ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या अमेरिकी चुनाव में धांधली कर सकते हैं डोनाल्ड ट्रंप?

क्या अमेरिकी चुनाव को हाईजैक किया जा सकता है, क्या मुमकिन है बूथ कैप्चर?

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीडियो एडिटर: कुणाल मेहरा

वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी

क्या अमेरिका ( America) में लोकतंत्र हाईजैक हो सकता है? शायद नहीं, लेकिन कोशिश करने में क्या हर्ज है. डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) दोबारा राष्ट्रपति बनने के लिए यही कोशिश रहे हैं. इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या चुनावों में धांधली हो सकती है? और हां तो अमेरिकन स्टाइल में बूथ कैसे लूटा जा सकता है और पूरे चुनाव को कैसे चुराया जा सकता है? और ये फ्रॉड कौन करेगा?

क्या अमेरिकी चुनाव को हाईजैक किया जा सकता है, क्या मुमकिन है बूथ कैप्चर?
रिपब्लिकन (Republican Party) और डेमोक्रेटिक पार्टी (Democratic Party) के नेता दोनों यही इल्जाम लगा रहे हैं कि सामने वाला फ्रॉड करेगा.
(फोटो:कामरान/क्विंट हिंदी)

कौन कर सकता है धांधली?

इस चुनाव का सबसे बड़ा फोकस है पोस्टल बैलट यानी मेल इन वोटिंग. डोनॉल्ड ट्रंप मार्च महीने से हल्ला मचा रहे हैं कि पोस्टल बैलेट में डेमोक्रेटिक पार्टी धांधली करेगी हालांकि इसका उनके पास कोई सबूत नहीं है.

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने एक ताजा रिसर्च में बताया है कि पोस्टल बैलट वोटिंग पार्टी निरपेक्ष है. इससे किसी पार्टी के वोट शेयर पर कोई फर्क नहीं पड़ता और अगर टर्न आउट ज्यादा हो तो भी वोट शेयर में मामूली फर्क पड़ता है जो किसी भी पार्टी के पक्ष में हो सकता है.

वोटर सप्रेशन के क्या तरीके हैं? वोटर लिस्ट से नाम काट देना एक तरीका है. ज्यादातर नाम ब्लैक वोटरों के काटे जाते हैं. एंटी इनकंबेंसी के चलते ट्रंप पोस्टल वोटिंग को दबाना चाहते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अमेरिका में 'बूथ कैप्चर' का तरीका

1.वोटर लिस्ट से नाम काट देना

2.पोस्टल वोटिंग को दबाना

ट्रम्प ने जून महीने में अपने एक डोनर लुइस डिजॉय को US पोस्टल सर्विस (US Postal Service) का चीफ बना दिया था. जिसके बाद ऐसी खबरें आयी कि बॉक्स हटाए जा रहे हैं और डाक छांटने वाली मशीनें हटायी जा रही है ताकि मेल डिलीवरी और गिनती में देर हो जाए. ये सब करने के लिए बहाना बनाया गया कि पोस्टल सर्विस के पास फंड की कमी है. जब इस पर बहुत शोर मचा तो डिजॉय को कहना पड़ा कि पोस्टल सर्विस में अब वो नवंबर तक कोई बदलाव नहीं करेंगे. हालांकि खतरा ये है कि जो मशीने हटी हैं जो पोस्ट बॉक्स हटे है, उनको दुबारा नहीं लगाया जा रहा.

मजेदार बात ये है कि ट्रंप एक तरफ तो पोस्टल बैलेट का विरोध कर रहे हैं लेकिन खुद फ्लोरिडा में पोस्टल वोटिंग की रिक्वेस्ट भेज चुके हैं. वो पहले भी इसी तरीके से वोट करते रहे हैं.

चुनाव में गड़बड़ी का तीसरा तरीका है पोलिंग सेंटर में वोटिंग प्रक्रिया को धीमा कर दिया जाए ताकि कतारें लंबी हो जाए और लोग अपना समय बचाने के लिए वोट डालने से हतोत्साहित हो जाएं. इस साल कोरोना के कारण पोलिंग सेंटर में आकर वोट डालने वालों की तादाद काफी कम हो सकती है है

3.वोटिंग धीमी कर दी जाए

गड़बड़ी का अगला मोर्चा है जब काउंटिंग होती है तब बैलट में गड़बड़ी बताकर वोटों को अवैध घोषित करवाना है और विवाद बढ़ जाए तो मुकदमा दर्ज कराना.

4.मुकदमेबाजी

यहां ध्यान देने की बात ये है कि अमेरिका में रिजल्ट का दिन तीन नवंबर को है. पॉपुलर वोट के आधार पर कौन हारा कौन जीता ये उस दिन तय हो जाता है लेकिन दरअसल राष्ट्रपति का चुनाव तो इलेक्टोरल कॉलेज से होता है. अलग अलग राज्यों में इसकी गिनती में हो सकता है कि इस बार लंबा वक्त लग जाए इसलिए तीन नवंबर को जो रिजल्ट आएगा उसको फाइनल मानना ग़लत हो सकता है. ट्रंप की कोशिश है कि जो बैटल ग्राउंड राज्य हैं कांटे की लड़ाई वाले राज्य हैं वहां काउंटिंग में खूब झमेलेबाजी की जाए. और अगर ऐसा लगता है कि वो हार रहे हैं तो दर्जनों मुकदमे दर्ज करवाकर फाइनल रिजल्ट में देर कराई जाए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बड़ी अजीब बात ये है कि अमेरिका कि चुनाव व्यवस्था काफी अलग और काफी पुराने किस्म की है. वहां चुनाव राज्य सरकारें कराती हैं. कहीं डेमोक्रैट सरकार है तो कहीं रिपब्लिकन सरकार है. तीसरी कैटिगरी है वो जहां विधायिका एक पार्टी की और गवर्नर दूसरी पार्टी का. वहां खींचतान और मुकदमेबाजी चलती रहती है. पेपर बैलेट और लोकल मैनेजमेंट के कारण अमेरिका में वोटरों का कोई नेशनल डेटाबेस नहीं है. यानी अगर जहां कोई गड़बड़ी होती है तो वे वहीं तक सीमित है.

अमेरिकी सिस्टम की बुरी बात ये है कि राज्यों में और काउंटिंग लोकल स्तर पर भी कायदे अलग अलग है वोटर रजिस्ट्रेशन की तारीख अलग अलग है. कहीं सबको पोस्टल बैलेट भेजा जाता है. कहीं सिर्फ मांगने पर दिया जाता है. कहीं जल्दी वोटिंग शुरू होती है कहीं देर से. कुछ राज्य यूनिवर्सल वोटिंग की इजाजत देते हैं और कुछ राज्य सिर्फ अबसेंटी वोटिंग की. यानी आपको वजह बतानी पड़ती है कि क्यों वोट करने नहीं आ सकते यात्रा पर हैं चुनावी ड्यूटी पर हैं या बीमार हैं.

एक दिक्कत और है- वोटर रजिस्ट्रेशन से लेकर पोस्टल बैलट तक अलग अलग किस्म के फॉर्म है. अलग अलग किस्म के आइडेंटिटी प्रूफ मांगे जाते हैं. कहीं नोटरी के दस्तखत चाहिए तो कहीं गवाह. दूर दराज इलाकों में कई लोगों पास प्रिंटर नहीं होते और कई यंग वोटर ऐसे हैं जो इतने डिजिटल है कि उन्हें पेपर वर्क में दिक्कत होती है

जटिल अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया

  • राज्य सरकारें कराती हैं चुनाव
  • राज्यों में अलग-अलग पार्टियां
  • नेशनल वोटर डेटाबेस नहीं
  • राज्यों में काउंटिंग के तरीके अलग
  • राज्यों में एक साथ वोटर रजिस्ट्रेशन नहीं
  • पोस्टल वोटिंग के कायदे अलग
  • कहीं जल्दी वोटिंग शुरू, कहीं देर से
  • कहीं यूनिवर्सल वोटिंग
  • कहीं बतानी पड़ती है, क्यों नहीं देंगे वोट
  • अलग-अलग वोटिंग फॉर्म
  • वोटिंग के लिए अलग-अलग पहचान पत्र
  • कहीं प्रिंटर की कमी, कहीं पेपर वर्क मुश्किल

ट्रंप और बाइडेन की रेस में चुनावी सर्वेक्षणों में अभी बाइडेन आगे हैं लेकिन मुकाबला जबरदस्त है फे़डरल सरकारी तंत्र ट्रंप के हाथ में है और अपनी सत्ता बचाने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ट्रंप और बाइडेन के बीच तगड़ा मुकाबला

हाई टर्न आउट से ट्रंप डरे हुए है. इसीलिए उनका कैंपेन काफी जहरीला होता जा रहा है. नस्लभेदी हिंसा एक बड़ा हथियार है. डर का माहौल बनाया गया है और चुनाव के दिन और पोलिंग के दौरान ट्रंप हथियारबंद फोर्स तैनात करने की बात कर रहे हैं. मकसद एक ही है- नाराज लोग वोट ना डाल पाएं.

किस हद तक जाएंगे ट्रंप?

  • जहरीला कैंपेन
  • नस्लभेद हिंसा
  • डर का माहौल
  • वोटिंग में फोर्स

फ्री और फेयर वोटिंग के लिए अमेरिका में सिविल सोसाइटी खूब सक्रिय रहती है लेकिन इस बार एक नई बात हुई है वो ये कि देश का कॉर्पोरेट सेक्टर बड़े पैमाने पर वोटर जागृति अभियान पर काम कर रहा है. उनका एक महासंगठन बना है - सिविल अलायंस जिसमें अभी तक 125 कंपनियों ने ये संकल्प किया है कि वो अपने कर्मचारियों को वोट डालने के लिए प्रेरित करेंगे और उन्हें पेड छुट्टी देंगे. इन सवा सौ कंपनियों में करीब 21,00,000 कर्मचारी काम करते हैं.

आम तौर पर बिजनस कम्यूनिटी राजनीति में सीधी भूमिका नहीं निभाती, लेकिन इस बार वो बेचैन है. एक डाटा पॉइंट देखिए - कई सर्वेक्षण हुए हैं जो ये बताते हैं कि अमेरिका में 70 परसेंट लोग ये मानते हैं कि कोरोना की हैंडलिंग में ट्रंप पूरी तरह फेल रहे हैं.

क्या कोरोना की हैंडलिंग में फेल हुए ट्रंप?

70% - हां (सर्वे)

कॉर्पोरेट अमेरिका की पहल इसी मूड को झलकती है. ट्रंप को भी पता है कि उनके खिलाफ कैसा माहौल है. इसलिए वो कहते हैं कि अगर मैं हारा तो मतलब है कि चुनाव में धांधली हुई है तो ऐसे में देखना होगा कि मैं क्या करूं.

अगर मैं हारा तो मतलब है कि चुनाव में धांधली हुई है, ऐसे में देखना होगा कि मैं क्या करूं
डोनाल्ड ट्रंप 

ये डरावनी बात है. इसलिए अमेरिका में गंभीर थिंक टैंक और एकेडमिक इस पर बहस कर रहे हैं कि चुनाव में हारने के बाद ट्रंप ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया तो क्या होगा?

जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की लॉ प्रोफेसर रोजा ब्रुक्स ने एक वॉर गेम का आयोजन किया - ट्रांजिशन इंटीग्रिटी प्रोजेक्ट. इस गेम में दोनों पार्टियों के समर्थक, कानून विशेषज्ञ, रिटायर्ड सरकारी अधिकारी शामिल हुए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पता लगा कि विवाद की परिस्थिति में हालात बेहद खराब हो सकते हैं. ट्रंप ने हार नहीं मानी तो अमेरिकी संविधान की अग्निपरीक्षा 20 जनवरी को दोपहर 12 बजे होगी. जब न्यूक्लियर कोड लेकर घूमने वाला अधिकारी कोड को निष्क्रिय करके, अपना बैग उठाकर अपने बॉस के पास चला जाएगा. तब तमाशा पूरा होगा लेकिन अंत में ट्रंप को वाइट हाउस छोड़ना पड़ेगा.

फिलहाल यही कह सकते है कि चुनाव नतीजा तीन नवंबर को आए ये जरूरी नहीं है. बहुत तमाशा होंगे और लोकतंत्र का भविष्य न सिर्फ US के लिए नहीं पूरी दुनिया के लिए तय होगा.

अमेरिकी चुनाव 2020 = डेमोक्रेसी की अग्निपरीक्षा

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×