डेटा प्रोटेक्शन यानी आपका डेटा, आपका हक. कहने में तो बड़े भारी शब्द हैं, इससे लगेगा कि वाह हमारा डेटा सुरक्षित तिजौरी में पहुंच गया है. लेकिन हकीकत ये है कि इसमें वही फर्क है जो ‘कहने और करने में होता है’.
पिछले दिनों आपने इस पर काफी बहस सुनी होगी और अब जस्टिस श्रीकृष्ण कमेटी की एक रिपोर्ट आ गई है जिसमें सिफारिश की गई है कि एक कानून बने, जिसके तहत आप और हम जो डेटा जगह-जगह शेयर करते हैं उसकी हिफाजत हो और आपका स्वामित्व उस पर बना रहे. लोग कहते हैं कि ये बड़ा 'लैंडमार्क सुझाव' आया है, बहुत सारे लोग कहते हैं कि इसे लैंडमार्क सुझाव नहीं कहना चाहिए बल्कि ये 'बेबी स्टेप' हैं. जस्टिस श्रीकृष्ण ने एक अच्छा गाइडिंग प्रिसिंपल सेटअप किया है लेकिन दिल्ली अभी दूर है.
जो सबसे बड़े विवादास्पद मुद्दे हैं वो ये हैं कि डेटा की ओनरशिप किसके पास रहेगी? कंसेंट क्या माना जाएगा और वो कब वापिस लिया जा सकता है? लोगों के ऊपर सरकार की ताका-झांकी को कैसे रोका जाए ताकि प्राइवेसी पूरी तरह से बरकरार रह सके क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार प्राइवेसी को पूरी तरह से सेफ करे क्योंकि ये किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार है .
दरअसल इस रिपोर्ट को जिन लोगों ने बारीकी से पढ़ा है वो बताते हैं कि पर्सनल डेटा क्या है वो सरकार तय करेगी. हालांकि इस रिपोर्ट में ये बता दिया गया है कि सेंसिटिव पर्सनल डेटा क्या है. यानी आपका धर्म, जाति, समुदाय, यौन रुझान, सेहत, बायोमेट्रिक जानकारियां. इस तरह की 8 या 9 चीजें हैं जिन्हें सेंसिटिव पर्सनल डेटा माना जाएगा और वो बगैर आपकी इजाजत के कोई भी प्राइवेट पार्टी आपस में प्रयोग, लेन-देन या शेयर नहीं कर सकेंगी. हालांकि इसमें बहुत सारी शर्तें लागू होती हैं. बहुत सारी परिस्थितियों में आपकी सहमति की जरूरत नहीं पड़ेगी और लोग इस डेटा का इस्तेमाल कर सकेंगे. उदाहरण के लिए इसे गुप्त कर दिया जाएगा यानी आपका नाम नहीं रहेगा लेकिन ट्रेंडसेंटिग के लिए वो डेटा किसी को दिया जा सकता है.
इस रिपोर्ट की पहली रीडिंग से विशेषज्ञ इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि गैर सरकारी संस्थाओं और व्यक्तियों के बीच में शायद नागरिक की ताकत बढ़ाने की सिफारिश इस रिपोर्ट में की गई है लेकिन जहां तक सरकार और नागरिक का सवाल है तो उसमें नागरिक का बहुत ज्यादा सशक्तीकरण नहीं हो रहा है. क्योंकि स्टेट के पास पुलिस पावर है और उसको लगता है कि जो भी चीज जरूरी है, जिसके लिए आपके काम में ताका-झांकी, आपकी निजी जानकारी में ताका-झांकी की जा सकती है, स्टेट पुलिस पावर के तहत उनको वो हासिल है और भले ही डेटा प्रोटेक्शन का बहुत ही कड़ा कानून आ जाए लेकिन इस सर्वेलांंस की छूट सरकार को फिर भी रहेगी.
ये भी पढ़ें- पर्सनल डेटा कैसे रहेगा सेफ? जानिए,बीएन कृष्णा कमेटी की सिफारिशें
इंटेलिजेंस एजेंसियों और विदेशी कंपनियों की जवाबदेही?
ये विवाद का सबसे बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है और इसमें इस बात की गुंजाइश बहुत कम है क्योंकि जिस तरह का राजनीतिक माहौल अभी है कि सिटिजन के जीवन में ताका-झांकी के लिए इंटेलिजेंस एजेंसियों के पास जो पावर हैं और कोई जवाबदेही नहीं है, इसको किसी तरह कानून के दायरे में बांधा जा सके और उन्हें जवाबदेह बनाया जा सके. इसी प्रकार इंटरनेट जो पूरी दुनिया से जुड़ा हुआ एक तंत्र है. इसमें ज्यादातर विदेशी कंपनियां सक्रिय हैं और डेटा ओनरशिप की बात करें तो सरकारों से ज्यादा ताकत उनके पास है. ऐसे में यहां पर एक प्रस्ताव रखा गया है कि जो यूजर डेटा भारत का है वो भारत में ही रहेगा. उसकी एक कॉपी भारत में रहेगी यानी विदेशी कंपनियां बाहर अपने सर्वर पर भी डेटा रख सकते हैं लेकिन यहां भी डेटा रखना होगा. ये इस बात की गारंटी नहीं देता कि जो बाहर डेटा पड़ा है, उदाहरण के लिए आपका कोई ईमेल अकाउंट या आपने किसी ई-कॉमर्स साइट पर ट्रांजैक्शन किया हो या आपने कोई दवा खरीदी हो तो ऐसी चीजों के बारे में बाहर जो सूचना पड़ी हुई है उसका मिसयूज या यूज का पता लगाने का कोई तरीका नहीं है. भारत में अगर उसका कोई नियम तोड़ा जाएगा तो उस केस में धर-पकड़ क्या आसान है?
लगता है कि बहुत मुश्किल है और आने वाले दिनों में जब सरकार कानून बनाकर सामने रखेगी तो उस पर बारीकी से नजर डालनी पड़ेगी. उदाहरण के लिए प्रत्यर्पण संधि में क्या होता है, आपके देश में जो गुनाह है अगर वो हमारे देश में गुनाह होगा तो हम आपसे जानकारियां शेयर करेंगे. ये सरकारें एक-दूसरे को कहती हैं और उसके लिए आपको सबसे अलग-अलग समझौते करने पड़ेंगे. लेकिन, उस डेटा लेने वाली कंपनी को आप बाध्य नहीं कर सकते क्योंकि आपके अधिकार क्षेत्र में वो काम नहीं कर रहा है. भारत में जो कानून व्यवस्थाएं चलती हैं, कानून के जो हाल हैं, उसमें ये फैंसी साउंडिंग कानून अगर बन भी गया तो उसेे लागू करना और सरकार की नीयत कि नागरिक का इसमें नुकसान न हो, इस जज्बे की हम कमी देखते हैं.
आधार के बारे में रिपोर्ट में क्या है?
कानून में कुछ नहीं कहा गया है लेकिन प्रस्ताव के तौर पर ये कहा गया है कि आधार को और ज्यादा स्वायत्त बनाया जाए. एक रेगुलेटर होगा उसके तहत आधार के बारे में भी कोई मसला हो तो उसे भी विचार-विमर्श के लिए लाया जा सकता है. लेकिन, एक तरफ आधार को और ज्यादा मजबूत किया जाएगा तो वहीं दूसरी तरफ उसकी जवाबदेही एक रेगुलेटर अथॉरिटी के साथ बनाई जरूर जाएगी लेकिन आधार चूंकि सरकार का अपना एक संगठन है इसलिए उसके यूज, मिसयूज को लेकर पिछले दिनों जो विवाद हुए हैं उस पर साफ तौर पर कोई कानून कैसा बने, इसकी सिफारिशें इस जस्टिस श्रीकृष्ण की रिपोर्ट में नहीं हैं.
ये भी पढ़ें- फेसबुक, गूगल नहीं बेच सकते आपका डेटा, TRAI ने कहा- यूजर इनके मालिक
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)