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''अफगानिस्तान में जो हो रहा है वो खौफनाक है''- बेबस हैं भारत में मौजूद अफगानी

Afghanistan की राजधानी Kabul में हालात बेकाबू, नागरिक खतरे में

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कल्पना कीजिए, आपके देश के कुछ हिस्सों को एक विद्रोही कट्टरपंथी समूह ने कब्जा कर लिया हो. आप बिना पुरुष के अपने घर से बाहर नहीं निकल सकते, हर घर के एक पुरुष को इस समूह में शामिल होना है और हथियार उठाना है, उन्हें अपना खाना देना है, उनके सभी आदेशों का पालन करना है. हर दिन बम विस्फोट, लोगों की मौत, उत्पीड़न. खौफनाक, है ना? यही आज अफगानिस्तान (Afghanistan) की सच्चाई है.

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आज लगभग दो दशक बाद अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो सैनिकों की वापसी हो रही है. तालिबान की सेना तेजी से नए क्षेत्रों पर कब्जा करती जा रही है. पूरे अफगानिस्तान में युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है और अफगान नागरिकों की जान हर पल खतरे में हैं. एक वीडियो में फंसे हुए लोगों में से एक नागरिक बताता है कि एक तालिबान कमांडर का भाई अजमल आया और मेरी बेटी को ले गया, उसने मेरे साथ मारपीट की. यहां हमारी कोई सुनने वाला नहीं है,कोई मदद करने वाला नहीं है. जब हम मदद मांगते हैं तो हमारी कोई नहीं सुनता. हमको नहीं समझ आता कि क्या करना है कहां जाना है. यहां हमारी आवाज को सुनने वाला कोई नहीं है.

अफगानिस्तान के सिविल एक्टिविस्ट निसार अहमद शिरजई कहते हैं कि यह विडियो मजार-ए-शरीफ का है. वे सवाल कर रहे हैं कि ये किस तरह का इस्लाम है, ये कैसी शरीयत है.
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किसी भी वक्त ली जा सकती है अफगानियों की जान

दिल्ली में ठहरे हुए एक अफगानी शरणार्थी कहते हैं कि आप नहीं जानते अफगानियों के हालात हैं. अफगानी कभी भी मारे जा सकते हैं. वे आज, 10 मिनट, 1 घंटे, एक महीने या एक दिन के बाद मारे जा सकते हैं, उनकी मौत निश्चित है.

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 की पहली तिमाही में अफगानिस्तान में 30 फीसदी तक नागरिकों की मौत हुई थी. 2009 में 1052 मौतें, जून 2021 में 1659 मौतें हुई थीं. अगस्त 2021 के पहले पांच दिनों में 115 अफगान सुरक्षा बल और 58 नागरिक मारे गए थे
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अफगान आबादी का 75 फीसदी युवा 35 वर्ष से कम उम्र का हैं. अफगानिस्तान के युवा खुद को सिविल वॉर के लिए तैयार कर रहे हैं.

अफगानिस्तान के एक 25 वर्षीय युवा सलमान कहते हैं कि आप काबुल शहर को देख रहे हैं, यहां सबकुछ सामान्य और सुरक्षित दिखता है लेकिन सामान्य नहीं है. अफगानिस्तान के हर कोने में तालिबान से युद्ध हो रहा है. तालिबान ने कुछ दिन पहले ही काबुल में रक्षामंत्री के घर पर हमला किया था, तो फिर ये शहर अन्य नागरिकों के लिए कैसे सुरक्षित हो सकता है.

काबुल, हेरात, जलालाबाद की सड़कों पर नागरिक अपना विरोध कर रहे हैं. 'अल्लाहु अकबर' तालिबान के खिलाफ चुनौती का नारा बन गया है.
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जो पीढ़ी आज विरोध कर रही है वो तालिबान के बाद के युग में पली-बढ़ी है. उन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी, महिलाओं को नौकरी और शिक्षा हासिल करते देखा है. यहां तक ​​कि उन्होंने चुनाव में भी हिस्सा लिया है, लेकिन पिछले कई हफ्तों के घटनाक्रम, अराजकता के खतरे और पहले जैसे हालात में देश को जाता देख अफगानिस्तान के युवाओं में गुस्सा, निराशा है.

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दिल्ली में कई अफगान शरणार्थियों के परिवार अफगानिस्तान में फंसे हैं क्योंकि सीमाएं बंद हैं. भारतीय सरकार केवल मेडिकल वीजा जारी कर रही है. उनके पास जाने के लिए दूसरा देश नहीं है ये बहुत बड़ी समस्या है.

दिल्ली में Afghan Civil Activist निसार अहमद सिरजाई रुके हुए हैं. शिरजई अफगानिस्तान के कुछ हालिया वीडियो से वहां के हालात के बारे में बताते हैं औ कहते हैं तालिबान इस्लाम नहीं है, तालिबान इस्लाम के खिलाफ है.

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