साल 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इसमें 62 लोगों की मौत हो गई थी और 50,000 से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे. हर दंगे की तरह इस दंगे का असर सबसे ज्यादा बच्चों पर पड़ा. जिन्हें न अपने कल का पता था, न उस आज का, जिसमें वो हादसा हुआ.
इस बाल दिवस पर क्विंट पहुंचा मुजफ्फरनगर दंगों के पीड़ित मासूम बच्चों के पास.
दंगों की वजह से कई बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो गई. महज 7 साल की हिना दंगों का दर्द झेल चुकी है और उसे पता है कि इसका मतलब क्या होता है. दंगे की मार झेल चुकी हिना पुलिस बनना चाहती है.
हिना का परिवार दंगे के बाद बेघर हो गया था. फिलहाल उसका परिवार खानपुर में एक पुनर्वास कॉलोनी में रहता है. हिना बताती हैं:
हमारे 3 कमरे थे, मेरे अब्बू की दूकान भी थी. लेकिन अब कुछ नहीं बचा है. अम्मी बताती हैं कि दंगे की वजह से हम लोग यहां रह रहे हैं.
दंगों का दर्द भूलना चाहते हैं बच्चे
दंगे की रात की कहानी सुनाते हुए तौहीद बताते हैं:
रात के करीब 12 बज रहे थे, लोग कह रहे थे कि इन्हें काट दो, मार दो. वो 200-300 लोग थे. हमलोगों ने अपना मुंह बंद रखा. घर में छुपे रहे. अगर थोड़ी भी हम लोगों की आवाज निकल जाती तो वो लोग हमें मार देते. मेरे अब्बू फेरी का काम करते हैं. मैं अपने घरवालों के लिए कुछ करना चाहता हूं. मेरा सपना है कि आईएएस और आईपीएस बनूं. दंगों की वजह से मेरी पढ़ाई दो-तीन साल देर हो गई, नहीं तो अब तक मैं 12वीं पास कर चुका होता.
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इंग्लिश से बदल सकती है जिंदगी
इस कॉलोनी में तौहीद जैसे कई बच्चे हैं जो सोचते हैं कि इंग्लिश से उनकी जिंदगी बदल जाएगी. टूटी-फूटी इंग्लिश में मुदस्सिर अपने बारे में कई बात बताते हैं. वे कहते हैं, ''मैं अभी क्लास 2 में हूं और मुझे इंग्लिश पढ़ना अच्छा लगता है. मैं बड़ा होकर इंजीनियर बनना चाहता हूं.''
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