंता, दोनों की संभावनाएं लेकर आती है, और हम सही संतुलन तलाश करना चाहते हैं. फेशियल रिकगनिशन के मामले में, समाज में इसकी लंबी भूमिका पर खुले तौर पर बहस करने की जरूरत है, और उन लोगों के बीच जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे."
फेसबुक ने साल 2010 में फेशियल रिकगनिशन की शुरुआत की थी. ये सॉफ्टवेयर लोगों को फोटो और वीडियो में 'टैग सजेशन' देता था, और अगर किसी दूसरे यूजर ने उनकी फोटो अपलोड की है, तो उसे लेकर अलर्ट भी करता था. 2017 में कंपनी ने लोगों को इस सिस्टम से हटने का ऑप्शन दिया. 2019 में फेसबुक ने इस फीचर को डिफॉल्ट बंद कर दिया, लेकिन यूजर्स के पास इसे शुरू करने का ऑप्शन था.
फेसबुक अपने इस सॉफ्टवेयर के कारण पहले भी मुसीबत में पड़ चुका है. पिछले साल फेसबुक ने अमेरिका के इलिनॉयस में कुछ लोगों को 650 मिलियन डॉलर का भुगतान कर 2015 से चले आ रहे एक मुकदमे को सेटल किया था. कंपनी पर आरोप था कि इसकी फेशियल रिकगनिशन टेक्नोलॉजी के जरिये यूजर की मर्जी के बगैर स्कैन बनाए जा रहे हैं और ये राज्य के बायोमेट्रिक इंफॉर्मेशन प्राइवेसी कानून का उल्लंघन करती है.
सॉफ्टवेयर को जब 2011 में यूरोप में शुरू किया गया था, तब भी वहां सवाल उठे थे. वहां के डेटा सुरक्षा अधिकारियों ने इस कदम को अवैध बताया था, और कहा था कि किसी व्यक्ति की तस्वीरों का विश्लेषण करने और किसी के चेहरे के यूनीक पैटर्न को निकालने के लिए कंपनी को सहमति की जरूरत होगी.
फेसबुक व्हिसलब्लोअर ने क्या खुलासे किए थे?
फेसबुक व्हिसलब्लोअर Frances Haugen ने कंपनी पर हेट स्पीच और फेक न्यूज को बढ़ावा देने के आरोप लगाते हुए कई इंटरनल डॉक्यूमेंट्स जारी किए हैं. 37 साल की डेटा साइंटिस्ट Haugen ने आरोप लगाया है कि फेसबुक ने बार-बार सुरक्षा के ऊपर कंपनी के प्रॉफिट को चुना. उन्होंने कहा कि कंपनी ने "अपने प्लेटफॉर्म पर हेट स्पीच और फेक न्यूज पर रोक लगाने के लिए की गई प्रोग्रेस के बारे में जनता से झूठ बोला."
भारत में फेसबुक पर क्या हैं आरोप?
कुछ दिनों पहले, कंपनी के इंटरनल डॉक्यूमेंट में सामने आया था कि फेसबुक ने भारत में हेट स्पीच और फेक न्यूज को बढ़ावा दिया. फेसबुक ने दो साल पहले भारत में टेस्टिंग के लिए एक अकाउंट बनाया था. इस अकाउंट के जरिये फेसबुक ने जाना कि कैसे उसका खुद का एल्गोरिदम हेट स्पीच और फेक न्यूज को बढ़ावा दे रहा है.
इस अकाउंट को शुरू करने के तीन हफ्तों के अंदर ही इसकी फीड पर फेक न्यूज और एडिटेड तस्वीरों की बाढ़ आ गई.
पिछले हफ्ते, फेसबुक के फाउंडर मार्क जकरबर्ग ने कंपनी का नाम बदलकर मेटा प्लेटफॉर्म इंक करने की घोषणा की थी. ये बदलाव पेरेंट कंपनी के नाम में हुआ है, आम यूजर्स के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का नाम वही रहेगा. वहीं, इंस्टाग्राम और WhatsApp को भी यूजर्स उन्हीं नामों से जानेंगे.
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