वीडियो एडिटर: विशाल कुमार
महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स में जो हुआ है, वो एक शॉक और थ्रिलर की तरह है. उद्धव ठाकरे जब अपनी सरकार बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, तभी सुबह-सुबह देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार की सरकार बन गई. लेकिन महाराष्ट्र की सियासत में हुए इस बड़े घटनाक्रम के शोर ने कई बड़े सवाल दबा दिए हैं.
- संविधान का क्या हुआ?
- लोकतंत्र का क्या हुआ?
- विधानसभा में बहुमत कैसे साबित होगा?
- दल-बदल विरोधी कानून का इसमें कैसे दुरुपयोग हुआ?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ‘हर कीमत पर सरकार बनाने वाली’ बीजेपी शांत बैठ गई, देवेंद्र फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया और महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था.
इधर, शिवसेना बागी और शरद पवार एक्टिव हो गए थे. शिवसेना के एनसीपी के साथ जाने और इस एक महीने में हुए इवेंट्स से ऐसा लगने लगा था कि शायद महाराष्ट्र में इस बार कोई दूसरी कहानी बन जाए.
कहां हुई विपक्ष से गलती?
विपक्ष नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पॉलिटिकल प्लेबुक को भूल गया है. इस घटना का सबसे बड़ा सबक यही है कि विपक्ष को बीजेपी की प्लेबुक को दोबारा पढ़कर रट लेना चाहिए. ये प्लेबुक कहता है कि बीजेपी की लीडरशिप ने जो नतीजा तय कर लिया है वो होकर रहता है.
BJP ने पवार की कमजोर कड़ी का फायदा उठाया
जब बीजेपी को लगा कि शिवसेना-एनसीपी मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना सकती है, तब बीजेपी ने पवार की कमजोर कड़ी में सेंध मारी. अजित पवार की अपने परिवार से ही कुछ समस्याएं रही हैं. अजित पवार, अपने भतीजे रोहित पवार के करजत सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने से नाखुश थे. कुछ और मुद्दों पर भी शायद परिवार में फूट थी. बीजेपी ने शरद पवार की इसी कमजोर कड़ी यानी अजित पवार का फायदा उठाया.
पवार सरकार बनाएं या घर बचाएं?
शरद पवार कह तो रहे हैं कि उनके पास नंबर है और वो सरकार बनाएंगे लेकिन उनके सामने समस्या ये है कि वो सरकार बनाने में ध्यान लगाएं, या अपना परिवार बचाएं. क्योंकि इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि कुछ विधायक टूट जाएं.... एनसीपी को टूटने से बचाना पवार का सबसे बड़ा चैलेंज है.
चकमा देकर पॉलिटिक्स के शतरंज में मात दे देना, ये काम बीजेपी ने अच्छे से कर लिया है. अब ये देखना कि लोकतंत्र के लिए ये कितना अशुभ संकेत है, ये सारा खेल आने वाले समय में दिखेगा. विपक्ष के पास अब बीजेपी से लड़ने के लिए न ऊर्जा और न ही माद्दा.
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